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Updated: 17 अप्रिल, 2015 02:54 PM
मधुरिता आनंद
मधुरिता आनंद
 
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दो दिन पहले मैंने DailyO.in के लिए एक लेख लिखा था. यह मेरे हिसाब से था. किसी को नुकसान न देने वाला. यह महिलाओं के उन दो समूहों की खुशी की कहानी थी जिनके साथ पिछले कुछ महीनों में मैं जुड़ सी गई थी- ये थीं साध्वियां और सेक्स वर्कर. अब समस्या यह नहीं है कि मैंने क्या लिखा. बल्कि सोशल मीडिया पर बुरा-भला लिखने वालों ने मुझे इसलिए निशाने पर लिया कि मैंने कैसे एक ही जगह पर "साध्वियों और सेक्स वर्करों" को शामिल करने की हिम्मत की. मुझे "बिस्तर" शब्द का इस्तेमाल करके पर्याप्त अच्छा अहसास हुआ. चाहे यह पवित्र हो या अपवित्र. मुझे लगता है कि मेरे लेख के शीर्षक ने सबको हिलाकर रख दियाः साध्वियों और सेक्स वर्करों में क्या आम है.

मेरे लेख पर आई कटु प्रतिक्रियाओं ने मुझे हैरान कर दिया, उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.

तो यहाँ मैंने अपने जीवन के पहले बुरे-भले अनुभव से क्या सीखा है:

इन बुरा-भला लिखने वालों यानी ट्रोल्स को शायद ही कोई फॉलो करता हो लेकिन ये बहुत ट्वीट करते हैं. इन सभी में क्या समान है (यदि आप देखना चाहते हैं तो उनके प्रोफाइल पर जाएँ) वो ये कि उनमें से कुछ राजनीतिक तौर पर नरेंद्र मोदी के समर्थक हैं. दुर्व्यवहार उनकी भाषा का हिस्सा है क्योंकि उनमें से कोई भी वास्तव में बहस करने वाला नहीं है. ओह! एक और खास बात... उनमें से 99 फीसदी पुरुष हैं.

ऐसे कुछ ट्रोल्स के विचार तो कुछ समुदायों और धर्मों के लिए घृणा फैलाने वाले थे और वे लगभग ऐसी ही बातें हमेशा नफरत फैलाने के लिए इस्तेमाल करते हैं. कुछ बातें तो उनके पवित्रता और धार्मिक ज्ञान को केवल "कुछ अन्य धर्मों का समर्थक" ही साबित कर देती हैं.

स्वाभाविक रूप से मैं उनके शब्दों में "कन्वर्ट" हूं, एक "पादरी" हूं जिसे इसके बजाय ईसाई नन्स के बारे में लिखना चाहिए. परिपक्व? वैसे मुझे इन ट्रोल्स के ट्विटर अकांउट स्कूली बदमाश बच्चों की तरह लगते हैं. आप इस बात को मान जाएंगे जब आप उनकी लिखी दुर्व्यवहार भरी भाषा को देखेंगे: "आप में जो भी है वह सब कुछ सेक्स वर्करों के जैसा है"; "आप सेक्स वर्करों के बारे में जानती हैं क्योंकि आप उन्हीं में से एक हो" आदि. एक ट्वीट् ने तो मेरी मां को भी इसमें घसीट लिया.

सच यह है कि जिस दुनिया में हम महिला के तौर पर रहते हैं, हमें अक्सर नामों से बुलाया जाता है. हमारे चेहरों को, या फिर लोगों की आँखो में हमारे प्रति दिखने वाली प्रतिक्रिया के रूप में. इसलिए हम हमारे चारों ओर एक कवच का निर्माण करते हैं.

मैं आपको सच बताना चाहती हूं. मुझे महसूस होता है कि वाकई मुझमें और उन सेक्स वर्करों में बहुत कुछ समान है. उनमें से कई एकल एकल माताएं हैं. उन सभी ने अपने जीवन में मिले विश्वासघात पर हंसना सीख लिया है और उन्हें महिला होने पर शर्म नहीं आती हैं. और तब मुझे लगता है कि साध्वियों और मुझमें बहुत कुछ एक जैसा है, मैं उनकी आध्यात्मिक खोज, भगवान के प्रति उनकी बोलने की निर्भयता और प्रेम से संबंधित हूं.

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तो प्यारे बुरा-भला कहने वाले ट्रोल्स, मैं यहां तुम्हें कहना चाहती हूं: "अपराध न करो भाई, जाओ जाकर अपने जीवन में कुछ प्यार लाओ और एक बड़ी बेहतर शब्दावली भी."

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लेखक

मधुरिता आनंद मधुरिता आनंद

फिल्म निर्देशक, नई दिल्ली डिजिटल फिल्म समारोह की संस्थापक, सामयिक लेखक, एक माँ और जीवन प्रेमी।

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