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Updated: 14 मार्च, 2018 01:36 PM
रिम्मी कुमारी
रिम्मी कुमारी
  @sharma.rimmi
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फिजिक्‍स में जरा भी दिलचस्‍पी न रखने वालों को पता है कि स्टीफन हॉकिंग थे. 76 साल की उम्र में इस महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने आखिरी सांस ली. ऐसे समय में जब लोग सेलिब्रिटी के नाम पर नेताओं, हीरो-हिरोईनों और खिलाड़ियों को ही जानते हैं, तब स्टीफन ने ब्लैक होल और रिलेटिविटी की थ्योरी देकर विश्व में अपनी पहचान बनाई. इसके पीछे एक कारण उनकी जीवटता भी थी. 22 साल की उम्र में जब मोटर न्यूरोन की बीमारी से पीड़ित होने के कारण उनका शरीर धीरे धीरे उनका साथ छोड़ रहा था और डॉक्टरों ने उन्हें कुछ साल का ही मेहमान बताया तब भी अपनी जीवटता से वो डटे रहे और नियति को बदल दिया.

उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें ब्रिटिश सरकार ने कमांडर ऑफ द ऑर्डर की उपाधि दी, तो यूएस प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम से भी नवाजा गया. ऐसे में आइए हम आपको उनके जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं के बारे में बताएं.

1- औसत छात्र:

stephen hawking, deathब्रिलियंट नहीं औसत छात्र थे हॉकिंग

उनकी उपलब्धियों को सुनकर, जानकर, पढ़कर लगता होगा कि वो मेधावी छात्र रहे होंगे. लेकिन असलियत ये है कि 8 साल की उम्र तक उन्हें पढ़ना भी नहीं आता था और सेंट अल्बांस स्कूल में उनका ग्रेड कभी भी औसत से ऊपर नहीं रहा! पर फिर भी उनके क्लासमेट उन्हें 'आइंस्टाइन' कहते थे. जानते हैं क्यों? क्यों अपने टीनएज में ही उन्होंने एक कंप्यूटर बना डाला था और अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में दिलचस्पी दिखाई थी. सिर्फ 17 साल की उम्र में ही हॉकिंग ने फिजिक्स पढ़ने के लिए ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी का इंट्रेंस एक्जाम भी पास कर लिया था.

2- बीमारी का लक्षण:

कैम्ब्रिज यूनीवर्सिटी में अपने पहले साल की पढ़ाई के दौरान ही हॉकिंग स्केटिंग करते वक्त गिर गए थे. इसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें एमायोट्रॉपिक लैटरल स्केलेरोसिस (ALS) नाम के असाधारण बीमारी से ग्रस्त पाया. ये एक मोटर न्यूरोन बीमारी है जिसमें शरीर नष्ट होता जाता है. डॉक्टरों ने हॉकिंग को सिर्फ 2 या ढाई साल का मेहमान बता दिया था. हालांकि ये बीमारी हॉकिंग और उनके परिवार के बहुत बड़ा सदमा लेकर आई थी लेकिन बीमारी के लक्षण का समय से पता चल जाना खुद हॉकिंग के लिए वरदान साबित हुआ.

ज्यादातर ALS पीड़ितों को उनकी बीमारी का 50 की उम्र के बाद ही चलता है और उसके बाद वो सिर्फ 2 से 3 साल ही जिंदा रह पाते हैं. लेकिन जिनको इस बीमारी का पता पहले चल जाता है उनका शरीर इससे लड़ता है और वो देर तक टिक पाते हैं. हॉकिंग के केस में भी यही हुआ. बल्कि इस बीमारी ने उनकी क्रिएटिविटी और सोचने की क्षमता को और बढ़ा ही दिया.

एक बार उन्होंने कहा भी था- "मेरे हाथों ने जब काम करना बंद कर दिया तो मैं अपने दिमाग के जरिए ब्रह्मांड में घूमने लगा. मैं उन तरीकों की कल्पना करने लगा जिस पर ये काम करता है."

3- समीकरण:

एक तरफ जहां हॉकिंग के जीवन को एक शब्द में बयान करना नामुमकिन है तो वहीं दूसरी तरफ सिर्फ एक इक्वेशन यानी समीकरण द्वारा इसे समझा जा सकता है-

stephen hawking, deathइस एक समीकरण ने हॉकिंग को स्टार बना दिया

इस फॉर्मूला में लाइट की स्पीड (c), न्यूटन कॉन्सटेंट (G) और कई अन्य चिन्हों को सम्मिलित करता है. इसे ही आज हम हॉकिन्ग रैडिएशन के नाम से जानते हैं. हालांकि शुरुआत में खुद हॉकिन्ग इस खोज को लेकर उधेड़बुन में थे. लेकिन 1974 में उन्होंने जेनरल रिलेटिविटी और थर्मोडायनेमेक्स के लिए एक फॉर्मूला ईजाद कर लिया. इस खोज ने उनके करियर को नई उड़ान दी और उन्हें स्टारडम दिला दिया. हॉकिन्ग ने कहा था कि वो चाहते हैं कि ये समीकरण उनके कब्र पर खोदा जाए.

4- ऑपरेशन:

हालांकि डॉक्टरों के 2-3 साल के जीवन के डेडलाइन को नकार चुके थे लेकिन 1985 में जेनेवा जाते वक्त उन्हें निमोनिया हुआ जिसने लगभग उनकी जान ले ही ली थी. वो बेहोश थे और वेंटिलेटर पर थे. डॉक्टर अब उन्हें वेंटिलेटर पर से हटाने और मृत घोषित करने की बात पर विचार कर रहे थे लेकिन हॉकिन्ग की तात्कालीन पत्नी जेन ने इससे इंकार कर दिया.

इसके बाद हॉकिन्ग के गले का एक ऑपरेशन हुआ जिसके बाद वो फिर से सांस तो लेने लगे पर उस ऑपरेशन ने उनकी बोलने की क्षमता को जीवन भर के लिए छीन लिया. इस ऑपरेशन के बाद ही उनके प्रसिद्द speech synthesizer का निर्माण हुआ.

5- मशीन:

stephen hawking, deathस्पीच सिंथेसाइजर के जरिए किताब तक लिख डाली

हॉकिन्ग का पहला सिन्थेसाइजर कैलिफॉर्निया की कंपनी वर्डस प्लस ने बनाया था जो एप्पल 2 कंप्यूटर पर काम करता था. ये उपकरण उनके व्हीलचेयर पर लगा दिया जाता था और शब्दों का चयन कर हॉकिन्ग को बोलने में सहायता करता था. लेकिन जब हॉकिन्ग के हाथ काम करने बंद हो गए तो फिर उन्हें एक इंफ्रारेड स्वीच दिया गया जो उनके होठों को पढ़कर शब्दों का चयन करता और बोलता. हालांकि हाल ही उन्हें इंटेल द्वारा एक नई कम्यूनिकेशन टेक्नोलॉजी गिफ्ट करने की पेशकश हुई. लेकिन हॉकिन्ग ने अपने तीस साल से इस्तेमाल कर रहे पुराने रोबोटिक आवाज को ही अपने साथ रखा क्योंकि अब इस आवाज को उन्होंने अपना हिस्सा मान लिया था.

6- लेखक:

हॉकिन्ग, अंतरिक्ष और उससे जुड़ी रहस्यों के बारे में एक किताब लिखना चाहते थे. लेकिन उनके लिखने और बोलने की क्षमता के खत्म होने के बाद ये असंभव हो गया था. लेकिन उन्होंने अपने स्पीच सिंथेसाइजर और अपने छात्रों की मदद से से इस नामुमकिन काम को भी मुमकिन कर दिखाया. 1988 में छपी A Brief History Of Time लगातार 237 हफ्तों तक लंदन संडे टाइम्स के बेस्ट सेलर लिस्ट में काबिज रही. इसके बाद अपनी बेटी लूसी के साथ मिलकर उन्होंने कई और किताबें लिखी और अपनी बायोग्राफी भी लिखी.

7- इतना ही नहीं:

शारीरिक कमजोरियों के बावजूद हॉकिन्ग ने कभी भी टीवी पर आने से गुरेज नहीं किया. 1993 में उन्होंने Star Trek: The Next Generation में उन्होनें रोल किया जिसमें अल्बर्ट आइंसटाइन और आईजैक न्यूटन के साथ ताश खेलते वक्त चुटकुले सुनाते और ठहाके लगाते नजर आए. एनिमेटेड शो The Simpsons और Futurama के लिए भी उन्होंने अपनी आवाज दी. The Big Bang Theory जैसे हिट प्रोग्राम में भी नजर आए. इसके साथ ही 1997 में Stephen hawking's universe के जरिए अपने पसंदीदा कॉस्मॉलजी पर भी उन्होंने बात की. और 2013 में बनी डॉक्यूमेंट्री Hawking के लिए अपने जीवन के पहलुओं पर बात की.

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लेखक

रिम्मी कुमारी रिम्मी कुमारी @sharma.rimmi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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