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Updated: 07 जुलाई, 2015 07:02 PM
साध्वी खोसला
साध्वी खोसला
  @sadhavi.dalal
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हरित क्रांति की भूमि और मेरा बेहद संपन्न राज्य इन दिनों एक गंभीर समस्या से गुजर रहा है. पंजाब के 70 प्रतिशत से ज्यादा नौजवान ड्रग्स की लत के शिकार हैं. हमने अपने युवाओं की एक पूरी पीढ़ी खालिस्तान आतंकवाद में खो दी. अब हम अपनी एक और पीढ़ी नशे की लत के शिकार हुए युवकों के तौर पर खो रहे हैं. पंजाब की गिरती अर्थव्यवस्था, निराशा और बेरोजगारी की बढ़ती दर ने भी यहां ड्रग्स की मांग बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई है.

एक समय, हर पंजाबी के लिए यह गर्व का विषय होता था कि वह भारत के सबसे समृद्ध राज्य से ताल्लुक रखता है. ऐसा राज्य जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में सर्वाधिक योगदान देता है. आज पंजाब के लोगों को ड्रग्स से जोड़ कर देखा जाता है. यह हमारे लिए किसी शर्म से कम नहीं है. सेना में भर्ती होने वालों में से सबसे ज्यादा पंजाब से होते हैं. क्या आज हम एक स्वस्थ सैनिक तैयार करने की क्षमता रखते हैं. आज जब युवा खुद को संभाल कर नहीं रख सकते तो क्या वे देश की रक्षा कर सकेंगे? किसी भी हाल में यह किसका नुकसान है?

पंजाब में आई इस बर्बादी के लिए किसको जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए. हालात इतनी तेजी से खराब हो रहे हैं कि विशेषज्ञ अब राज्य के भविष्य पर सवाल खड़े करने लगे हैं. पंजाब में पिछले आठ साल से शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी की गठबंधन वाली सरकार है. इससे पहले सत्ता कांग्रेस के हाथों में थी. हमने पिछले 15 वर्षों में यहां ड्रग्स की लत में बढ़ोत्तरी देखी है. लेकिन पिछले पांच वर्षों में हालात तीन से चार गुणा तेजी से खराब हुए हैं. हम कह सकते हैं पंजाब अभी बुरी तरह से नशे की लत से जकड़ा हुआ है. इस स्थिति से हमें कौन बचाएगा. क्या अकाली दल जिसके उपमुख्यमंत्री अपने ही साले का बचाव करने में जुटे हैं, जिस पर ड्रग माफिया का प्रमुख एजेंट होने का आरोप है या फिर मुख्यमंत्री जिनकी छवि एक अयोग्य शासक जैसी बन गई है, जो न ही अपना घर संभाल सकते हैं और न ही राज्य.

पिछले एक दशक में भले ही राज्य के आर्थिक हालात बद से बदतर हुए हों. लेकिन बादल की अपनी संपत्ति में बेहिसाब बढ़ोतरी हुई है. केंद्र में बड़ी बहुमत के साथ आई बीजेपी, मोदी लहर के बावजूद पंजाब में लोगों का दिल जीतने में नाकाम रही. इसका बहुत सीधा कारण है. लोग राज्य की मौजूदा सरकार को माफ करने के मूड में नहीं हैं. बीजेपी भी राज्य में सरकार का हिस्सा है इसलिए वह अपनी जिम्मेदारी से नहीं भाग सकती. बीजेपी ने राज्य में अपनी आंखे बंद रखी और अपने सहयोगी दल को राज्य को बर्बाद करने की खुली छूट दी.

ऐसे में बीजेपी के लिए पंजाब के लोगों का विश्वास जीतना बेहद मुश्किल होगा. शायद एक रास्ता हो सकता है. उन्हें अकाली दल से गठबंधन तोड़ अपने दम पर आगामी विधान सभा चुनाव में उतरना चाहिए. कांग्रेस की भी बात कर लेते हैं. करीब 125 साल पुरानी यह पार्टी केंद्र में खत्म सी हो गई है. साथ ही पार्टी को नेतृत्व को लेकर भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. क्या कांग्रेस पंजाब को बचाने में कामयाब होगी? खासकर तब जब केंद्र में उसकी स्थिति बेहद कमजोर है और राज्य में उसके वोट शेयर में भारी कमी आई है. पिछले साल हुए आम चुनाव में दिल्ली और पूरे देश ने आम आदमी पार्टी (आप) को नकार दिया था. तब यह पार्टी पंजाब में चार सीट जीतने में कामयाब रही. यह दर्शाता है कि इस राज्य के लोग कितनी बेसब्री से किसी मसीहा के आने का इंतजार कर रहे हैं जो उनके राज्य को बचाए और खराब राजनीति से उन्हें मुक्त कराए.

अब हालांकि एक-दूसरे पर आरोप लगाने की यह राजनीति ज्यादा दिनों तक नहीं चलने वाली है. ऐसी राजनीति करने वाली पार्टियां अब वोटरों को मूर्ख नहीं बना सकतीं. एक साथ मिलकर काम करने की बजाय यह पार्टियां आरोप-प्रत्यारोप में लगी हुई हैं. ऐसे में कौन होगा यहां नया मसीहा?

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लेखक

साध्वी खोसला साध्वी खोसला @sadhavi.dalal

लेखिका राजनीतिक विश्लेषक हैं.

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