New

होम -> समाज

 |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 16 जून, 2019 06:57 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
  • Total Shares

भारत में पीरियड्स को लेकर जितनी हाईतौबा मचाई जाती है वो शायद हर उस लड़की को पता होगा जो एक रूढ़िवादी परिवार से आती है. पीरियड्स के समय खाने-पीने-उठने-बैठने तक के लिए नियम बदल दिए जाते हैं और कई परिवारों में तो पीरियड्स का दर्द झेल रही लड़की को जमीन पर सुला दिया जाता है. गाहे-बगाहे ऐसी समस्याएं सामने आ ही जाती हैं. कई जगहों पर तो नियम इतने कड़े होते हैं कि लड़कियों को पीरियड्स में घर से बाहर रहना पड़ता है. नहीं ये सिर्फ नेपाल का नियम नहीं बल्कि ये तमिलनाडु जैसे राज्य के ग्रामीण इलाकों की हालत भी है. गाज़ा तूफान के समय तमिलनाडु में एक 14 साल की लड़की की मौत इसीलिए हो गई थी क्योंकि उसे घर से बाहर सुलाया गया था वो भी तूफान के समय, सिर्फ इसलिए क्योंकि उसे पीरियड्स हो रहे थे. जहां एक ओर भारत में ऐसा माहौल है वहीं देश के एक हिस्से में बाकायदा पीरियड्स का त्योहार मनाया जाता है. ये ओडिशा (Odisha) का राजा परब/रज पर्व (Raja Parba) जो महिलाओं के रज्सवला होने का यानी पीरियड्स का त्योहार है.

ओडिशा के इस त्योहार को तीन दिन मनाया जाता है और इस साल Raja Parba 15 जून से लेकर 18 जून तक मनाया जा रहा है. इस त्योहार की खासियत ये है कि यहां महिलाओं को बेहद इज्जत दी जाती है और ये उनके पीरियड्स को गंदगी नहीं बल्कि पूज्यनीय मानने का त्योहार है.

इस त्योहार में शादीशुदा महिलाओं और कुवांरी लड़कियों सभी को तीन दिनों तक खास तवज्जो दी जाती है.इस त्योहार में शादीशुदा महिलाओं और कुवांरी लड़कियों सभी को तीन दिनों तक खास तवज्जो दी जाती है.

क्या है पौराणिक मान्यता?

इस त्योहार की खासियत ये है कि इसमें महिलाओं के ही नहीं बल्कि धरती के उपजाऊ होने की खुशी भी मनाई जाती है. इसे भूदेवी यानी धरती के लिए मनाया जाता है. ओडिशा में मान्यता है कि प्रभु जगन्नाथ (विष्णु) की पत्नी भूदेवी हैं और बारिश की शुरुआत से पहले वो रजस्वला होती हैं. इस समय पृथ्वी को आराम दिया जाता है और सारे खेती-किसानी के काम बंद कर दिए जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि इसके बाद पृथ्वी और भी ज्यादा उपजाऊ हो जाती है.

जिस तरह से पृथ्वी उपजाऊ होती है वैसे ही महिलाओं को भी इस त्योहार में खास स्थान दिया जाता है. उन्हें 4 दिन कुछ काम नहीं करना होता. आराम करने दिया जाता है. उन्हें नए कपड़े पहन कर त्योहार में हिस्सा लेना होता है.

हर दिन का होता है अपना महत्व-

जून के महीने में मनाए जाने वाले इस त्योहार के हर दिन का अलग महत्व होता है. पहले दिन को 'पहली रजा' कहा जाता है. दूसरा दिन मिथुन संक्रांति कहलाता है, तीसरा दिन 'भू दाहा', 'या बासी रजा' कहलाता है. चौथा दिन यानी त्योहार का आखिरी दिन वसुमति स्नान कहलाता है. इसमें महिलाओं को स्नान कर सजना-संवरना होता है. कुछ हिस्सों में महिलाओं को हल्दी भी पीसनी होती है.

इसके बाद पृथ्वी का पूजन किया जाता है. हर तरह का फल भेंठ चढ़ाया जाता है. इस त्योहार की शुरुआत वैसे 'पहली रजा' के पहले ही हो जाती है. उस दिन को सजाबजा कहा जाता है जहां इस त्योहार की तैयारी होती है. घर को साफ किया जाता है, किचन को साफ किया जाता है. साथ ही, खलबट्टे को भी धोया जाता है. सभी मसाले अलग रख दिए जाते हैं. इन तीन दिनों में महिलाओं को किचन में नहीं जाना होता. हालांकि, पहले दो दिनों में महिलाओं को नहाना भी नहीं होता. तीसरे दिन में उन्हें बिना पकाया हुआ भोजन जैसे फलाहार लेना होता है. इसके अलावा, उन्हें नमक का सेवन भी नहीं करना होता उस दिन. उन्हें काम से ही आजादी नहीं मिलती उन्हें सजना संवरना भी होता है. महिलाओं को अल्ता लगाना होता है. नए कपड़ों के साथ गहने भी पहनने होते हैं. साथ ही अंबूबाची मेला (Ambubachi mela) में भी जाना होता है.

इस त्योहार का पूरे ओडिशा में काफी महत्व है.इस त्योहार का पूरे ओडिशा में काफी महत्व है.

इस त्योहार की एक और खासियत है. यहां झूले भी बहुत जरूरी हैं. बरगद के पेड़ों पर झूले लगाए जाते हैं. 'राम डोली', 'चरकी डोली', 'पाता डोली', 'डांडी डोली' ये सब अलग-अलग तरह के झूले हैं. इसी के साथ, कई तरह के लोक गीत गाए जाते हैं. महिलाएं आपस में कई तरह के खेल खेलती हैं और इसे पूरी तरह से पारंपरिक तरीके से किया जाता है. इस त्योहार में पुरुष भी हिस्सा लेते हैं. वो बढ़िया व्यंजन बनाते हैं और उनके भी अलग खेल होते हैं. ये खेती करने वाले परिवारों के लिए बेहद खास त्योहार है और महिलाएं और पुरुष सभी के लिए ये एक ब्रेक की तरह होता है क्योंकि मॉनसून आने के बाद सभी का काम बेहद अहम हो जाता है और पृथ्वी और भी ज्यादा उपजाऊ हो जाती है.

जहां भारत जैसे देश में एक हिस्से में तूफान में भी लड़की को बाहर सुला दिया जाता है क्योंकि उसके पीरियड्स होते हैं वहीं दूसरी ओर महिलाओं और लड़कियों के पीरियड्स को ही पूजने वाला ये त्योहार बहुत खास है. अपनी अलग पहचान वाले इस त्योहार के बारे में शायद पूरे भारत को पता भी नहीं होगा. भारत के कई हिस्सों में इस तरह के त्योहार मनाए जाते हैं, महिलाओं को आराम देने की बात की जाती है, उन्हें खुशियां मनाने की आज़ादी होती है, फिर भी अधिकतर हिस्से में पीरियड्स को गंदगी ही माना जाता है. न तो उसे समझने की कोई कोशिश करता है न ही उसके समय महिलाओं को सपोर्ट करने के बारे में सोचा जाता है.

कई वैज्ञानिक रिपोर्ट भी कहती हैं कि महिलाओं को पीरियड्स के समय के दर्द और हार्मोनल बदलाव के समय शारीरिक और मानसिक सपोर्ट चाहिए होता है, लेकिन उनके साथ क्या होता है ये हमें पता है. ऐसे में ओडिशा का ये त्योहार कुछ सवाल भी खड़े करता है. क्या पूरे देश में इसी तरह कभी महिलाओं के पीरियड्स को त्योहार का रूप दिया जा सकता है? भारत में कामाख्या देवी का मंदिर भी है वहां क्या ओडिशा के बाहर भी कोई पीरियड्स के इस त्योहार के लिए खुशियां मना पाएगा? अगर इस सवाल का जवाब हां है तो यकीनन महिलाओं की कई मुश्किलें दूर हो जाएंगी और पूरे भारत में पीरियड्स को गंदगी मानने का रिवाज खत्म हो जाएगा, अगर नहीं तो फिर सिर्फ ओडिशा में ही कुछ दिन के लिए ही सही महिलाएं त्योहार मनाती आई हैं और ऐसे ही मनाती रहेंगी. 

ये भी पढ़ें-

देरी से पिता बनना नई पीढ़ी के लिए खतरे की घंटी!

जिसने Delhi Metro को कामयाबी दिलाई उसकी तड़प जायज है, और सलाह भी...

लेखक

श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय