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मिलिए भारत के 9 सबसे अनोखे Teachers से
कोई रोज़ तैरकर स्कूल जाता है तो कोई अपनी साइकल पर ही स्कूल लेकर चलता है. शिक्षा देने के लिए इन 9 शिक्षकों ने अपने जीवन में कुछ अनोखा कर दिखाया है.
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5 सितंबर यानी शिक्षक दिवस. साल का वो दिन जब सोशल मीडिया पर लोग अपने शिक्षकों को याद करते हैं और उनके बारे में अच्छी अच्छी बातें फेसबुक पर पोस्ट करते हैं. कुछ लोग शिक्षकों के साथ बिताए अपनी जिंदगी के बेहतरीन किस्से याद करते हैं. ऐसे स्टूडेंट और टीचर्स की भरमार है जो बढ़ाचढ़ाकर सोशल मीडिया पर अपने किस्से बताते हैं, लेकिन क्या आप भारत के उन टीचर्स को जानते हैं जो यकीनन सोशल मीडिया या किसी बड़े स्कूल-कॉलेज-कोचिंग इंस्टिट्यूट का हिस्सा न होते हुए भी काफी खास हैं. ये वो टीचर्स हैं जो अपनी महानता के किस्से फेसबुक पर पोस्ट नहीं करते और न ही शिक्षक दिवस के दिन किसी तरह की पब्लिसिटी की दरकार रखते हैं. ये वो शिक्षक हैं जो सालों से हर रोज़ अपने स्टूडेंट्स के लिए ऐसी मेहनत कर रहे हैं जो किसी आम इंसान के लिए संभव नहीं है. मेहनत तो हर शिक्षक करता है, किसी की भी शिक्षा कम नहीं कही जा सकती, लेकिन कुछ अपना सब कुछ सिर्फ शिक्षा के लिए लगा देते हैं. चलिए आज बात करते हैं हिंदुस्तान के सबसे अनोखे टीचर्स के बारे में जो यकीनन अपने काम के लिए जाने जाते हैं.
1. 9 साल की उम्र में शिक्षक बनने वाले बाबर..
कहते हैं शिक्षा लेने की कोई उम्र नहीं होती, लेकिन बाबर अली ने ये साबित कर दिया कि शिक्षा देने की भी कोई उम्र नहीं होती. जैसे कोई इंसान उम्र के किसी भी पड़ाव में कोई नई चीज़ सीख सकता है वैसे ही बाबर अली ने बचपने में ही पढ़ाना शुरू कर दिया था. इतना ही नहीं बाबर अली के नाम दुनिया का सबसे छोटी उम्र का हेडमास्टर बनने का खिताब भी है.
बाबर ने 9 साल की उम्र से पढ़ाना शुरू किया था और 15 की उम्र में वो हेडमास्टर बन गए थे
21 साल के बाबर अली 9 साल की उम्र से पढ़ा रहे हैं. 15 की उम्र में वो अपने ही स्कूल के (जहां वे पढ़ाते थे.) हेडमास्टर बन गए थे. उनके स्कूल में अब करीब 300 स्टूडेंट्स हैं और 6 फुल टाइम टीचर. 9 साल की उम्र में बाबर खुद स्कूल से पढ़कर आते थे और गरीब बच्चों को पढ़ाते थे क्योंकि वो स्कूल नहीं जा पाते थे. खेतों में अपने माता-पिता के साथ काम करने वाले बच्चों को बाबर ने पढ़ाना शुरू कर दिया. अपने स्कूल से बाबर चॉक के टूटे हुए टुकड़े लेकर आते थे और बच्चों को टेरीकॉट टाइल्स पर लिखकर पढ़ाते थे.
2. स्कूल को अपनी साइकल के पीछे बांधकर ले जाने वाले आदित्य कुमार..
आदित्य कुमार स्कूल को वहां पहुंचाते हैं जहां स्कूल नहीं पहुंच सकता. वो लोगों के बीच साइकल गुरूजी के नाम से भी लोकप्रिय हैं. झोपड़पट्टी में रहने वाले आदित्य ने 2015 में पुरानी साइकल खरीदी और वो तब से लेकर अब तक 1 लाख 17 हज़ार किलोमीटर से भी ज्यादा साइकल चला चुके हैं. फेसबुक पर Cyclebaleguruji Aditya Kumar नाम से उनका पेज भी है. साइकल गुरूजी लखनऊ के आस-पास के इलाकों में कोने-कोने तक जाकर गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं.
आदित्य कुमार को जहां भी बच्चे मिलते हैं वो उन्हें पढ़ाना शुरू कर देते हैं
साइकल से पहले भी गुरूजी ने ये काम जारी रखा था. असल में उन्होंने पढ़ाना 1995 में शुरू किया था. जहां भी उन्हें बच्चे दिखते हैं वो पढ़ाना शुरू कर देते हैं. चाहें वो पार्क हो, रोड का किनारा हो या फिर झोपड़पट्टी हो. साइकल गुरूजी अपने इस काम को जारी रखना चाहते हैं.
3. कूड़े से खिलौने बनाने वाले मास्टर अरविंद..
अरविंद गुप्ता. एक ऐसा इंसान जिसे लगता है कि शिक्षा के लिए थोड़ा सा मज़ा और मस्ति भी जरूरी है. अरविंद गुप्ता इस बात के लिए प्रसिद्ध हैं कि वो अपने स्टूडेंट्स के लिए कचरे से खिलौने या फिर मॉडल बनाते हैं.
अरविंद कुमार के खिलौनों को यूट्यूब के जरिए बनाना सीखा जा सकता है
Arvind Gupta नाम से यूट्यूब चैनल चलाने वाले इस शिक्षक ने 24 सालों से भी ज्यादा से अपनी इस तकनीक को जिंदा रखा है. अरविंद खिलौने के पीछे का गणित और विज्ञान भी बच्चों को समझाते हैं. वो ज्ञान को बहुत महत्व देते हैं.
4. दिल्ली मेट्रो वाले शिक्षक राजेश कुमार शर्मा..
राजेश कुमार शर्मा के अनुसार बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल की चार दीवारी की जरूरत नहीं होती है. राजेश दिल्ली मेट्रो ब्रिज के नीचे पास की झुग्गी वाले बच्चों को पढ़ाते हैं.
पढ़ाने के लिए स्कूल की जरूरत नहीं होती ये राजेश ने समझा दिया
2005 में शुरू हुआ ये स्कूल 200 से ज्यादा बच्चों को शिक्षा देने के काम आता है. फेसबुक पर Free school under the bridge in Delhi नाम से एक फेसबुक पेज पर दिल्ली मेट्रो वाले शिक्षक जी के बारे में जानकारी दी गई है. इनका स्कूल कहां है और कैसे है इसके बारे में इस पेज से पता लगाया जा सकता है.
5. तैरकर स्कूल जाने वाले अब्दुल मलिक..
केरल का मल्लापुरम जिला. और एक मास्टर. ऐसा व्यक्ति जिसके लिए स्कूल ही सब कुछ है. सही रास्ता न होने पर अब्दुल मलिक अपने स्कूल रोज़ तैरकर जाते हैं.
समय बचाने के लिए अब्दुल रोज़ तैरकर स्कूल जाते हैं
अगर वो रोज़ बस लेंगे तो उन्हें 12 किलोमीटर का अंतर पूरा करने के लिए 3 घंटे बस का सफर करना होगा, लेकिन अगर वो तैरकर जाएंगे तो जल्दी पहुंच जाएंगे बस इसी कोशिश के चलते अब्दुल रोज़ अपना सामान अपने सिर पर लिए तैर जाते हैं. एक रबर ट्यूब के सहारे अब्दुल अपना काम करते हैं.
6. इंटरनेट के जरिए महंगी कोचिंग का खर्च कम कर पढ़ाने वाली टीचर रौशनी मुखर्जी
इंटरनेट आजकल एक ऐसा प्लेटफॉर्म बन गया है जिसके जरिए बहुत सी ऐसी चीज़ें संभव हैं जिनके बारे में पहले शायद सोच भी नहीं सकते थे. रौशनी मुखर्जी इंटरनेट का इस्तेमाल कर एक ऑनलाइन शिक्षा प्लेटफॉर्म चलाती हैं. इसका नाम है ExamFear.com.
रौशनी की वेबसाइट को स्टूडेंट्स फ्री में सब्सक्राइब कर सकते हैं
इस वेबसाइट के जरिए रौशनी अपने स्टूडेंट्स के लिए यूट्यूब वीडियो अपलोड करती हैं और पढ़ाती हैं. रौशनी की वेबसाइट और उनके वीडियो को फ्री में सब्सक्राइब किया जा सकता है. जो बच्चे महंगी कोचिंग नहीं कर सकते उनके लिए ये बहुत अच्छा विकल्प है.
7. गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए चंदा मांगने वाले संदीप देसाई..
वो रोज़ लोकल ट्रेन में चढ़ते हैं, वो रोज़ लोगों से चंदा मांगते हैं, वो अपनी जिंदगी सिर्फ गरीब बच्चों के लिए लगाना चाहते हैं. वो हैं संदीप देसाई.
चंदा मांगकर संदीप जी ने बच्चों के लिए स्कूल बनवा दिया
लोकल ट्रेन में चढ़कर संदीप रोज़ अपने दिन के कुछ घंटे लोगों से दान मांगने में लगा देते हैं. अपनी चैरिटेबल संस्था श्लोक के लिए जो महाराष्ट्र और राजस्थान के सुदूर इलाकों में बच्चों को पढ़ाने के लिए ये चंदा काम आता है. इनकी संस्था स्कूल भी बनवा रही है. फेसबुक पेज Professor Sandeep Desai के नाम से है.
8. उम्र को सिर्फ एक अंक साबित करने वाली विमला कौल..
जैसा की हम पहले भी कह चुके हैं. उम्र सिर्फ एक अंक है और कोई शिक्षक किसी भी उम्र का हो सकता है. 2018 में विमला कौल 84 साल की हो चुकी हैं. वो सरकारी स्कूल से तो 23 साल पहले ही रिटायर हो गईं थीं, लेकिन उन्होंने पढ़ाना नहीं छोड़ा. वो रिटायर होने के बाद भी पढ़ाती हैं.
विमला कौल बच्चों को पढ़ाने के लिए कोई भी बहाना नहीं बनातीं
गुलदस्ता नाम के एक स्कूल में पढ़ाने वाली विमला कौल अपने स्टूडेंट्स को शिक्षा देने के लिए अपनी सेहत तक को नहीं देखती हैं.
9. 370 किलोमीटर की दूरी तय करने वाले आशीष डबराल
आशीष एक मल्टीनेशनल आईटी कंपनी में नौकरी करते हैं. बच्चों को पढ़ाना उन्हें अच्छा लगता है, जिसके चलते वह हर हफ्ते अपने गांव जाते हैं और बच्चों को पढ़ाते हैं. वो हर वीकएंड करीब 370 किलोमीटर (एक साइड) का सफर करते हैं और 1882 में अपने दादा जी द्वारा खोले गए एक संस्कृत स्कूल में पढ़ाने जाते हैं. उस दौरान वह गढ़वाल, हिमालय में एकमात्र संस्कृत स्कूल होता था, जिसे संयुक्त प्रांत (ब्रिटिश सरकार) द्वारा मान्यता प्राप्त थी.
छुट्टी के समय आशीष घूमने की जगह पढ़ाने जाते हैं.
एक समय ऐसा था जब इस स्कूल में काफी छात्र पढ़ने आते थे. लेकिन साल 2013 में जब आशीष को मालूम चला कि उस स्कूल में केवल तीन छात्रों ने अपना दाखिला कराया है तो उन्हें इस बात से काफी फर्क पड़ा. वह जल्द ही समझ गए थे कि स्कूल में गरीबी के चलते कोई भी नहीं पढ़ने नहीं आ पा रहा है. ये सब देखने के बाद आशीष ने अपने गांव के पास में ही अपने रिश्तेदारों की मदद से एक कंप्यूटर सेंटर खोल दिया और नाम रखा 'द यूनिवर्सल गुरुकुल'. इस सेंटर में तिमली और आसपास के इलाकों के बच्चे कंप्यूटर सीखने आते हैं.
बच्चों को पढ़ाने के लिए आशीष आईएसबीटी से बस पकड़ते हैं. उन्होंने बताया 'जिस गांव में पढ़ाने जाते हैं वहां गांव से लगभग 80 किलोमीटर के दायरे में कोई स्कूल नहीं है'. यही वजह है कि लगभग 23 गांव के 36 बच्चे उनके स्कूल में पढ़ रहे हैं. स्कूल जाने के लिए बच्चे हर दिन 4 से 5 किलोमीटर का सफर करते हैं, लेकिन आशीष सिर्फ वीकएंड ही पढ़ाने जा पाते हैं. गुरुग्राम से उत्तराखंड की दूरी 370 किलोमीटर है और 10 घंटे का समय लगता है.
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