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Updated: 18 सितम्बर, 2015 01:01 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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19 साल की एक लड़की ने अपने जीवन के हर बरस में जो कुछ भी भोगा उसे नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली के विद्यार्थियों के एक स्वतंत्र ब्लॉगनुमा अखबार पर लिख डाला है, जिसे पढ़कर शर्म आएगी हर आदमी को और आंखें नम हो जाएंगी हर औरत की.

युवती की पोस्‍ट अंग्रेजी में है, जिसका हिंदी अनुवाद यहां है-

छह साल की उम्र में जब लड़कियां खिलौनों से खेलती हैं, तब उसे खेलने के लिए एक पुरुष ने कुछ और ही दे दिया, और बताया कि 'इससे खेलो, ये भी खेल ही तो है'

सातवें साल में बच्चे दूसरी या तीसरी क्लास में होते हैं, पर वो बच्चे रहकर भी बड़ों से कितना कुछ सीखते हैं. उस लड़की की क्लास के एक लड़के ने जब उसे चूमना चाहा, तो बाकी लड़कों ने बहुत हल्ला किया था. लड़के ने उसे पीछे से बाहों में भर लिया था. और गंदी हंसी हंसता रहा. उसने उसकी आंखों में मिट्टी डाली और प्रिंसिपल के पास भेज दिया.

जब वो आठ साल की हुई, उसके एक बुजुर्ग शिक्षक ने उसे क्लास के पीछे रहने को कहा. वो अपने कंधों पर उसे बैठाते और उसे 'प्यारी बच्ची' कहते. शिक्षक की लाडली थी तो दूसरी लड़कियां उससे घृणा करने लगीं,  कोई उसके साथ खाना भी नहीं खाता था.

जब वो नौ साल की हुई तो स्कूल बस में एक बड़ी लड़की ने उसे कहा, वो तभी उससे दोस्ती करेगी जब वो उसके लिए अपनी स्कर्ट ऊपर उठाएगी. उसे करना पड़ा, क्योंकि वो उसकी दोस्त बनना चाहती थी.

दस साल की होने पर उसके एक रिश्तेदार ने एक मांग रख दी कि वो जब भी मिले उसके गालों को चूमे. उस रिश्तेदार के आने पर अक्सर वो बिस्तर के नीचे छुप जाया करती थी. और इस व्यवहार की वजह से उसे असभ्य कहा जाता.

जब वो ग्यारह साल की हुई तो उसके ऑटो वाले ने कहा वो उसे तभी छोड़ेंगे जब वो हर रोज उनको गले लगने देगी. उस ऑटोवाले के पास से गंदी, सिगरेट जैसी गंध आती थी.

अपने बारहवें साल में, जब वो अपनी मां के साथ जा रही थी, उसने देखा कि एक आदमी उसकी मां की छातियों को छूते हुए निकल गया. मां ने उसे थप्पड़ मारा और लोग मां को ही शांत होने के लिए कह रहे थे, लेकिन मां शांत नहीं हुईं. 

ये किशोरावस्था की शुरुआत थी. तेरह साल की होने पर वो एक रेस्टोरेन्ट से सिर्फ इसलिए बाहर आ गई क्योंकि एक आदमी उसके पास आता हुआ मैस्टरबेट कर रहा था. पास से गुजरते हुए उसने कामुक अंदाज में आंख मारी, इसपर वो और उसके दोस्त सन्न रह गए और उन्होंने शर्मिंदा होकर खुद ही नजरें झुका लीं.   

वो चौदह साल की हुई. ट्यूशन से आते वक्त एक जवान आदमी अपनी महंगी कार में बैठकर उसका पीछा करता था. उसने उस आदमी के घर छोड़ने के आग्रह को ठुकराया और उसकी दी हुई चॉक्लेट्स भी नहीं लीं, वो एक घंटे तक उसकी गली के बाहर खड़ा रहा. उस आदमी ने कहा 'तुम्हें डरा हुआ देखकर मैं और भी उत्तेजित होता हूं.'  

पंद्रह साल की होने पर, बस में उसके साथ जबरदस्ती की गई. वो इस बात से शर्मिंदा थी और इसीलिए सिर्फ अपनी सहेली को बताया. इस बात को लेकर उसके मन में गुस्सा था कि उसी वक्त वो क्यों नहीं चिल्ला सकी. वो अकेली थी. उसने डरते-डरते विरोध भी किया लेकिन वो उस पर जोर से चिल्लाया. उसकी चुप्पी का असर ये हुआ कि उसके साथ अक्सर ये होने लगा.

वो अब सोलह साल की हो गई थी. उसने देखा कि फेसबुक पर इनबॉक्स मैसेज का भी एक सेक्शन है, जिसमें अपरिचित लोगों के आए संदेश खुद-ब-खुद वहां इकट्ठे होते रहते हैं. उत्सुकता से उसने उन्हें खोला और ऐसे आदमियों के अनगिनत संदेश वहां पाए, जिनसे वो पहले कभी नहीं मिली थी. उन संदेशों में उसे सेक्सी बुलाया गया, अशिष्ट भाषा का इस्तेमाल किया गया और उससे अश्लील तस्वीरों की मांग भी की गई थी.       

सत्रह साल की होने पर वो मदद के लिए तब चिल्लाई जब एक भीड़-भाड़ वाली सड़क पर एक शराबी ने उसका यौन शोषण करने की कोशिश की. मदद के लिए कोई नहीं आया बल्कि लोग वहां से जल्दी से भागते नजर आए.

किशोरावस्था खत्म हुई और अब वो वयस्क हो गई थी. अठारहवें साल में उसे समझाया गया कि शोषण इतना बुरा नहीं हो सकता, जितना महिलाएं बताती हैं. उसे समझाया गया कि वो देख समझ कर कपड़े पहने, उसे अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए, लेकिन इतनी ज्यादा भी नहीं क्योंकि एक महिला को विनम्र होना भी जरूरी है, उसे ये भी समझाया गया कि बजाए ज्यादा गुस्सा करने के उसे हमेशा मदद मांगनी चाहिए. उसे रात में घर पर ही रहना चाहिए क्योंकि बाहर रहना सुरक्षित नहीं होता, दिन के उजाले में कोई तुम्हारा शोषण नहीं कर सकता. सुरक्षित रहने के लिए उसके साथ हमेशा कम से कम दो लड़के रहने चाहिए. और ये भी समझाया गया कि एक लड़की होना इतना भी मुश्किल नहीं.

अब वो उन्नीस साल की हो गई.

और थक चुकी है.

उन्नीस बरस की इस लड़की ने एक कविता में अपने सारे अनुभव, सारे दर्द उड़ेल दिए, पर बदकिस्मती से ये दर्द सिर्फ उसका नहीं है, बल्कि इस देश में रहने वाली हर लड़की का है, जो अपने जीवन के कड़वे अनुभवों को चुपचाप सहती जाती है... (कुछ ज्यादा तो कुछ कम). और हम शान से कहते हैं कि लड़की होना इतना भी मुश्किल नहीं.

ये है मूल पोस्‍ट-

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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