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Updated: 10 सितम्बर, 2015 07:41 PM
सौरभ भनोट
सौरभ भनोट
  @saurav.bhanot1
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नामी गिरामी ब्रांड में सजी धजी, कैमरे के आगे पोज़ देती हुई और साथ ही साथ सधी हुई काया को संभालती, हम अपनी बॉलीवुड अभिनेत्रियों को कुछ ऐसे ही देखना पसंद करते हैं. पर सोशल मीडिया पर अपनी राय देना और आवाज़ उठाना कुछ ऐसी चीजें हैं जो हम नहीं चाहते कि वो करें. और किसी खास मौके पर जब उनमें से कोई अपनी राय देना चाहे तो हम उन्हें शर्मिंदा करते हैं, उनका मज़ाक बनाते हैं और उनकी तरफ ऐसे बेहुदे और नाराज़ करने वाले कमेंट्स करते हैं और उन्हें ये जता देते हैं कि इस देश में एक महिला की राय का कोई सम्मान नहीं है चाहे वो सेलिब्रिटी ही क्यों न हो. और इस दौरान उसके द्वारा उठाई गई मुद्दे की बात को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया जाता है.

जैन समाज के पर्यूषण पर्व के उपलक्ष्‍य में महाराष्ट्र पर हुए मीट बैन पर सोनम कपूर ने अपना पक्ष रखा. उन्होंने अपमानजनक प्रतिक्रियाओं की फिक्र न करते हुए हमारे देश के नेताओं के 'बर्दाश्त न करने वाले' और 'महिला विरोधी' विचारों पर ट्वीट किया. ये खास तौर पर मीट बैन पर नहीं बल्कि हमारे समाज के प्रचलित परिदृश्य पर किया गया एक बहुत ही सामान्य कमेंट था. पर ऑनलाइन महिलाओं और पुरुषों को उनकी निंदा करने में ज़रा भी वक्त नहीं लगा. उन्होंने इसे उनकी मूर्खता और अज्ञानता समझकर पूरे दिन जमकर उनका मजाक उड़ाया और इस बात ये ये तो सिद्ध हो गया कि हमारा अपना समाज असल में कितना महिला द्वेषी है. लोग सारा दिन इस पर ट्वीट करते रहे बजाय के वास्तविक मुद्दे पर कुछ करने के जिसके बार में सोनम बात करना चाह रही थीं. आश्चर्य की बात है कि इस तथ्य ने भी ट्विटर के लोगों को ज़्यादा परेशान नहीं किया कि- आजकल के नेताओं ने निर्णय लेने का जिम्मा लिया हुआ है कि हमें क्या खाना है, क्या देखना है और क्या पहनना है और हमें कब, कहां और किसके साथ सेक्स करना है. पर सोनम की ये गलती उनके लिए ज़्यादा मायने रखती थी.

महाराष्ट्र के इस मीट बैन के साथ-साथ हर रोज़ हो रहे अनगिनत बैन के बाद सोनाक्षी सिन्हा ने भारत को 'बैनिस्तान' कहने की हिम्मत दिखाई. वो दूसरी बॉलीवुड अभिनेत्रियों की तरह साइज जीरो के अनुरूप नही लगतीं, इसपर एक के बाद एक ट्वीट करके उन्हें उनके शरीर पर शर्मिंदा किया गया. एक बार फिर मुद्दे की बात खत्म हो गई, अपनी राय देने पर लोगों ने देश के बाकी सामान्य नागरिकों की ही तरह नए जमाने के सितारों का भी मज़ाक उड़ाकर आनंद लिया.

सोनम और सोनाक्षी ने जो सहा वो नया नहीं है. ऐसा कई बार हुआ कि जब भी अभिनेत्रियों ने देश में हो रही घटनाओं पर खुले तौर पर अपने विचार प्रकट किए तो बहुत शोर मचाया गया. हाल ही में श्रुति सेठ और नेहा धूपिया को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के #selfiewithdaughter कैंपेन पर किए गए ट्वीट की वजह से सोशल मीडिया के प्रकोप का सामना करना पड़ा था. और फिर हमें आश्चर्य होता है कि क्यों हमारे देश के सेलिब्रिटीज़ के पास देश में चल रही घटनाओं के बारे में बोलने के लिए कुछ नहीं होता. क्या हम उन्हें उनके ग्लैमर से लिपटे खोल में धकेलने की कोशिश नहीं रहे है और जब भी वो इससे बाहर आने की कोशिश करते हैं क्या हम उनका अपमान कर उनसे किनारा नहीं कर लेते?  

अगर देश में हालिया बैन जनता से निकलकर हमारे लिविंग रूम, हमारे डाइनिंग रूम और हमारे बेड रूम तक आ गए हैं तो ये गंभीर चिंता का विषय है. एक लोकतांत्रिक देश के नागरिक के रूप में ये हमारे बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन है. ये आश्चर्य की बात है कि लोग मुद्दे की बात पर लड़ने के बजाये सेलिब्रिटी का मज़ाक उड़ाने में ज़यादा व्यस्त हैं. क्या दूसरों पर कीचड़ उछालने से हमें खुशी मिलती है? अगर ऐसा ही है तो इसपर और कुछ कहना बेकार है, है न? और ऐसा क्यों है कि एक महिला को पुरुषों के मुकाबले ज़्यादा कठोर अनुभव होते हैं? आलिया भट्ट को आज तक कॉफी विद करन पर हुई नादानी के लिए याद किया जाता है, जबकि उनके को-स्टार वरुण धवन को उसी शो पर हुई गलती के लिए नज़रअंदाज़ किया गया.

क्या ये सेलिब्रिटी की किसी भी बात पर हमारी कम सहनशीलता को दर्शाता है? क्या इससे ये नहीं दिखता कि सोशल मीडिया कितना नकारात्मक और निर्णायक हो गया है? वो ट्विटर जो महिला सशक्तिकरण और सुरक्षा के लिए कैंपेन चलाता है, अचानक उन लोगों के बढ़ने की जगह बन गया है जिन्हें महिलाओं का राय देना पसंद नहीं आता.    

क्या सोशल मीडिया हमारे समाज में चल रही चीज़ों का दर्पण नहीं है? हम अपनी बेटियों के साथ तो सैल्फी खींचेगे , लेकिन किसी और की बेटी के अपशब्द बोलने से पहले ज़रा भी नहीं सोचेंगे. हम बीफ और पोर्न पर प्रतिबंध लगाने के खिलाफ विरोध करेंगे लेकिन खुशी से उस महिला को अपशब्द कहेंगे जिसकी राय हमारी बात से मेल नहीं खाती.

सोनम और सोनाक्षी तो सेलिब्रिटी हैं और इस तरह रोज़मर्रा की बातों को झेलना जानती हैं, लेकिन साधारण महिलाओं का क्या? क्या वो जो कहना चाहती है सुरक्षित रूप से कह सकती है, बिना इस बात की चिंता किए हुए कि उसके आसपास के लोग क्या प्रतिक्रिया देंगे? ऑफलाइन होने पर उसकी सुरक्षा पर तो संदेह है, पर क्या हम उसे कम से कम ऑनलाइन, एक सुरक्षित वातावरण नहीं दे सकते?

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