New

होम -> समाज

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 04 जनवरी, 2023 06:17 PM
रमेश सर्राफ धमोरा
रमेश सर्राफ धमोरा
  @ramesh.sarraf.9
  • Total Shares

राजस्थान में अगले विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने अपनी चुनावी तैयारियां प्रारंभ कर दी है. प्रदेश में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी, मुख्य विपक्षी दल भाजपा, तिकोनी टक्कर बनाने में जुटी बसपा, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन, वामपंथी दल और भारतीय ट्राइबल पार्टी सभी अगले विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ होने का सपना देख रहें हैं. कांग्रेस के नेता जहां फिर से सरकार रिपीट करवाने का प्रयास कर रहे हैं. वहीं भाजपा सरकार बनाने की अपनी बारी का इंतजार कर रही है. अन्य राजनीतिक दल इन दोनों ही दलों को पटखनी देकर अगली सरकार बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहते हैं.

राहुल गांधी की राजस्थान में 18 दिनों तक चली भारत जोड़ो पदयात्रा को मिले जन समर्थन से कांग्रेस गदगद नजर आ रही है. वहीं भाजपा गहलोत सरकार के खिलाफ प्रदेश में निकाली गई जनाक्रोश यात्राओं में ज्यादा भीड़ नहीं जुटा पाने से हताश नजर आ रही है. अन्य राजनीतिक दलों के नेता भी अपना प्रभाव बढ़ाने के प्रयास में लगे हुए हैं. सांसद असदुद्दीन ओवैसी भी राजस्थान के कई जिलों की यात्राएं कर जनमानस का मूड टटोल चुके हैं. बसपा भी अपने जर्जर संगठन को एक बार फिर नए सिरे से खड़ा करने का प्रयास कर रही है.

Rajasthan Assembly elections 2023, Rajasthan Assembly elections 2023 bjp, Congress rajasthan, Rajasthan newsमुख्यमंत्री अशोक गहलोत अगली बार फिर से सरकार रिपीट करने को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नजर आ रहे हैं

राहुल गांधी की पदया़त्रा राजस्थान में आठ जिलों से होकर गुजरी थी. उस दौरान प्राय सभी छोटे-बड़े नेता राहुल गांधी से मिलकर उन्हे अपने विचारों से अवगत करवाया था. राहुल गांधी ने सभी की बातें बड़े ध्यान से सुनी थी. बहुत से लोगों ने राहुल गांधी को गहलोत सरकार की कई खामियों के बारे में भी बताया था. जिनको लेकर राहुल गांधी ने यात्रा के अंतिम दिन अलवर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित अन्य प्रमुख नेताओं के साथ एक बैठक कर सभी बातों पर विस्तारपूर्वक चर्चा की व प्रदेश में जो समस्याएं हैं उनका समाधान निकालने के लिए भी मुख्यमंत्री को कहा था.

राजस्थान कांग्रेस में सितंबर महीने में चले राजनीतिक घटनाक्रम के बाद पार्टी की फूट खुलकर सड़कों पर आ गई थी. मगर राहुल गांधी के यात्रा के बाद कांग्रेस एक बार फिर से एकजुट नजर आने लगी है. अजय माकन के इस्तीफे के बाद पंजाब के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा को राजस्थान कांग्रेस का नया प्रभारी बनाया गया है. वह भी प्रदेश में लगातार दौरे कर कांग्रेस कार्यकर्ताओं से फीडबैक ले रहे हैं तथा पार्टी में आपसी एकता कायम करने की दिशा में काम कर रहे हैं. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अगली बार फिर से सरकार रिपीट करने को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नजर आ रहे हैं. उन्होंने कहा है कि अगले साल का बजट पूरी तरह किसानों व गरीबों को समर्पित होगा. गहलोत सरकार द्वारा वोट बटोरने के लिये अगले बजट में कई लोक लुभावनी घोषणाएं भी की जाएगी.

कांग्रेस पार्टी के सभी बड़े नेता बढ़-चढ़कर दावा कर रहे हैं कि प्रदेश में कई हजार लोगों को राजनीतिक नियुक्तियां दी गई है. जिनकी बदौलत पार्टी को अगले चुनाव में बड़ी सफलता मिलेगी. मगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित कांग्रेस के सभी बड़े नेता इस बात को भूल जाते हैं कि राजनीतिक नियुक्तियों में जिनको बड़े पद दिए गए हैं वह सभी पार्टी के बड़े नेता हैं. अधिकांश बड़े पदों पर विधायकों, पूर्व सांसदों, पूर्व विधायकों व संगठन में बड़े पदों पर रहे नेताओं को ही समायोजित किया गया है. आम जनता के बीच रहकर रात दिन पार्टी के लिए काम करने वाले उन कार्यकर्ताओं को क्या मिला जो बूथों पर जाकर पार्टी के पक्ष में वोट डलवाते हैं तथा विपक्षी दलों के लोगों से झगड़ा तक करते हैं.

आज बूथ से लेकर ग्राम इकाई, ब्लॉक इकाई व जिला संगठन में काम करने वाले अधिकांश पदाधिकारियों को सत्ता में कोई भागीदारी नहीं मिल पाई है. जो जमीनी स्तर पर काम करने वाले लोग हैं. कार्यक्रमों में दरिया बिछाते हैं. पार्टी के लिए मरने मारने पर उतारू रहते हैं. रात दिन कांग्रेस के नाम की माला जपते हैं. वैसे लोगों का राजनीतिक नियुक्तियों में कहीं भी नाम नहीं है. राजनीतिक नियुक्तियों में उन्हीं लोगों को पद मिले हैं जो मौजूदा विधायकों या बड़े नेताओं के नजदीकी रहकर चापलूसी की राजनीति करते हैं. जो लोग सत्ता की दलाली करते हैं. वह जोड़ तोड़ कर सरकारी पदों पर आसीन हो जाते हैं. जबकि नीचे के स्तर पर काम करने वाले आम कार्यकर्ताओं को कोई भी नहीं पूछता है.

कांग्रेस पार्टी में जब तक ग्रास रूट वर्कर को महत्व नहीं मिलेगा तब तक किसी भी स्थिति में फिर से सरकार नहीं बना पाएगी. सत्ता की मलाई खाने वाले अधिकांश नेता अपने राजनीतिक स्वार्थ के चलते मौका देखकर दल बदलने में भी देर नहीं लगाते हैं. जबकि जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं के मन में पार्टी के प्रति भावना कूट-कूट कर भरी रहती है और वह किसी भी स्थिति में पार्टी को नहीं छोड़ते हैं. उन्ही जमीनी कार्यकर्ताओं के बल पर आज भी कांग्रेस पार्टी पूरे देश में टिकी हुई है.

राजस्थान में भाजपा की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती है. राजस्थान में गुटों में बंटी भाजपा राजनीति के दलदल में फंसी हुई है. यहां हर बड़े नेता का अपना गुट बना हुआ है. हर बड़ा नेता अपने को अगला मुख्यमंत्री मानकर चल रहा है. ऐसे में संगठन के स्तर पर भाजपा की हालत बहुत खराब हो रही है. लगातार सत्ता में रहने के कारण भाजपा कार्यकर्ताओं में भी चापलूसी हावी होती जा रही है. संगठन में कई ऐसे लोगों को बड़े पदों पर बैठा दिया गया है जो अपने गांव में पंच भी नहीं जीत सकते हैं.

आपसी गुटबाजी के चलते ही भाजपा द्वारा प्रदेश में निकाली गई जन आक्रोश यात्राओं को उतना समर्थन नहीं मिल पाया जितना मिलना चाहिए था. पार्टी के ग्रास रूट के कार्यकर्ता अपनी उपेक्षा से क्षुब्ध होकर घर बैठ गए हैं. जोड़-तोड़ कर पद हासिल करने वाले लोगों के पास जनसमर्थन नहीं हैं. इसी कारण पार्टी के कार्यक्रम लगातार फेल हो रहे हैं. अब भाजपा में भी पैसों की राजनीति हावी होने लगी है. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व उनके समर्थक संगठन से ईत्तर अलग राह पर चल रहे हैं. जिससे जनता में अच्छा संदेश नहीं जा रहा है.

आम आदमी पार्टी का प्रदेश में अभी कुछ भी प्रभाव नहीं है. नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी पर जातिवाद का ठप्पा लगा हुआ है. जिसे हटाये बिना पार्टी बड़ा जनाधार नहीं बना सकती है. बहुजन समाज पार्टी कि प्रदेश में विश्वसनीयता समाप्त हो गई है. हर बार पार्टी के जीते विधायक दलबदल कर दूसरे दलों में शामिल हो जाते हैं. इससे बसपा को वोट देने वाले वोटर खुद को ठगा महसूस करते हैं. वामपंथी दलों का राजस्थान में आधार समाप्त हो गया है. प्रदेश की आदिवासी बेल्ट में पिछली बार भारतीय ट्राइबल पार्टी के दो विधायक जीते थे. मगर सत्ता सुख के चक्कर में उनकी विश्वसनीयता समाप्त हो गई है. असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. उनके प्रत्याशियों से सीधे भाजपा उम्मीदवारों को ही लाभ मिलना तय माना जा रहा है.

चुनाव आते ही प्रदेश में कुकुरमुत्ता की तरह नेताओं की फौज खड़ी हो जाएगी. हजारों लोग मेरा विधानसभा क्षेत्र मेरा विधानसभा क्षेत्र लिखकर सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाएंगे. मगर चुनाव बीत जाने के बाद पांच साल तक उनका कोई ठिकाना भी नहीं रहता है. प्रदेश की जनता को बिना किसी के प्रलोभन में आए ऐसी सरकार बनानी चाहिए. जो इमानदारी से आमजन की सेवा कर सके. तभी प्रदेश के आम लोगों का भला हो पाएगा.

#राजस्थान विधानसभा चुनाव, #चुनाव 2023, #राहुल गांधी, Rajasthan Assembly Elections 2023, Rajasthan Assembly Elections 2023 Bjp, Congress Rajasthan

लेखक

रमेश सर्राफ धमोरा रमेश सर्राफ धमोरा @ramesh.sarraf.9

(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होतें रहतें हैं।)

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय