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Updated: 16 जुलाई, 2015 12:16 PM
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जनता ने एक चायवाले को देश का प्रधानमंत्री बनते देखा है. हकीकत में जनता ने ही बनाया है. पीएम मोदी की सफलता की कहानी सवा अरब देशवासियों की सफलता की कहानी है. जिन्होंने किसी और को वोट दिया उनके लिए भी, क्योंकि लोकतंत्र ऐसे ही काम करता है. लेकिन कोई चायवाला अकेले दम पर एक कंपनी खड़ी कर दे, एक किताब लिख डाले तो यह सफलता के साथ-साथ संघर्ष की भी कहानी बन जाती है. अमीन शेख की कहानी कुछ ऐसी ही है - हम सब के लिए प्रेरणादायक.

अमीन शेख. पांच वर्ष की उम्र में ही मुंबई में एक चाय की दुकान पर काम करना शुरू कर दिया. एक दिन चाय की पूरी ट्रे गिर गई तो डर कर भाग गए. अगले तीन साल स्टेशन पर बिताए - जूतों की पॉलिश कर, ट्रेन में गाना गाकर और कूड़ों से खाना खाकर. 17 साल के बाद वही अमीन शेख फर्राटे से अंग्रेजी बोलते हैं, एक ट्रैवल कंपनी के मालिक हैं, अपने ड्रीम डेस्टिनेशन बार्सिलोना घूम चुके हैं और तो और एक किताब भी लिख डाली है.

आरएसएस अगर पीएम मोदी की सफलता की रीढ़ है तो अमीन शेख के लिए वही काम स्नेह सदन ने किया. बेघर बच्चों को आसरा देने वाले स्नेह सदन में आने से पहले औरों ने भी अमीन को 'अच्छी दुनिया' के सपने दिखा उनके साथ जबरन अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए थे. इसीलिए जब सिस्टर सेराफिना और फादर प्लैसी ने अमीन शेख को स्नेह सदन में आकर रहने को कहा तो वह डरे हुए थे. अंततः वह मान गए और उनकी जिंदगी बदल गई. यही वो जगह थी, जहां अमीन अगले 13 साल रहे - कभी ड्राइवर की नौकरी की तो कभी किसी के मैनेजर बने. फर्राटेदार अंग्रेजी भी यहीं सिखी.

एक क्रिसमस पर उन्हें मुंहमांगा तोहफा मिला - बार्सिलोना की सैर. सपना पूरा हुआ. घूम कर लौटे तो अपने बॉस की मदद से एक ट्रैवल कंपनी खोल दी. नाम रखा - स्नेह ट्रैवल. कंपनी चल निकली. इसके बाद दोस्तों ने अमीन को उनके संघर्ष की कहानी को किताब की शक्ल देनी की जिद की. जिसने बचपन में कभी कोई किताब नहीं देखी, वह किताब लिखने बैठ गया. दोस्तों-पड़ोसियों ने संपादन का काम कर दिया. स्पेन के एक दोस्त ने किताब भी छाप दी. नाम है - बॉम्बे/मुंबई : लाइफ इज लाइफ, आई एम बिकाउज ऑफ यू (Bombay/Mumbai : Life is Life, I am because of you).

अमीन रुके नहीं हैं. 'बॉम्बे टू बार्सिलोना' नाम से एक कैफे खोलना चाहते हैं. वह चाहते हैं कि इसमें उन्हीं की तरह स्ट्रीट चिल्ड्रेन काम करें, अपने पैरों पर खड़े हों. अमीन बताते हैं - 5 साल की उम्र में भी मैं भागता था, अब भी भाग रहा हूं. तब मैं डर से भागता था, अब मैं विश्वास के साथ भागता हूं. विश्वास ताकि मैं बाकी के अमीन शेख की मदद कर सकूं.

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लेखक

चंदन कुमार चंदन कुमार @chandank.journalist

लेखक iChowk.in में पत्रकार हैं.

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