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Updated: 11 फरवरी, 2017 03:17 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
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पतियों का गुस्सा अक्सर पत्नियों पर निकलता है, गुस्से में गालियां देना, थप्पड़ मारना कुछ घरों में बहुत सामान्य सी बात है. कुछ लोग तो ऐसा करना अपना अधिकार समझते हैं. और कुछ घरों में बड़े-बूढ़े भी इस व्यवहार के बारे में सफाई देते है कि 'घर में दो बर्तन होंगे तो खड़केंगे ही' या 'जो प्यार करता है वो गुस्सा भी तो करता है.' अब कुछ नया सुनिए...

'महिलाओं को अपने चोट के निशानों पर गर्व होना चाहिए.' जी हां, आपने सही सुना. रूस के एक अखबार के कॉलम में छपी ऐसी ही कुछ बातें दुनिया भर में चर्चा का विषय बनी हुई हैं.

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लिखा है- 'सालों से अपने पतियों से मार खा रही महिलाओं को ये बात कहकर सांतवनाएं दी जाती थीं कि अगर वो तुम्हें पीटता है तो इसका मतलब ये है कि वो तुमसे प्यार करता है. जबकि एक नई खोज, गुस्सेल पतियों की पत्नियों को अपनी चोटों पर गर्व करने का नया आधार दे रही है. जीववैज्ञानिकों का कहना है कि पिटाई से बहुत ही अहम फायदा होता है. उन महिलाओं में ज्यादा बेटे पैदा करने की संभावना बढ़ जाती है.'

ये वैज्ञानिक शोध सतोशी कनाज्वा का था जो एक विवादित मनोवैज्ञनिक रहे हैं. कनाज्वा ने 2005 में एक आर्टिकल पब्लिश किया था, जिसमें कहा गया था कि 'हिंसक पुरूषों के ज्यादा बेटे होते हैं.' हालांकि इस बात के कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं. कनाज्वा इसी तरह की बेसिर पैर की बातों के चलते विवादों में घिरते रहे हैं.

ये तो महज एक अखबार में छपा लेख था जिसपर बवाल हुआ, लेकिन ऐसा क्या हुआ कि घरेलू हिंसा पर इस तरह की बातें प्रकाशित की जा रही हैं. दरअसल रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने हाल ही में घरेलू हिंसा को अपराध की श्रेणी से हटा दिया है. नतीजा, आप देख ही रहे हैं.

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संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार रूस में हर साल 6 लाख महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं, जिनमें 14 हजार की इसकी वजह से मौत हो जाती है. बावजूद इसके, अब यहां घरेलू हिंसा अपराध नहीं है, बल्कि अपराधी अब केवल फाइन देकर छूट जाएंगे.

पुतिन के इस फैसले को पूरी दुनिया में कड़ी आलोचनाएं झेलनी पड़ रही हैं. साथ ही घरेलू हिंसा की पैरवी करने वालों के हौसले भी बढ़ रहे हैं. अभी तो सिर्फ ये लेख चर्चित हो रहा है. आगे न जाने क्या-क्या सामने आए. जरा सोचिए जहां महिलाएं अपने घर की इज्जत का ख्याल करते हुए खुद पर होने वाली हिंसा के बारे में किसी से जिक्र भी नहीं करतीं, अपने घाव छिपाती हैं, वहां जब घरेलू हिंसा को अपराध ही न माना जाए तो कैसी स्थितियां जन्म लेंगी? जिस कानून का सहारा लेकर वो खुद को प्रताड़ित होने से बचा सकती थीं, वही जब उनके साथ नहीं तो फिर उन महिलाओं के आने वाले कल का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है.

भारत में भी 70 प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी रूप में घरेलू हिंसा की शिकार हैं. पर शुक्र है कि भारत में घरेलू हिंसा पर कानून है, जो रिश्तों में हिंसा झेल रहीं महिलाओं को तत्काल और आपातकालीन राहत पहुंचाता है.

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पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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