New

होम -> समाज

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 01 मई, 2021 08:10 PM
आईचौक
आईचौक
  @iChowk
  • Total Shares

कोरोना महामारी की दूसरी लहर में मरीजों के लिए अस्पतालों में बेड कम पड़ रहे हैं. जैसे-तैसे बेड का इंतजाम होने के बाद इलाज के दौरान ऑक्सीजन, रेमडेसिविर की कमी से परिजन दो-चार हो रहे हैं. अस्पतालों में इलाज के नाम पर लाखों रुपये पहले ही जमा करा लिए जाते हैं. एक आम से परिवार की लाखों रुपये का इंतजाम करने में ही आर्थिक रूप से कमर टूट जाती है. इसके बाद अगर मरीज की मौत हो जाए, तो अस्पताल से घाट तक का अंतिम सफर भी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने से कम नहीं है. एंबुलेंस वालों ने लूट मचा रखी है, शव को घाट पहुंचाने तक के लिए अनाप-शनाप पैसों की मांग की जाती है. परिजन पैसों की मांग पूरी करते हैं, तो ही शव घाट तक पहुंच पाता है. घाट पर अलग समस्या है, शवों की लाइन लगी हुई है. टोकन सिस्टम के सहारे शवों का दाह संस्कार हो रहा है. ऐसा लग रहा है कि लोगों ने इंसानियत को 'चिता' पर लिटाकर उसका 'अंतिम संस्कार' कर दिया है. वहीं, इन सब पर रोक लगाने में 'सिस्टम' पूरी तरह से नाकाम दिख रहा है.

एंबुलेंसकर्मियों की लूट पर कब जागेगा 'सिस्टम'

राज्य सरकारें निजी अस्पतालों में कोरोना संक्रमण के इलाज की रेट लिस्ट जारी कर चुकी हैं. कहा जा सकता है कि इसकी वजह से कोरोना संक्रमित मरीज के परिजनों को कुछ राहत मिल रही होगी. हालांकि, ऑक्सीजन और जीवनरक्षक दवाओं को लेकर परिजनों की भाग-दौड़ अभी भी बदस्तूर जारी है. ऑक्सीमीटर, रेमडेसिविर इंजेक्शन जैसी चीजों की कालाबाजारी से लोगों ने लूट मचा रखी है. यहां तक को तब भी ठीक है, लेकिन एंबुलेंस चालकों ने तो मानवता को तार-तार कर देने की कसम खा रखी है. मरीज को घर से अस्पताल पहुंचाने का खर्च ही हजारों में पहुंचा जा रहा है. चार किलोमीटर की दूरी के लिए परिजनों से दस हजार रुपये तक वसूले जा रहे हैं. वहीं, मौत हो जाने पर शव को घाट तक पहुंचाने के लिए भी एंबुलेंस चालक मोटी कमाई कर रहे हैं.

लोग मरीज से शव में बदल रहे हैं, लेकिन कुछ नहीं बदल रहा है, तो वह है कालाबाजारी और लूट. इन लोगों ने नैतिकता को ताक पर रख दिया है. इस बुरे समय में जब लोग एक-दूसरे की मदद को आगे आ रहे हैं, इन लोगों ने एंबुलेंस सेवा को 'आपदा में अवसर' मान लिया है. इन लोगों से इतने ज्यादा पैसे लेने पर कुछ कहो, तो टका सा जवाब दे देते हैं कि अपनी जान हथेली पर लेकर कोरोना संक्रमित शवों को घाट तक पहुंचा रहे हैं. परिजन न चाहते हुए भी ठगे जाने को मजबूर हैं. अब शव को कोई कंधे पर लादकर तो घाट तक ले जाने से रहा, मजबूरन लोगों को पैसे देने के लिए राजी होना पड़ता है. उस पर 'सिस्टम' की उदासीनता जले पर नमक छिड़कने जैसी है. हर तरफ लूट मची हुई है, लेकिन लोगों की चीत्कार सिस्टम के कानों तक नहीं पहुंच रही है. कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए बनाए गए कोविड कमांड सेंटर में जब मरीजों को भर्ती कराने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही हो, तो मरीज की मौत होने के बाद की दिक्कतों पर किसका ध्यान जाता है?

कोरोनाकाल में '100 में 99 बेईमान, फिर भी मेरा भारत महान' वाली कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है.कोरोनाकाल में '100 में 99 बेईमान, फिर भी मेरा भारत महान' वाली कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है.

'100 में 99 बेईमान, फिर भी मेरा भारत महान'

कोरोनाकाल में '100 में 99 बेईमान, फिर भी मेरा भारत महान' वाली कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है. जिसे मौका मिल रहा है, लोगों को लूटने में लगा हुआ है. रेमडेसिविर की कालाबाजारी से शुरू हुआ खेल, अब एंबुलेंस में शवों को घाट तक मुंहमांगी कीमत में पहुंचाने तक आ चुका है. सरकारें इस पर लगाम लगाने में पूरी तरह से नाकाम नजर आ रही है. क्या कोरोना को लेकर रोजाना जारी किए जा रहे नये आदेशों के साथ ये आदेश भी जारी नहीं किया जा सकता है कि मरीजों को एक निश्चित रकम पर ही एंबुलेंस की सेवा देनी होगी. तय कीमत से अधिक वसूलने पर एंबुलेंस को जब्त कर कानूनी कार्रवाई की जाएगी. आखिर सिस्टम किस सोच में पड़ा हुआ है? क्या कोरोना की दूसरी लहर की तरह ही इसके लिए भी सिस्टम चीजें हाथ से निकल जाने का इंतजार कर रहा है.

लेखक

आईचौक आईचौक @ichowk

इंडिया टुडे ग्रुप का ऑनलाइन ओपिनियन प्लेटफॉर्म.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय