New

होम -> समाज

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 29 अगस्त, 2016 03:22 PM
संतोष चौबे
संतोष चौबे
  @SantoshChaubeyy
  • Total Shares

वैटिकन 4 सितम्बर को मदर टेरेसा को संत की उपाधि देने जा रहा है. दुनिया भर में इसकी चर्चा हो रही है. मदर टेरेसा के अनुयायी और समर्थक जो दुनिया भर में फैले हुए हैं इस महत्त्वपूर्ण पल की तैयारी में लगे हैं. ये भारत के लिए विशेष सम्मान की बात है क्योंकि भारत ही मदर टेरेसा की कर्मभूमि रहा है. अगर कोलकाता को सिटी ऑफ जॉय कहा जाता है और रविन्द्र नाथ टैगोर के नाम से जाना जाता है, तो कोलकाता उतना ही मदर टेरेसा का शहर भी है.

अपने आश्रम के एक छोटे से कमरे रहते हुए और अत्यंत ही सादा लिबास पहनते हुए अपना पूरा जीवन मदर टेरेसा ने निर्धनों और असहायों की मदद करने में लगा दिया. आज उनके संस्थान मिशनरीज ऑफ चैरिटी की शाखाएं दुनिया भर में फैली हुई हैं.

teresa650_082916023707.jpg
 मदर टेरेसा ने अपना पूरा जीवन भारत में गरीबों की सेवा के लिए लगा दिया

इसकी महत्ता को समझते हुए भारत अपना एक उच्च-स्तरीय दल विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के नेतृत्व में वैटिकन भेज रहा है. ये हमारे लिए गौरव का क्षण है. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी अपने मासिक 'मन की बात' रेडियो संबोधन में कल कहा, 'मेरे प्यारे देशवासियों, भारत रत्न मदर टेरेसा, 4 सितम्बर को मदर टेरेसा को संत की उपाधि से विभूषित किया जाएगा. मदर टेरेसा ने अपना पूरा जीवन भारत में गरीबों की सेवा के लिए लगा दिया था. उनका जन्म तो अल्बानिया में हुआ था. उनकी भाषा भी अंग्रेज़ी नहीं थी. लेकिन उन्होंने अपने जीवन को ढाला. गरीबों की सेवा के योग्य बनाने के लिये भरपूर प्रयास किए. जिन्होंने जीवन भर भारत के गरीबों की सेवा की हो, ऐसी मदर टेरेसा को जब संत की उपाधि प्राप्त होती है, तो सब भारतीयों को गर्व होना बड़ा स्वाभाविक है. 4 सितम्बर को ये जो समारोह होगा, उसमें सवा-सौ करोड़ देशवासियों की तरफ से भारत सरकार, हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की अगुवाई में, एक आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल भी वहां भेजेगी. संतों से, ऋषियों से, मुनियों से, महापुरुषों से हर पल हमें कुछ-न-कुछ सीखने को मिलता ही है. हम कुछ-न-कुछ पाते रहेंगे, सीखते रहेंगे और कुछ-न-कुछ अच्छा करते रहेंगे.'

ये भी पढ़ें- मदर टेरेसा की सेवा और कुछ सवाल

यही भावना होनी चाहिए कि हम हमेशा ऐसे महान संतों से कुछ न कुछ सीखते रहेंगे. सभी की अपनी अच्छाइयां बुराइयां होती हैं लेकिन संतों और महान लोगों का जीवन ऐसा प्रेरणा स्रोत बन जाता है ना सिर्फ उनसे जुड़े विवादों को धार को कुंद कर देता है बल्कि मानवता का हमेशा पथ प्रदर्शन करता रहता है. लेकिन हमारे बीच बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो किसी की भी आलोचना करने से पीछे नहीं रहते.

ऐसे धर्मांध लोग बहुत हैं जो मदर टेरेसा की हमेशा बुराई में लगे रहते हैं ये कहकर के वो धर्मान्तरण में लगीं हुईं थीं या वो तानाशाहों से मदद लेती थीं या वो अपने धर्मशालाओं में रोगियों का उचित ध्यान नहीं रखती थीं. ऐसे लोग मदर टेरेसा के जीवनकाल में भी थे और अभी भी बहुत हैं. देश और मानवता इंतजार में है कब 4 सितंबर आये जबकि धर्म और जाति की राजनीति करने वाले लोग इस पर भी अपनी रोटी सेंकने में लगे हुए हैं. नरेंद्र मोदी द्वारा 'मन की बात' में मदर टेरेसा की तारीफ करने के बाद विश्व हिन्दू परिषद् उनपे भड़की हुई है और कह रही है कि मदर टेरेसा को संत की उपाधि मिलने के बाद धर्मान्तरण के मामलों में तेजी आएगी. लेकिन ऐसे धर्मांध लोग अपनी राजनीती चमकाने के लिए हमेशा ही ऐसे मौकों की तलाश में रहते हैं.

ये भी पढ़ें- शिवसेना का ये शांति पाठ हजम क्‍यों नहीं हो रहा...

किसी को वैटिकन द्वारा संत घोषित किया जाना एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है. मदर टेरेसा को ही लें तो ऐसा उनके गुजरने के लगभग २० वर्षों के बाद होने जा रहा है. मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर को 1997 में हुई थी. मदर टेरेसा को संत की उपाधि मिलने के पहले उनके दो चमत्कारों को वैटिकन से मान्यता मिलनी जरूरी थी. मदर टेरेसा के पहले चमत्कार को 2003 में मान्यता मिली थी. तब उनका बीटीफिकेशन हुआ था और उनको "ब्लेस्ड टेरेसा ऑफ कलकत्ता" की उपाधि दी गयी थी जो उनको संत घोषित किये जाने की दिशा में पहला कदम था. पिछले साल दिसम्बर में पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा के दूसरे चमत्कार को मान्यता दी थी जिसके बाद उनको संत की उपाधि दिए जाने का मार्ग प्रशस्त हुआ.

लेखक

संतोष चौबे संतोष चौबे @santoshchaubeyy

लेखक इंडिया टुडे टीवी में पत्रकार हैं।

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय