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Updated: 16 जुलाई, 2016 12:30 PM
प्रीति 'अज्ञात'
प्रीति 'अज्ञात'
  @preetiagyaatj
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'आ' से आगजनी, 'त' से तोड़फोड़, 'क' से क़त्ल, 'व' से वहशी और 'द' से दरिंदा...इन पाँचों से मिलकर ही आतंकवाद बना है. यदि इनमें से कोई एक अवगुण भी किसी इंसान से मिलता है तो वह गलत राह पकड़ चुका है. हमें उसे, इसकी पूर्ण परिभाषा तक पहुंचने के बहुत पहले, उसी वक़्त ही रोकना है. इसे बच्चों की गलती या छोटी-सी बात कहकर टाल देना, जमानत देकर छुड़ा लेना या पैसों के बलबूते पर न्याय को खरीदने का प्रयास करना भी आतंकवाद को बढ़ावा देने की श्रेणी में ही आता है.

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हमें ही रोकना होगा आतंकवाद

आतंकी का कोई धर्म नहीं होता, हां वो किसी न किसी संप्रदाय का 'बाय डिफॉल्ट' अवश्य होता है. यदि उसका आतंक उसके धर्म के सम्मान की खातिर होता तो क्या वो स्वयं उसका अपमान कर रहा होता? असामाजिक तत्वों के बहकावे में आकर, हम उसे किसी धर्म विशेष से जोड़ने लग जाएंगे तो शेष कौन रहेगा? जबकि यह सब जानते हैं कि उनके असली नाम कुछ और होते हैं. नाम में यूं भी क्या रखा है, बात उनकी घृणित सोच की है, हमें उन्हें रोकना है, न कि खुद अपने ही टुकड़े करने है. जो इस तरह की अफवाह फैला रहे हैं वो मौके का फायदा उठाने वाले स्वार्थी, देशद्रोही लोग हैं जिन्हें अपने राष्ट्र से कहीं ज्यादा, निजी हितों में दिलचस्पी है.

ईश्वर है तो धर्म है और धर्म है तो धंधे भी. धंधे में व्यापारी होते हैं. श्रेष्ठ होने की प्रतिस्पर्धा में इनकी आपस में नहीं बनती. मनुष्य सयाना निकला, उसने हर धर्म को अलग-अलग मालिक दे दिया. कुछ कर्मचारियों को आपस में भिड़ा फायदा ले रहा. मालिक अब बेबस है और निहत्था भी! पर बात अभी भी हाथों से पूरी तरह फिसली नहीं है.

एकजुट होने और राष्ट्रभक्ति दिखाने के लिए पंद्रह अगस्त तक प्रतीक्षा न करें.

'हम एक थे, हम एक हैं और एक ही रहेंगे'

लेखक

प्रीति 'अज्ञात' प्रीति 'अज्ञात' @preetiagyaatj

लेखिका समसामयिक विषयों पर टिप्‍पणी करती हैं. उनकी दो किताबें 'मध्यांतर' और 'दोपहर की धूप में' प्रकाशित हो चुकी हैं.

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