तारीख पे तारीख और 23 साल बाद 6 महीने की सजा
हम सब ने मुकदमों के बरसों-बरस चलने, किसी आरोपी या शिकायतकर्ता की मौत के बाद फैसलों के आने, अचानक फैसलों के पलट जाने की कितनी कहानियां सुनी होंगी. और इन सबके बीच मुंबई की एक कहानी ये भी.
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तो एक बार फिर ये बात साबित हो ही गई कि न्याय के घर में देर है अंधेर नहीं. हम सब ने मुकदमों के बरसों-बरस चलने, किसी आरोपी या शिकायतकर्ता की मौत के बाद फैसलों के आने, अचानक फैसलों के पलट जाने की कितनी कहानियां सुनी होंगी. तारीख पर तारीख लगाई गई लेकिन सलमान खान की गाड़ी कौन चला रहा था, यह आखिरकार रहस्य की आगोश में चला गया. इन सब को लेकर हम कई बार निराश हुए, हताश हुए. कभी गुस्से का इजहार किया. तो कई बार अच्छे फैसलों का स्वागत भी हुआ. लेकिन इन सबके बीच मुंबई की एक कहानी ये भी. ये हमारे ही न्याय व्यवस्था की उस विडंबना की कहानी कहता है जिसमें सुधार को लेकर बातें हर बार होती हैं लेकिन होता कुछ नहीं.
23 साल बाद 6 महीने की सजा
मामला बॉम्बे हाई कोर्ट का है जहां 23 साल बाद अदालत ने एक पुलिस कॉन्स्टेबल सब्बीर शेख को 800 रुपये घूस लेने का दोषी ठहराया है और छह महीने जेल की सजा भी सुनाई है. सब्बीर पर 1992 में एक दूकानदार पलराज नायडू से घूस लेने का आरोप था. नायडू की शिकायत के अनुसार सब्बीर ने तब उन पर आरोप लगाया था कि वे अपने दुकान से अवैध तरीके से शराब की बिक्री करते हैं. इसके बाद सब्बीर ने नायडू से कहा कि अगर वे चाहते हैं कि केस दर्ज न हो तो 1000 रुपये रिश्वत दें. बात आखिरकार 800 रुपये पर तय हुई. लेकिन नायडू ने तभी एंटी-करप्शन ऑफिस में शिकायत दर्ज करा दी. उनकी शिकायत के आधार पर पुलिस स्टेशन के अंदर ही जाल बिछाया गया और एंटी-करप्शन विभाग ने सब्बीर को गिरफ्तार कर लिया.
ट्रायल कोर्ट ने 1995 में सब्बीर को एक साल की सजा सुनाई. लेकिन सब्बीर साहब इसे लेकर हाई कोर्ट पहुंच गए. मामला हाई कोर्ट में पहुंचने के बीस साल बाद ये फैसला आया है. अब सवाल है कि पूरा मामला किस पर भारी पड़ा. शिकायत करने वाले पर जो बेचारे 800 बचाने की कोशिश में पांच-सात हजार तो कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने में फूंक ही चूके होंगे या दोषी पर जिसे अब छह महीने की सजा मिली है.
भारत में 'रिश्वत कल्चर' और कोर्ट के सामने चुनौती
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के 2008 के एक सर्वे के अनुसार भारत में 40 फीसदी लोगों ने स्वीकार किया कि अपना काम कराने के लिए प्रत्यक्ष रूप से उनसे रिश्वत की मांग की गई या किसी संपर्क की जरूरत पड़ी. इसी ऐजेंसी की 2015 की रिपोर्ट कहती है कि 175 देशों की सूची में भारत भ्रष्टाचार के मामले में 85वें पायदान पर है. भ्रष्टाचार तो अपनी जगह है ही. लेकिन चुनौती तो हमारी अदालतों के सामने भी है. एक आंकड़े के अनुसार हमारे जेलों में रह रहे हर तीन में से दो लोग ऐसे हैं जिन पर केस चल ही रहा है. मतलब, हो सकता है कि उनमें से कई दोषी ही न हों. देश में तीन करोड़ के आसपास केस पेंडिंग हैं. अदालतों में जजों की भारी कमी है सो अलग. सवाल है कि Justice delayed is justice denied... का नारा तो हम सभी लगाते हैं, लेकिन असल रूप में इसका अनुकरण कब शुरू होगा?

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