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Updated: 18 अप्रिल, 2021 05:53 PM
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कोविड-19 महामारी ने दुनियाभर को अपनी चपेट में ले रखा है. भारत में कोविड-19 संक्रमण की दूसरी लहर ने लोगों में डर पैदा कर दिया है. कोरोना महामारी की वजह से चारों ओर नकारात्मकता का माहौल बना हुआ है. समाचार पत्रों से लेकर टीवी चैनलों और सोशल मीडिया तक पर 24 घंटे केवल कोरोना से जुड़ी खबरें ही सामने आ रही हैं. लोगों की मौत हो रही है, श्मशानों-कब्रिस्तानों में लाशों की लाइन लगी हुई है. स्वास्थ्य व्यवस्थाएं कोरोना संक्रमितों से पहले दम तोड़ रही हैं. इन तमाम खबरों की वजह से देश में लाखों लोग अवसाद में चले गए हैं. किसी को नौकरी जाने का तनाव है, किसी में अपने बच्चों और परिवार की फिक्र का डर है, कोई दिहाड़ी मजदूर इस विचार में गला जा रहा है कि कल को लॉकडाउन हुआ, तो बच्चों को क्या खिलाऊंगा. बीते साल बाराबंकी, उन्नाव, कानपुर समेत कई जगहों से आर्थिक तंगी की वजह से परिवार समेत आत्महत्या करने की खबरों ने लोगों को झटका दिया था. लेकिन, लोगों के सामने ऐसी स्थिति क्यों बन गई, इस पर किसी ने सोचा ही नहीं? कोरोना महामारी ने लोगों को भीतर तक तोड़ दिया है. इस स्थिति में आचार्य रजनीश उर्फ ओशो (Osho) का एक संदेश हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण और प्रासंगिक हो जाता है.

70 के दशक में जब विश्वभर में हैजा महामारी फैली हुई थी. तब एक प्रवचन के दौरान किसी ने ओशो से पूछा था कि इस महामारी से कैसे बचें? कोरोना महामारी के दौर में उपजे इस अवसाद, नकारात्मकता और डर से लड़ने के लिए ओशो का जवाब एक कारगर उपाय सा लगता है. ओशो ने कहा था कि आपका यह प्रश्न ही गलत है. आपको पूछना चाहिए कि इस महामारी से मरने का जो डर है, इससे कैसे बचा जाए? ओशो ने कहा था कि महामारी से बचना आसान है, लेकिन इसकी वजह से जो डर लोगों में पैदा हुआ है, उससे बचना मुश्किल है. लोग इस महामारी से कम और इसकी वजह से उपजे डर से ज्यादा मरेंगे. 'डर' से ज्यादा खतरनाक वायरस इस दुनिया में कोई नहीं है. इस डर को समझिए, अन्यथा मौत से पहले ही आप एक जिंदा लाश बन जाएंगे.

ओशो ने कहा था कि इस भयावह माहौल का वायरस आदि से कोई लेना देना नहीं है. यह एक सामूहिक पागलपन है, जो एक अंतराल के बाद हमेशा घटता रहता है. कारण बदलते रहते हैं, कभी सरकारों की प्रतिस्पर्धा, कभी कच्चे तेल की कीमतें, कभी दो देशों की लड़ाई, तो कभी जैविक हथियारों की टेस्टिंग. सामान्यत: आप अपने डर के मालिक होते हैं, लेकिन सामूहिक पागलपन के क्षण में आपकी मिल्कियत छिन सकती है. टीवी पर खबरें सुनना या अखबार पढ़ना बंद करें. ऐसा कोई भी वीडियो या न्यूज मत देखिए, जो आपके भीतर डर पैदा कर रहा हो. प्रशासनिक आदेशों तथा सरकार के निर्देशों का अक्षरशः पालन करें. महामारियों के अलावा भी बहुत कुछ है, जिस पर ध्यान दिया जा सकता है.

ओशो ने कहा था कि महामारी से बचना आसान है, लेकिन इसकी वजह से जो डर लोगों में पैदा हुआ है, उससे बचना मुश्किल है.ओशो ने कहा था कि महामारी से बचना आसान है, लेकिन इसकी वजह से जो डर लोगों में पैदा हुआ है, उससे बचना मुश्किल है.

ओशो ने तब जो कहा था, वह शायद आज की हकीकत बन चुका है. कोरोना महामारी के चलते अस्पतालों में ऐसी स्थितियां बन गई हैं कि लोग अपने अगल-बगल के गंभीर मरीजों को देखकर अपना मनोबल हार जा रहे हैं. कोरोना संक्रमण के इतने ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं कि अस्पताल में गंभीर रोगियों को बेड नहीं मिल रहा है. कहीं ऑक्सीजन की कमी है, तो कहीं जीवनरक्षक दवाइयां ही बाजार से गायब हैं. एक शुरुआती संक्रमण का मरीज जब अस्पताल पहुंचता है, तो उसके पास मौजूद मोबाइल में उसे हर समय कोरोना संक्रमण से पैदा हुई अपरिहार्य खबरों के अलावा कुछ नहीं मिलता है. बगल में लेटा कोई मरीज अचानक से चल बसे, तो उस शख्स से पूछिए कि उस पर क्या बीतती होगी? अच्छे से अच्छा मजबूत व्यक्ति भी इसके आगे कमजोर पड़ जाता है और जीवन से हार मान लेता है.

लांसेट साइकियाट्रिक जर्नल में छपी स्टडी के अनुसार, कोरोना संक्रमण से उबरने वाले मरीजों में से करीब 20% लोग साइकियाट्रिक डिसऑर्डर के शिकार हो रहे हैं. कोविड-19 से ठीक हुए लोग मानसिक बीमारियों से घिर रहे हैं. इसका एकमात्र कारण कोरोना महामारी की वजह से उपजा अवसाद है. अवसाद का सीधा असर आपके शरीर की इम्युनिटी और मेटाबॉलिज्म पर पड़ता है. कोरोना महामारी से लड़ने में हमारी इम्युनिटी ही मदद करती है और हम तनाव लेकर इसे ही खत्म कर रहे हैं. ऐसा तो नहीं है कि कोरोना प्रोटोकॉल्स को अपनाकर हम खुद को सुरक्षित नहीं रख सकते.

ओशो ने कहा था कि धीरज रखिए, जल्द ही सब कुछ बदल जाएगा. जब तक मौत आ ही न जाए, तब तक उससे डरने की कोई जरूरत नहीं है. जो अपरिहार्य है, उससे डरने का कोई अर्थ भी नहीं है. डर एक प्रकार की मूढ़ता है, अगर किसी महामारी से अभी नहीं भी मरे, तो भी एक न एक दिन मरना ही होगा और वो एक दिन कोई भी दिन हो सकता है.

यह थोड़ा अजीब और बेतुका लग सकता है, लेकिन ओशो का कहा बहुत हद तक सही है. कुछ दिनों के लिए कोरोना को अपने दिमाग, जुबान और मन से जितना दूर रखेंगे, यह फायदा न पहुंचा सके, तो नुकसान नहीं ही पहुंचाएगा. अनिश्चितता से घिरे माहौल में चिंता या तनाव से लोगों का फायदा कम और नुकसान ज्यादा होगा. कुछ दिनों के लिए नॉन-सोशल हो जाने से किसी को फर्क नहीं पड़ने वाला है. कोविड-एप्रोपिएट बिहेवियर अपनाएं, ज्यादा चिंता करना छोड़ दें, खुद पर भरोसा बनाएं रखें, सोशल मीडिया छोड़कर रिश्तेदारों और दोस्तों से फोन पर बात करें. आपका मनोबल जितना मजबूत होगा, महामारी उतनी ही कमजोर होती जाएगी. कोविड-एप्रोपिएट बिहेवियर में कमी न लाएं. आस-पास के कमजोर और गरीब वर्ग के लोगों की हरसंभव मदद करें.

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