New

होम -> समाज

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 17 नवम्बर, 2018 07:21 PM
आईचौक
आईचौक
  @iChowk
  • Total Shares

कई बार हम अपनी जिंदगी में कुछ ऐसे फैसले लेते हैं जिनके लिए जिंदगी भर अपने मन में ये सोचते रह जाते हैं कि काश मैंने ऐसा न किया होता और कई बार फैसले कुछ ऐसे होते हैं जिनके बारे में हमें लगता है कि इससे बेहतर तो हम शायद कर ही नहीं सकते थे. जिंदगी एक जिंदादिली का नाम है और इसी जिंदादिली के बीच कहानी एक ऐसी अदाकारा की भी जाननी चाहिए जो अपने दम पर आगे तो बढ़ी, लेकिन जिसके लिए उसकी मां का सहारा सबसे जरूरी साबित हुआ. इंडस्ट्री में बिना किसी गॉडफादर के दिव्या दत्ता ने अपना मुकाम बनाया और अपने आप को साबित किया कि वो ऐसे कई लोगों से बेहतर हैं जिन्हें किसी पहचान के बल पर लॉन्च किया जाता है. 

साहित्य आजतक के मंच पर दिव्या दत्ता ने अपनी कहानी बताई और बताया कि कैसे उनके बचपन की कुछ घटनाओं ने उन्हें आजादी दी खुल के जीने की और कैसे उनकी जिंदगी में बदलाव आए. 

दिव्या दत्ता, साहित्य आजतक, सोशल मीडियासाहित्य आजतक के मंच पर एक्ट्रेस दिव्या दत्ता

दिव्या दत्ता ने ये बताया कि कैसे उन्हें स्कूल में मिली वो सज़ा याद है जब उन्होंने अपने स्कूल में कहा था कि उन्हें एक्ट्रेस बनना था और उन्हें कैसे इस बात पर सज़ा मिली थी कॉन्वेंट स्कूल में.

स्कूल में सज़ा जो जिंदगी भर याद रह गई..

दिव्या दत्ता स्कूल में हेड गर्ल थीं और एक बार स्कूल में पूछा गया कि उन्हें बड़े होकर क्या बनना है. ये उस दौर की बात है जब डॉक्टर, इंजीनियर जैसे प्रोफेशन ही सही माने जाते थे और बाकी सब कुछ अच्छा नहीं. लेकिन उन्होंने जवाब दिया कि उन्हें तो एक्टर बनना है. इस बात पर उनकी प्रिंसिपल ने उन्हें बुलाया और उन्हें मुर्गा बनने की सज़ा दी. उन्होंने कहा कि तुम एक बहुत गलत उदाहरण पेश कर रही हो लोगों के सामने, लेकिन उसके बाद जब वो कामियाब हो गईं और 10 साल बाद उसी प्रिंसिपल ने एक बच्चे को उनके सामने लाकर कहा कि देखो अगर इसका कुछ हो सके तो, ये तो बहुत टैलेंटेड है.

ये किस्सा दिव्या ने साहित्य आजतक के मंच पर सुनाया और ये किस्सा देश की उसी प्रथा को उजागर करता है जहां कुछ भी अलग करने से लोग डरते हैं. सालों से चली आ रही घिसी-पिटी बातों को सिर्फ इसलिए माना जाता है क्योंकि वो तो जनाब सालों से चला आ रहा है. समाज में जो ज्यादा प्रतिष्ठित दिखता है लोग उसी के बारे में मानते हैं, लेकिन ऐसा नहीं सोचते कि अगर कोई कुछ अलग कर रहा है तो वो अच्छा ही कर रहा होगा.

अमेरिका के शादी के रिश्ते के आगे कैसे चुना करियर

इस सत्र में दिव्या ने अपनी शादी के बारे में भी बताया कि करियर बनाने के समय उन्हें एक बेहद अच्छा रिश्ता मिला था जहां लड़का अमेरिका में डॉक्टर था. उनका पूरा परिवार उनके विरोध में थे और कह रहे थे कि शादी कर लें, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. उनके साथ सिर्फ उनकी मां थीं जो कह रही थीं कि दिव्या को शादी नहीं करनी है उसे एक्टिंग करनी है और यही बात उन्हें बेहद खुश कर गई.

दिव्या की जिंदगी में उनकी मां ने बहुत अहम रोल निभाया है और दिव्या जो भी हैं वो उनकी मां की वजह से हैं. दिव्या की मां ने एक सिंगल मदर होने के बाद भी अपनी बेटी को पूरा समर्थन दिया. शायद यही तो कमी रह जाती है हमारे देश में जहां अधिकतर लड़कियों के माता-पिता उन्हें ये आज़ादी नहीं दे पाते और उन्हें शादी के बंधंन में बांध दिया जाता है.

एक अच्छा शादी का रिश्ता किसी लड़की के लिए किसी महंगी ट्रॉफी की तरह समझा जाता है. लेकिन खुशी शादी करने से ज्यादा असल ट्रॉफी पाने और अपने दम पर कुछ करने में मिलती है, लेकिन ये जो सोचना है वो शायद बहुत से लोगों को नहीं समझ आता. ये तो अच्छी बात है कि दिव्या के साथ उनकी मां थीं अगर नहीं होतीं तो शायद आज हमारे सामने वो दिव्या नहीं होती जो अपनी शर्तों पर जिंदगी जीती हैं.

ये भी पढ़ें-

Metoo को नए सिरे से देखने पर मजबूर कर देगी ये कविता

क्या स्त्री का 'अपना कोना' सिर्फ रसोई घर ही है?

#साहित्य आजतक, #आजतक, #साहित्य, Sahitya Aajtak 2018, Sahitya Aajtak, Aajtak

लेखक

आईचौक आईचौक @ichowk

इंडिया टुडे ग्रुप का ऑनलाइन ओपिनियन प्लेटफॉर्म.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय