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Updated: 23 अगस्त, 2015 04:50 PM
विनीत कुमार
विनीत कुमार
  @vineet.dubey.98
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एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश के शहरी किशोरों का रूझान अब समय से काफी पहले सेक्स की ओर होने लगा है. आप कहेंगे यह बात नई नहीं है. हर गुजरते साल के साथ हमारी नजर ऐसे किसी सर्वे से होकर गुजरती है. जिस 'उम्र' की बात हम कर रहे हैं वह भी हर नए सर्वे के साथ घटते हुए ही दिखा है. हमारे बच्चे समय से पहले जवान हो रहे हैं. लेकिन क्यों? जो भी तस्वीर हमारे सामने उभर रही है उसे हम सही या गलत की कैटेगरी में नहीं रख सकते. सेक्स एक नॉर्मल प्रक्रिया है. शरीर की जरूरत है. लेकिन जब जरूरत एक उल्टी तस्वीर पेश करने लगे तो चिंता और सवाल जायज हो जाते हैं.

सेक्स का पहला अनुभव केवल 13 से 14 साल की उम्र में

हमारे शहरों में हाल के वर्षों में सेक्स को लेकर किशोरों के मन में कैसे बदलाव हो रहे हैं, इसकी बानगी एक ई-हेल्थकेयर कंपनी मेडीएंजल्स डॉट कॉम के सर्वे से देखने को मिलती है. यह सर्वे देश के 20 बड़े शहरों में 13 से 19 साल के 15,000 लड़के-लड़कियों के बीच किया गया. सर्वे के अनुसार देश में लड़कों के लिए पहली बार सेक्सुअल कॉन्टैक्ट बनाने की औसत उम्र 13.72 साल है. जबकि लड़कियां 14.09 की उम्र में इसका अनुभव हासिल कर लेती हैं. मामला यहीं नहीं रूकता. कच्ची उम्र में सेक्स के प्रति आकर्षण और इससे जुड़े प्रयोग करने की चाहत में कई किशोर यौन संक्रामक रोगों से भी ग्रसित हो रहे हैं.

आंकड़ों के मुताबिक इनमें से 8.9 फीसदी बच्चों को कभी न कभी यौन रोगों का सामना करना पड़ा. सर्वे में शामिल 6.3 फीसदी लड़कों और 1.3 फीसदी लड़कियों ने माना कि उन्होंने कम से कम एक बार सेक्स जरूर किया है. सर्वे में शामिल लड़कों के लिए पहली बार सेक्स (इंटरकोर्स) की उम्र 14 साल जबकि लड़कियों के लिए यह 16 साल थी.

किशोर मन में क्यों बढ़ रहा सेक्स के प्रति रूझान

यह विवादित विषय है. आप, बस इसे छेड़ने की जुर्रत कीजिए और देखिए कैसे हैरान कर देने वाली दलीलें आपकों सुनने को मिलेंगी. इंटरनेट से लेकर मोबाइल और फिर टीवी, फिल्मों सहित जींस पहनने नहीं पहनने के कारण गिनाए जाने लगेंगे. हो सकता है, कुछ फीसदी बातें इनसे भी जुड़ी हों. लेकिन पूरी जिम्मेदारी इंटरनेट, टीवी और फिल्मों पर ही डाल देना क्या सही है? आप यह क्यों नहीं देखते कि हमारे सामाजिक और पारिवारिक परिवेश में कितना बदलाव आया है. खासकर शहरों में, वैसे परिवारों में..जहां माता-पिता दोनों कामकाजी हैं. अकेलेपन के बीच जब आपका बच्चा दोस्तों और अनजान लोगों के बीच ज्यादातर वक्त गुजारने लगे तो इसके लिए क्या हम जिम्मेदार नहीं हैं?

सेक्स एजुकेशन

समाज बदल रहा है. हमारे रहन-सहन का ढंग बदल रहा है. खर्च चलाने के लिए माता-पिता का काम करना जरूरी है ही. फिर क्या किया जाए? हमारे यहां स्कूलों में सेक्स शिक्षा देने पर बहस होती रही है लेकिन अब भी इसे अपनाना दूर की कौड़ी है. बेहतर होगा, हम इस पर गंभीरता से विचार करें. वैसे लोग जो इंटरनेट या टीवी, फिल्मों को ही सेक्स के प्रति रूझान का बड़ा कारण मानते हैं, उनके लिए एक बात समझनी बहुत जरूरी है. आज के दौर में आप इंटरनेट पर बैन नहीं लगा सकते. हजार रास्ते हैं जिससे होकर वह हमारे किशोरों की नजर में पहुंच ही जाएगा. आप अगर इंटरनेट, टीवी, फिल्मों पर बैन लगाकर सोचते हैं कि खतरा टल गया तो यह बात उस शुतुर्मुर्ग जैसी ही है जो शिकारी को देख कर अपनी आंखे बंद कर लेता है. उसे लगता है कि खतरा अगर नजर नहीं रहा तो इसका मतलब वह टल गया.

क्यों न हम सेक्स शिक्षा के बारे में बात करना शुरू करें. इंटरनेट या अन्य माध्यमों से जो कचड़ा उसके मन में जा रहा है उसके लिए यह शिक्षा एक फिल्टर का काम तो करेगी ही. कम से कम एक सही माध्यम से तो उसके पास सेक्स से जुड़ी जानकारी पहुंचेगी. उम्र और सेक्स संबंध के बारे में खुल कर उसे बताएं..फिर शायद वह गलत और सही का ठीक-ठीक फर्क समझने लगे.

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लेखक

विनीत कुमार विनीत कुमार @vineet.dubey.98

लेखक आईचौक.इन में सीनियर सब एडिटर हैं.

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