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Updated: 11 मई, 2019 02:14 PM
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Ramzan का पाक महीना चल रहा है और दुनिया भर के करोड़ों लोग रोज़ा रख रहे हैं. रोज़ा रखना और दिन भर काम करना काफी मुश्किल होता है, लेकिन धार्मिक आस्था लोगों को शक्ति देती है पूरे महीने इस तरह के कड़े उपवास करने का. चाहें रमजान के रोज़े हों या फिर नवरात्र के उपवास ये सभी धार्मिक नियम उन लोगों के लिए बेहद मुश्किल हो जाते हैं जिन्हें स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं होती हैं. खास तौर पर diabetes वाले मरीजों के लिए इस तरह के कड़े नियम गंभीर समस्याएं लेकर आ सकते हैं. गर्मी के दिनों में जब वैसे भी दिन बड़े होते हैं किसी डायबिटिक मरीज के लिए दिन भर भूखे-प्यासे रहना बहुत मुश्किल है. Ramzan के दौरान डायबिटीज से ग्रसित लोगों को रोज़े न रखने की हिदायत दी जाती है क्योंकि गर्मी के दिन आसानी से 12 से 16 घंटे का रोज़ा हो सकता है.

Indian Heart Association के मुताबिक भारत में करीब 62 मिलियन लोग डायबिटीज की चपेट में हैं. यानी 7.1% वयस्क आबादी को इससे फर्क पड़ता है. दिन प्रति दिन डायबिटीज के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है. ऐसे लोगों में अनेकों मुस्लिम होंगे. डायबिटीज के मरीजों के लिए न सिर्फ रोज़ा रखना बल्कि ऐसे समय में रोज़ा तोड़ना भी समस्या हो जाती है क्योंकि रोज़ा तोड़ते हुए एकदम से शुगर लेवल बढ़ जाता है और ऐसे में शरीर पर गलत असर होते हैं. पर क्या किया जाए? अगर किसी को डायबिटीज है और फिर भी उसे रोज़े रखने हैं तो इसके लिए क्या किया जाए?

रोज़ा, रमजान, इस्लाम, डायबिटीजरमजान के महीने में रोज़ा रखने से पहले डायबिटिक मरीजों को ये ध्यान रखना चाहिए.

क्या कहती है कुरान?

कुरान के मुताबिक रोज़ा रखते समय किसी भी हालत में इंसान को अपने शरीर को कोई तकलीफ नहीं पहुंचानी चाहिए. अगर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं ज्यादा खराब हैं तो ऐसे में रोज़े नहीं रखने चाहिए.

अपने शरीर का ध्यान न रखना इसीलिए इस्लाम के खिलाफ माना गया है. अगर डायबिटीज के मरीजों को रोज़ा रखना है तो वो सबसे पहले अपने डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं.

कई मामलों में डॉक्टर रोज़े रखने की सलाह दे देते हैं, लेकिन इसके साथ ही कई चेतावनियां भी देते हैं. सही मामले में ये अलग-अलग लोगों के हिसाब से अलग हो सकती हैं. अगर किसी को टाइप 2 या 3 डायबिटीज है तो उसके लिए रोज़े रखना सही नहीं है. Diabetes UK (ब्रिटेन की एक स्वास्थ्य सपोर्ट कम्युनिटी) के अनुसार रोज़े रखने की सबसे बड़ी दिक्कत डिहाइड्रेशन और हाइपोग्लाइसीमिया होती है. जिन लोगों को डायबिटीज की वजह से किडनी या दिल संबंधित समस्याएं हैं उनका रोज़े रखना शारीरिक समस्याओं को और बढ़ा ही देगा.

अगर कोई डायबिटिक मरीज रोज़े रखना चाहे तो उसे पहले ये काम कर लेने चाहिए-

1. डॉक्टर से सलाह लें-

अपने डॉक्टर और मेडिकल टीम से लगातार संपर्क में रहें. अपने खाने-पीने में बदलाव और शारीरिक मेहनत से जुड़े सभी फैसले लेने से पहले सलाह और सहमति जरूर ले लें.

2. पूरे महीने की जगह कुछ दिन का रोज़ा रखने की कोशिश करें-

अगर डॉक्टर हां कहता है तो पहले कुछ दिन का रोज़ा रखकर देखें. अगर शरीर में कोई तकलीफ नहीं होती है तो आगे बढ़ाएं. क्योंकि अगर समस्या होती है तो इससे खराब बात और कुछ नहीं होगी. साथ ही, अपना ग्लूकोज लेवल दिन में तीन बार चेक करें. अपने ग्लूकोज लेवल को डॉक्टर से भी साझा करें और पूछें कि क्या ये आपके शरीर के लिए सही है?

3. सहरी को कभी न छोड़ें-

ज्यादातर लोग अपने रोज़े के समय देर रात खाना खा लेते हैं और सुबह उठने के आलस में सहरी छोड़ देते हैं. अगर किसी को डायबिटीज है तो ये आदत खतरनाक साबित हो सकती है. ऐसे लोगों के लिए रमजान की सहरी दिन का सबसे अहम भोजन हो सकता है. इससे ये तय हो जाएगा कि शरीर का ग्लूकोज लेवल बहुत ज्यादा बढ़ेगा या घटेगा नहीं और दिन आराम से निकल जाएगा.

4. सहरी का खाना कैसा खाएं?

ओटमील, होल ग्रेन ब्रेड, स्टार्च वाली सब्जियों का इस्तेमाल करें. ऐसा खाना चुनने की कोशिश करें जिसमें कम GI (Glycaemic Index) हो जिससे कार्ब्स धीरे-धीरे शरीर में जाएंगे. इसमें कई प्रकार की दालें भी आ जाएंगी. इसी के साथ, ज्यादा से ज्यादा पानी भी पी लीजिए.

5. रोज़ा तोड़ने के लिए क्या लें?

इफ्तार के समय शक्कर वाली मिठाइयों और तले हुए खाने से दूर रहें ताकि ये तय हो सके कि ग्लूकोज लेवल सही रहे. जिस तरह का खाना सहरी के समय खाया था उसी तरह का खाना खाने की कोशिश करें. साथ ही रात में भी काफी ज्यादा पानी पीजिए.

अगर किसी को लगता है कि उसका ग्लूकोज लेवल बहुत ज्यादा बढ़-घट रहा है या फिर उसे चक्कर आ रहे हैं, शरीर में पानी की कमी हो रही है तो उसे तुरंत रोज़ा तोड़ देना चाहिए. अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ करना सही नहीं है. साथ ही, हमेशा ग्लूकोज़ का एक पैकेट या छोटी सी टॉफी अपने साथ रखें.

बच्चे, प्रेग्नेंट महिलाएं, महावारी वाली महिलाएं, बीमार लोग, शारीरिक रूप से कमजोर लोग, यात्रा कर रहे लोगों के लिए रमज़ान में रोज़े रखने की मान्यता नहीं है और इसलिए अगर रोज़ा टूट भी जाता है तो भी डायबिटिक लोगों को चिंता करने की जरूरत नहीं है. इसकी जगह फिदिया (भूखे को खाना खिलाना, गरीब को खाना खिलाना) किया जा सकता है.

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