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Updated: 03 जनवरी, 2017 07:03 PM
सरोज कुमार
सरोज कुमार
  @krsaroj989
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आज सावित्रीबाई फुले का जन्मदिवस है. फेसबुक पर उन्हें याद किया जा रहा है, ट्विटर पर वे ट्रेंड में हैं. गूगल ने भी उनके सम्मान में अपना डूडल बनाया है. यहां तक कि बहुत सारे लोग उनके सम्मान में आज सांकेतिक तौर पर शिक्षक दिवस मना रहे हैं. आखिर सावित्रीबाई फुले को याद किया जाना क्यों इतना जरूरी है?

दरअसल सावित्री बाई फुले ने उस दौर में लड़कियों और वंचित समुदायों के लिए शिक्षा का अलख जगाया, जब उनका पढ़ना-लिखना एक तरह से मना था. आज से करीब 170 साल पहले उन्होंने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर कई ऐसे क्रांतिकारी काम किए जिनको लेकर आज भी हमारा समाज संकीर्ण रवैया अपनाता है.

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 गूगल ने सावित्रीबाई फुले के सम्मान में अपना डूडल बनाया है

1. उन्होंने 1853 में बालहत्या प्रतिबंधक गृह स्थापित किया, जहां विधवाएं अपने बच्चों को जन्म दे सकती थीं और साथ न रह पाएं तो वहां छोड़कर जा भी जा सकती थीं. इन विधवाओं को उसके सगे-संबंधी या अन्य गर्भवती बना उन्हें छोड़ देते थे. सोचिए परिवार भी उनके साथ नहीं खड़ा होता था. और आज भी बिन ब्याही लड़कियां, विधवाएं या रेप पीड़िताएं भी गर्भवती हो जाएं तो समाज क्या स्वीकार कर पाता है. सोचिए सावित्रीबाई ने उस दौर में इतनी क्रांतिकारी थीं. उन्होंने विधवा विवाह की परंपरा भी चलाई थी.

2. उन्होंने पूना में 1848 में प्रथम बालिका विद्यालय खोला. उन्होंने कुल 18 स्कूल खोले जिनमें अधिकतर बालिकाएं और वंचित समुदाय के बच्चे पढ़ते थे, जिन्हें उस समय समाज में पढ़ने की मनाही थी. सावित्रीबाई जब स्कूल जाती थीं तो लोग उनपर गोबर वगैरह फेंक देते थे. ऐसे में वह दो एक साड़ी अपने थैले में ले जातीं ताकि स्कूल में चेंज करके पढ़ा सकें. जाहिर है, उलाहना-प्रताड़ना, कठिन संघर्ष से भी वह अपने मार्ग से डिगी नहीं.

3. उन्होंने मजदूरों के लिए रात्रि स्कूल खोला ताकि दिन में काम करने वाले मजदूर पढ़ सकें.

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 आज सावित्रीबाई फुले की 186वीं जयंति है

4. उन्होंने दलित-वंचितों के लिए अपने घर का कुआं खोल दिया था क्योंकि लोग उन्हें सार्वजिनक कुएं से पानी नहीं लेने देते.

5. 1897 में पूने में प्लेग फैला तो वह 66 वर्ष की उम्र में भी पूरे मन से लोगों की सेवा में जुट गईं. ऐसे में उन्हें भी प्लेग हो गया और इसी साल 10 मार्च को उनका निधन हो गया.

उनके काम की ऐसे कई मिसालें भरी पड़ी हैं. जाहिर है, केवल शिक्षा ही नहीं वे हर तरह से प्रगतिशील, परिपक्व, परिश्रमी और संघर्षशील थीं. उनको याद किए बगैर भारत में महिला अधिकार के आंदोलन की बात पूरी नहीं हो सकती. दरअसल इसकी शुरुआत का श्रेय उन्हें ही मिलना चाहिए. जाहिर है, उनके काम इतने क्रांतिकारी और महान हैं कि लोग उन्हें इस कदर याद कर रहे हैं.

लेखक

सरोज कुमार सरोज कुमार @krsaroj989

लेखक एक पत्रकार हैं

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