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Updated: 19 अप्रिल, 2021 11:41 AM
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रेमडेसवीर और फेबिफ्लू लगातार चर्चा में हैं. इन दवाइयों को कोरोना में इलाज के लिए मंजूरी मिली है. कई देश कोरोना महामारी से निपटने के लिए इनका इस्तेमाल कर रहे हैं. इलाज में दोनों दवाएं कारगर साबित हो रही हैं. महामारी के दूसरे फेज में अचानक से बढ़ रहे मामलों की वजह से इनकी मांग में काफी इजाफा दिख रहा है. दवाओं की पहुंच सब तक बनी रहे इसके लिए केंद्र सरकार कोशिश भी कर रही है. नरेंद्र मोदी सरकार ने रेमडेसवीर की कीमत में करीब 40 फीसदी कटौती कर दी है.

कटौती से पहले इसकी कीमत 5400 रुपये थी. अब ये 3500 रुपये में उपलब्ध है. मांग बढ़ने के बाद कालाबाजारी और स्टॉक करने के आरोप सामने आ रहे हैं. ऐसी खबरें भी आ चुकी हैं कि दोनों दवाएं बाजार से गायब हैं और लोग इन्हें पाने के लिए कितने भी रुपये खर्च करने को तैयार हैं. कई जगहों पर दवाओं की किल्लत बनी हुई है. आइए जानते हैं रेमडेसवीर और फेबिफ्लू के बारे में जो कोरोना मरीजों के लिए फिलहाल रामबाण से कम नहीं हैं.

पिछले साल अगस्त महीने में कोरोना महामारी के दौरान पहली बार रेमडेसवीर को तब ज्यादा चर्चा मिली जब एक मेडिकल वेबसाइट ने शिकागो यूनिवर्सिटी में दवाओं के फेज 3 क्लिनिकल ट्रायल के लीक नतीजों को लेकर रिपोर्ट छापी. रिपोर्ट के मुताबिक़ जिन 113 मरीजों का इलाज रेमडेसवीर के जरिए हुआ उनमें से ज्यादातर सिर्फ एक हफ्ते के अंदर डिस्चार्ज हो गए. इसमें से सिर्फ दो मरीजों की मौत हुई थी. हालांकि तब इसके इस्तेमाल को लेकर कुछ चिंताएं भी जाहिर की गई थीं. लेकिन उस वक्त कोरोना ट्रीटमेंट को लेकर बहुत सारी चीजें साफ नहीं थीं.

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WHO ने नहीं माना सटीक दवा

मुश्किल हालात में रेमडेसवीर के नतीजों ने दुनिया को उम्मीद से भर दिया. करीब 50 देशों ने कोरोना के इलाज में आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति प्रदान कर दी. भारत भी इसमें शामिल है. दूसरी ओर कुछ विशेषज्ञों और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोरोना के इलाज में इसे सटीक दवा नहीं माना है. लेकिन नतीजों की वजह से इसका इस्तेमाल हो रहा है.

हेपटाइसिस सी के लिए बनी थी इलाज हो रहा है कोरोना का

ये एंटीवायरल मेडिसिन इंजेक्शन है जिसे बायोफार्मास्यूटिकल कंपनी गिलियड साइंसेज ने बनाया है. दवा 12 साल पहले 2009 में अस्तित्व में आई थी. ये भी कम दिलचस्प नहीं कि रेमडेसवीर को खासतौर पर हेपटाइसिस सी के इलाज के लिए तैयार किया गया था. लेकिन बाद में ये कुछ सांस से जुड़ी महामारियों के इलाज में इस्तेमाल किया गया.

कोरोना से पहले इबोला महामारी के इलाज में भी इसका प्रयोग हुआ. बताने की जरूरत नहीं है कि कोरोना में संक्रमण के बाद मरीज के इलाज में इसकी क्या भूमिका है. इसे दवा की भारी मांग को देखते हुए आसानी से समझा जा सकता है. फिलहाल अलग-अलग फार्मा कंपनियां कई देशों में इसका उत्पादन कर रही हैं. भारत में भी.

भारत की दवा है फेबिफ्लू

फेबिफ्लू को भारतीय कंपनी ग्लेनमार्क फार्मास्यूटिकल ने बनाया है. यह दवा एंटीवायरल है जो टैबलेट के रूप में उपलब्ध है. क्लिनिकल ट्रायल में इसके नतीजे बेहद प्रभावशाली थे. इसी वजह से कोरोना इलाज के लिए DGCI ने अप्रूवल दे दिया था. दवा 200 और 400 मिलीग्राम के डोज में उपलब्ध है.

एक दवा ने बढ़ा दी कंपनी की मार्केट साख

दवा के नतीजे अच्छे मिलने की वजह से पिछले साल इसकी काफी डिमांड हुई. भारी मांग के असर की वजह से बाजार में कंपनी की साख को भी बहुत फायदा मिला. महामारी की शुरुआत के समय मार्च महीने में कंपनी के शेयर का भाव 161.65 रुपये था जो जून 2020 तक 528.05 रुपये के स्तर पर पहुंच गया. 200 मिलीग्राम के 34 टेबलेट स्ट्रिप की कीमत करीब 1300 रुपये से ज्यादा है.

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