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Updated: 20 मार्च, 2020 11:04 AM
धीरेंद्र राय
धीरेंद्र राय
  @dhirendra.rai01
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोरोना वायरस संकट पर भाषण (PM Modi speech) इशारा भर है कि देश बड़ी चुनौती के लिए तैयार रहे. जनता कर्फ्यू के आह्वान को बड़े लॉकडाउन की तैयारी के रूप में भी देखा जाना चाहिए. हालांकि लॉकडाउन को लेकर तमाम तरह कयास पहले से लगाए जा रहे थे. कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने तो ट्वीट ही कर दिया था कि यदि पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा पीएम ने न की तो वे निराश होंगे. हालांकि पीएम के भाषण के बाद उन्होंने कहा कि वे इस वक्त प्रधानमंत्री का साथ देने के दायित्व से बंधे हैं. तो अब सवाल ये उठता है कि कोरोना वायरस की चुनौती (Corona virus outbreak) को क्या सिर्फ जनता कर्फ्यू (Janata curfew) से निपटा जा सकता है?

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में कोरोना वायरस की भयावहता का जिक्र किया था. वे कह चुके हैं कि इस बीमारी का पैटर्न यही है कि जिन देशों मे इसने अपने पैर पसारे हैं, वहां इस बीमारी का विस्फोट ही हुआ है. जबकि कुछ देशों ने खुद को पूरी तरह अलग-थलग करके इस बीमारी से बच पाने में काफी हद तक कामयाबी पाई है. इस बैकग्राउंड के बाद वे जनता कर्फ्यू का आइडिया पेश करते हैं. जनता के लिए, जनता द्वारा कर्फ्यू. हम स्वस्थ तो सब स्वस्थ.

PM Modi speech on Janata Curfew corona virusप्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना वायरस से लड़ने की जिम्मेदारी लोगों पर डाल तो दी, लेकिन क्या इतना काफी है?

प्रधानमंत्री का विचार अच्छा है, लेकिन वे एक ऐसे देश के प्रधानमंत्री हैं जहां कुछ लोग लोकतंत्र के नाम पर मनमानी को हक समझते हैं. ऐसा नहीं है कि 22 मार्च के जनता कर्फ्यू की कामयाबी को लेकर मुझे कोई शक है. लेकिन अब मानमनुहार का समय बीत गया है. कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों का आंकड़ा 200 के पार पहुंच रहा है. और ये वो लोग हैं, जिनका टेस्ट हो चुका है. ऐसे लोगों की तादाद कम नहीं है जो संक्रमण को अपने साथ लेकर घूम रहे हैं. जिनका न तो उन्हें पता चला है, न ही मेडिकल एजेंसियों को. जब इन कैरियर के जरिए यह बीमारी अपना पैर पसारेगी तो क्या होगा?

अब आइए नजर डालते हैं दुनिया के अलग-अलग देशों की ओर. और यह जानने की कोशिश करते हैं कि कोरोना वायरस को गंभीर खतरा मानने में किसने सबसे ज्यादा सूझबूझ से काम किया. इस अध्ययन में हमें चीन को अलग रखना होगा, क्योंकि इस बीमारी का जन्म ही वहां हुआ है. और फिर चीन ने जो किया वो प्रतिक्रिया भर था.

हम तो दुनिया के बाकी देशों को देखेंगे, जिनके पास पर्याप्त समय था इस बीमारी से बचाव के लिए रणनीति बनाने का.

भारत: इस बीमारी से बचाव के लिए कोई आक्रामक कदम नहीं उठाया. कोरोना वायरस प्रभावित चीन और अन्य देशों में फंसे अपने नागरिक तो निकाले. चीन आने-जाने पर पाबंदी लगाई, लेकिन उन देशों को लेकर कोई नीति नहीं बनाई जहां के नागरिक चीन आ-जा रहे थे. विदेश से आने वाले लोगों के लिए भी कोई सख्त नियम नहीं रहे. भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित शुरुआती तादाद तो ऐसे ही लोगों की थी. हमारी ही तरह अमेरिका ने भी गलती की. उसने भी यूरोप से अपने यहां आने-जाने नागरिकों पर खास निगरानी नहीं रखी. नतीजा सामने है.

यूरोप: जैसी करनी, वैसी भरनी. चीन में कारोना वायरस बीमारी के फैलाव को हल्के में लेना यूरोप को भारी पड़ गया. इस बीमारी को लेकर जब चीन पर सवाल किए जा रहे थे, तो यूरोप ने मध्यम मार्ग अपनाए रखा. यूरोपीय देश चीन को अलग-थलग करने के अमेरिकी प्रस्ताव की आलोचना करते दिखे. यूरोपीय देशों के बीच इस बीमारी को लेकर अगंभीरता जी का जंजाल बन गई. और यूरोप ही पूरी दुनिया में कोरोना वायरस के फैलाव का जरिया बन गया. भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित विदेशी पर्यटकों में सभी यूरोपीय देशों से ही हैं.

खैर, अब तक बात हुई उन देशों की, या दुनिया के उन इलाकों की, जिनकी वजह से कोरोना वायरस को फलने-फूलने का मौका मिला. लेकिन दुनिया के कुछ देश ऐसे भी हैं, जिन्होंने बहुत पहले इस खतरे को भांप लिया. इसकी परवाह नहीं की कि लोग क्या कहेंगे, दुनिया क्या कहेगी. सख्ती के साथ खुद को अलग थलग कर लिया. और उनकी चमकदार मिसाल हमारे सामने है. बात करते हैं लेटिन अमेरिकी देश अल सल्वाडोर की. उत्तर में कनाडा-अमरेका से लेकर दक्षिण में अर्जेंटीना-चिली तक हर छोटे बड़े देश में कोरोनावायरस पहुंच चुका है. लेकिन 64 लाख की आबादी वाले अल सल्वाडोर में अब तक किसी को भी कोरोना वायरस का संक्रमण नहीं हुआ है. वजह यह है कि इस बीमारी के यहां पहुंचने से पहले ही उसके रास्ते में दीवार खड़ी कर दी गई है. तीन सप्ताह के लिए स्कूलों की छुट्टी कर दी गई है. विदेश से लौटने वाले किसी भी नागरिक का 30 दिन तक अलग-थलग रहना अनिवार्य है (भारत समेत दुनिया के कई देशों में यह अवधि 15 दिन ही है). किसी भी विदेशी का अल सल्वाडोर में प्रवेश वर्जित है. राष्ट्रपति नायिब बुकेले कहते हैं हमारी स्वास्थ्य सेवाएं इटली या दक्षिण कोरिया जैसी नहीं है, जो इस बीमारी का मुकाबला कर सकें. इसलिए अपने नागरिकों को बचाने के लिए हमें सख्त फैसले लेने पड़े. हमारे फैसलों को समझने के लिए इटली की दृष्टि से देखना होगा. इटली आज सोच रहा होगा कि काश वह भी पहले ऐसे इंतजाम कर लेता.

अल सल्डोर के राष्ट्रपति की बात में दम है. यह उम्मीद की जा सकती है कि उनका देश इस बीमारी से महफूज रहेगा. लेकिन क्या भारत का नेतृत्व ऐसी दूरदर्शिता भरे फैसले लेने का हौंसला दिखा जा सकता है. जनता कर्फ्यू एक मनुहार है. लोगों से खुद को अपने घर में बंद हो जाने की. अब मनुहार का वक्त जा चुका. चिदंबरम की बात में दम था.

लेखक

धीरेंद्र राय धीरेंद्र राय @dhirendra.rai01

लेखक ichowk.in के संपादक हैं.

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