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Updated: 03 अगस्त, 2016 07:14 PM
अक्षया नाथ
अक्षया नाथ
  @akshaya.nath.3
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इंसान अपने जज्बे और हौसले की बदौलत सूखी जमीन में भी फसल लहलहा सकता है. ऐसा ही कुछ किया पंजाब के इन किसानों ने, जिन्होंने अपनी मेहनत की बदौलत किसी दूसरे प्रदेश में जाकर बेहद विपरीत परिस्थतियों के बावजूद अपनी कामयाबी की इबारत लिख दी.

ये कहानी है नौ साल पहले गुरु जी बाबा इकबाल सिंह की सलाह पर तमिलनाडु के सबसे सूखे जिलों में से एक रामनाद जाने वाले कुछ पंजाबी किसानों की. दक्षिणी तमिलनाडु के रामानाद जिले के वाल्लान्धी गांव को सबसे सूखे इलाकों में से एक माना जाता है लेकिन अपनी मेहनत और लगन के बल पर पंजाब के इन किसानों ने यहां की धरती को भी फसलों से लहलहा दिया. आइए जानें कैसे तमिलनाडु के एक सूखे क्षेत्र को कामयाबी का प्रतीक बना दिया पंजाब के कुछ किसानों ने.

एक सूखे क्षेत्र को बना दिया कामयाबी का प्रतीक!

नौ साल पहले गुरु जी बाबा इकबाल सिंह की सलाह पर कुछ पंजाबी किसान 3 हजार किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा करके तमिलनाडु के रामानाद जिले स्थित वाल्लान्धी गांव गए थे. रामनाद को तमिलनाडु के सबसे सूखाग्रस्त जिलों में से एक माना जाता है. शायद यही वजह है कि पानी की कमी से जूझते यहां के स्थानीय लोगों ने इन जमीनों को औने-पौने दामों पर इन पंजाबी किसानों के हाथों बेच दिया. ये जमीनें पंजाबी किसानों को 10 हजार रुपये प्रति एकड़ की काफी सस्ती कीमत पर बेच दी गईं.

पंजाबी किसानों ने जमीने ले तो लीं लेकिन बिना पानी और बिजली के यहां उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय दिख रहा था. उन पंजाबी किसानों में से एक मनमोहन सिंह उन दिनों के बारे में बताते हैं, बाबा जी ने कहा था कि जिन जगहों पर पानी, बिजली और अन्य सुविधाएं हों वहां खेती करना आसान होता है. लेकिन उन क्षेत्रों में खेती करना जहां कुछ भी न हो यहां के लोग की मदद करने के लिए आवश्यक है. यहां के लोग बहुत ही मिलनसार हैं और हम उनके साथ मिलजुलकर काम कर रहे हैं, हकीकत तो ये है कि हमनें उनकी अपने ट्रैर्क्ट्स और खेती के ज्ञान के साथ मदद भी की है.  

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नौ साल पहले आए कुछ पंजाबी किसानों ने तमिलनाडु के सबसे सूखागग्रस्त जिले रामानाद के एक गांव में लिखी कामयाबी की इबारत

इस समूह के एक और वरिष्ठ सदस्य सरबजीत सिंह इन किसानों के संघर्ष की यादें साझा करते हैं, यह जगह हमारी जगह से काफी अलग है. यहां बहुत गर्मी है, साथ ही हमारे पास रहने और खाने की भी व्यवस्था नहीं थी. शुरुआती दिन बहुत ही कठिनाई भरे थे. लेकिन मुश्किल दिनों के बाद हमेशा ही सुनहरा भविष्य आता है.

इन लोगों ने अपने रहने का घर बनाया और कुछ तो अपने परिवार को भी ले आए.साथ ही जल्द ही उन्होंने भाषाई रुकावटों से निपटकर स्थानीय लोगों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बना लिए. अपने एक साथी किसान के बारे में उत्साह से बताते हुए मनमोहन ने कहा, 'हमारा एक दोस्त बहुत ही अच्छी तमिल बोलता है, अभी वह घर  चला गया है नहीं तो आप तमिल में उसके कुछ फेमस डॉयलॉग्स सुन पाते.'

यहां की स्थानीय भाषा सीखने के साथ ही उन्होंने पड़ोसी लोगों की मदद के लिए भी तेजी से हाथ बढ़ाया. उन्होंने अकाली फार्म के ट्रैक्टर्स से उनके खेतों की जुताई करने में मदद की, किसानों को खेती की आधुनिक तकनीकों के बारे में सिखाया. मनमोहन ने कहा, यह देश के सबसे सूखे क्षेत्रों में से एक है, जहां बारिश बहुत कम होती है. इसलिए हमें अपने उपलब्ध संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करना पड़ता है. यहां उन चीजों की खेती की जाती है, जिनमें बहुत कम पानी की आवश्यकता हो.

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इन परिश्रमी किसानों ने 40-40 एकड़ में आंवला और अमरूद की खेती, पांच एकड़ में काजू और अन्य ड्राई फ्रूट्स की खेती और 10 एकड़ में पपीता लगाया, 80 एकड़ जमीन में करीब 5 हजार आम के पेड़ लगाए गए और 10-10 एकड़ भूमि में नारियल और कीमती लकड़ी वाले पेड़ लगाए.  साथ ही अन्य फलों के साथ-साथ कद्दू, खीरा और तरबूज उपजाए गए. मनमोहन और उनकी टीम 200 एकड़ जमीन पर काम करती है जबकि उनके पास अभी 700 एकड़ ऐसी और जमीन है जिस पर खेती किया जाना बाकी है. उनकी सफलता की कहानी इस इलाके के अन्य लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है.

ये किसान अपनी सफलता का श्रेय ईश्वर की कृपा को देते हैं. लेकिन दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बनने के गर्व से उनका चेहरा दमक उठता है. ये किसान बहुत विनम्र हैं और सरबजीत सिंह गर्व से कहते हैं, ‘हमें सफतलापूर्णक यहां खेती करते देख यहां के लोग भी अपनी जमीन पर खेती करने की कोशिशें कर रहे हैं और हम उनकी हरसंभव मदद कर रहे हैं.’

लेखक

अक्षया नाथ अक्षया नाथ @akshaya.nath.3

लेखिका इंडिया टुडे टीवी में संवाददाता हैं

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