Oreo और Parle G के बीच टकराव हाईकोर्ट पहुंचने वाले दिलचस्प मामलों में से एक है
अमेरिकन बिस्कुट कंपनी ओरियो (Oreo Biscuit) और भारतीय कंपनी पारले (Parle-G Biscuit) के बीच उपजे इस विवाद के बीच यह जान लेना बहुत जरूरी है कि हिन्दुस्तान में पारले बिस्कुट ही नहीं आम आदमी का आहार है. लोगों का इससे भावनात्मक लगाव है, जो संकट में भी हमारा साथ देता है.
-
Total Shares
हिन्दुस्तान में शायद ही ऐसा कोई घर होगा जहां 'पारले-जी' बिस्कुट नहीं आता रहा होगा. 'बचपन से बड़ा कोई स्कूल नहीं, क्यूरोसिटी से बड़ी कोई टीचर नहीं' का संदेश देते हुए गरीब से लेकर अमीर तक की पहली पसंद रहे इस बिस्कुट से साथ बहुत लोग बचपन से जवान और जवान से बूढे हुए हैं. पारले-जी का नाम आते ही बरबस बचपन की यादें ताजा हो जाती हैं. हम गरम दूध या चाय में पारले-जी डुबोकर झट से मुंह में डाल लेते थे.
एक जमाने में सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला यह बिस्कुट इतना पॉपुलर है कि शायद ही कोई भारतीय हो जिसने बचपन में यह बिस्कुट ना खाया हो. अभी जब देश में कोरोना की वजह से लॉकडाउन लगा हुआ था. हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौट रहे थे. उस वक्त 'पारले-जी' बिस्कुट ही उनका एकमात्र आहार था, जिसके जरिए सफर में उनकी जिंदगी कट सकी. लेकिन आज 'पारले' एक विवाद की वजह से सुर्खियों में है.
साल 1928 में 'हाउस ऑफ पारले' की शुरुआत की गई थी, जिसका पारले-जी प्रोडक्ट है.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, एक अमेरिकन बिस्कुट कंपनी ओरियो ने पारले के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में केस दर्ज कराया है. यह केस बिस्कुट के डिजाइन को लेकर है. ओरियो का दावा किया है कि पारले के फैबियो बिस्कुट के डिजाइन बिल्कुल उसके जैसा है. यह ट्रेडमार्क के उल्लंघन का मामला है. इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने 12 अप्रैल को सुनवाई करने का फैसला किया है. हाईकोर्ट ने ओरियो के वकील की जल्दी सुनवाई की अपील को भी खारिज कर दिया है.
क्यों छिड़ा है विवाद?
अमेरिका की मोंडलीज इंटरनेशनल ने भारत में ओरियो को करीबन 10 साल पहले लांच किया था. पारले ने पिछले साल जनवरी में फैबियो प्रोडक्ट को लांच किया है. ओरियो अब तक इस ब्रांड के तमाम वेरिएंट लांच कर चुकी है. इसमें चोको क्रीम, ओरियो वैनिला आरेंज, क्रीम और स्ट्राबेरी शामिल है. अब ओरियो का आरोप है कि पारले कंपनी के फैबियो बिस्कुट का डिजाइन उसके बिस्कुट की कॉपी करके तैयार किया गया है, जो ट्रेडमार्क का उल्लंघन है.
आम आदमी का है 'आहार'
ओरियो और पारले बिस्कुट की इस लड़ाई को 'भारत' और 'इंडिया' के बीच अंतर से समझ सकते हैं. पारले भारत का बिस्कुट है, जबकि ओरियो इंडिया का. पारले की पकड़ भारत के गांव और गरीब के बीच है, जबकि ओरियो महानगरों में मीडिया और हाई क्लास के बीच ज्यादा बिकता है. पारले बिस्कुट नहीं आहार है. आज भी विभिन्न जगहों पर काम करने वाले मजदूर पारले-जी बिस्कुट खाने के बाद पानी पीकर राहत महसूस करते हैं.
लॉकडाउन में बन गया वरदान
ज्यादा दिन नहीं बीते. लॉकडाउन से पहले पारले कंपनी की हालत खराब थी. उसकी बिक्री में लगातार गिरावट हो रही थी. कुछ यूनिट को बंद करने की नौबत आ गई थी. कई प्रोडक्ट्स बंद कर दिए गए. इसी बीच कोरोना की वजह से लगा लॉकडाउन पारले के लिए वरदान साबित हो गया है. कहते हैं कि आपदा कई लोगों के लिए अवसर लेकर आती है. पारले के साथ भी यही हुआ. उसकी बिक्री में तेजी से उछाल देखने को मिला.
दुधमुंहे बच्चे के लिए बना दूध
उस वक्त शहरों से गांव की ओर जा रहे प्रवासी मजदूरों और कामगारों के लिए पारले-जी बिस्कुट वरदान साबित हुआ. तब खाने के लाले पड़े हुए थे, लेकिन पारले-जी बिस्कुट की उपलब्धता ने जरूरमंदों की भूख मिटाई, यहां तक की दूध पीने वाले बच्चों के लिए भी आहार बना. लोगों ने पानी में पारले-जी मिलाकर अपने बच्चों को पिलाया. यहां तक की सरकारी और स्वयंसेवी संस्थाओं ने भी लाखों की संख्या में पारले-जी बिस्कुट का वितरण किया था.
कोरोना काल में बना रिकार्ड
लॉकडाउन के बीच पारले-जी ने अब तक के इतिहास में सबसे अधिक बिस्कुट बेचने का रेकॉर्ड बनाया है. पारले प्रोडक्ट्स के कैटेगरी हेड मयंक शाह के मुताबिक, कंपनी का कुल मार्केट शेयर करीब 5 फीसदी बढ़ा है. इसमें से 80-90 फीसदी ग्रोथ पारले-जी की सेल से हुई है. लॉकडाउन के दौरान ये बिस्कुट जहां प्रवासी मजदूरों के लिए पेट भरने का साधन बना वहीं दूसरी ओर बहुत से लोगों ने अपने घरों में पारले-जी बिस्कुट का स्टॉक जमा कर के भी रखा.
साल 1928 में ऐसे हुई शुरुआत
साल 1928 में 'हाउस ऑफ पारले' की शुरुआत की गई थी. इसके मालिक मोहन दयाल चौहान ने 18 साल की उम्र में गारमेंट बिजनेस शुरू किया था. इसके बाद उन्होंने साल 1929 में मुंबई के विले पार्ले में 'पारले' नामक कंपनी स्थापित की थी. शुरुआत में इसमें केवल केक, पेस्ट्री और कुकीज़ बनाकर बेचते थे. लेकिन मार्केट डिमांड को देखते हुए जल्द बिस्कुट बनाकर बेचना शुरू कर दिया. आज देश में 130 से ज्यादा फैक्ट्रियां हैं और लगभग 50 लाख रिटेल स्टोर्स हैं. हर महीने 1 अरब से ज्यादा पारले-जी बिस्कुट पैकेट का निर्माण किया जा रहा है. पारले जी सस्ते और ग्लूकोज बिस्कुट के लिए जाना जाता है.
आपकी राय