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Updated: 19 दिसम्बर, 2019 02:39 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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अब निर्भया का एक और दोषी पवन कुमार गुप्‍ता (Nirbhaya case convict Pawan Kumar Gupta) नया बहाना लेकर सामने आया है. वह खुद को वारदात के समय किशोर (juvenile) होना बता रहा है. पवन कुमार गुप्‍ता जुवेनाइल (Pawan Kumar Gupta Juvenile petition) था या नहीं, ये तो कोर्ट में तय हो ही जाएगा. इससे पहले निर्भया मामले (Nirbhaya Gangrape Case) में आरोपी अक्षय कुमार सिंह की याचिका (Nirbhaya Gangrape Case Mercy Petition) खारिज हो गई है. लेकिन इतना तो पता चल ही गया है कि एक सांस के लिए इन 4 बलात्‍कारियों को क्‍या-क्‍या करना पड़ रहा है. क्‍योंकि इन अर्जियों के खारिज होने पर पटियाला हाउस कोर्ट डेथ वॉरंट (Death Warrant) जारी कर गैंगरेप में शामिल इन चारों अपराधियों पर अपना अंतिम फैसला दे सकती है. चारों ही आरोपियों की फांसी करीब है. खबर किसी भी वक़्त आ सकती है. बात रेप की हुई है तो NCRB पर नजर डाल लेते हैं NCRB के अनुसार भारत में प्रतिदिन 92 महिलाओं का बलात्कार होता है. महिलाओं के साथ होने वाली छेड़छाड़ की घटनाओं की संख्‍या तो अनगिनत है. चूंकि निर्भया मामले में फैसला (Nirbhaya verdict) लगभग हो चुका है. ये खबर हर उस मनचले को एक बड़ा सन्देश है जिसके दिमाग में बलात्कार करने के अंकुर फूट रहे हों. जो किसी भी तरह की छेड़छाड़ में शामिल हो. ऐसे लोगों को निर्भया गैंगरेप केस में फांसी के तख्ते पर चढ़ाए जा रहे पवन कुमार गुप्ता, विनय शर्मा, अक्षय कुमार सिंह और मुकेश सिंह (Pawan Kumar Gupta, Vinay Sharma, Akshay Kumar Singh and Mukesh Singh) से सबक लेना चाहिए और वो जरूर जानना चाहिए जो इन चारों ही बलात्कारियों ने गुजरे 7 सालों में भोगा है.

निर्भया, गैंगरेप, फांसी, सुप्रीम कोर्ट, राष्ट्रपति, Nirbhaya Caseनिर्भया मामले में दोषियों को सजा उन लोगों को सबक है जिन्हें किसी महिला की इज्जत की कोई परवाह नहीं है

बात निर्भया मामले में आरोपियों की चल रही है तो ऐसा बिलकुल नहीं है कि इस पूरे मामले में केवल 4 ही आरोपी थे. हमारे लिए भी ये बताना बहुत जरूरी हो जाता है कि दिसंबर 2012 को दिल्ली में हुए इस कांड में कुल 6 लोग शामिल थे. तो आइये जानें किस हाल में हैं ये 6 आरोपी साथ ही ये भी समझें कि ये सभी लोग कैसे उन लोगों के लिए सबक हैं जो किसी स्त्री के साथ छेड़छाड़ को एक बेहद मामूली का काम समझते हैं.

राम सिंह

2012 में घटित निर्भया गैंगरेप केस में हम सबसे पहले राम सिंह का जिक्र करना चाहेंगे. निर्भया के साथ हुए बलात्कार में शामिल राम सिंह राजस्थान का रहने वाला था और 23 साल की उम्र में दिल्ली आया था. बताया जाता है कि बलात्कार के बाद जब राम सिंह गिरफ्तार हुए और जेल आया तो वहां उसे साथी कैदियों से भी काफी कुछ सुनने को मिला.

बताया जाता है कि उन बातों ने राम सिंह को इतना आहत किया कि उसने तिहाड़ जेल में ही खुद को फांसी लगाकर अपनी जान दे दी. बात अगर राम सिंह के पिता मांगेलाल की हो तो उन्होंने आरोप लगाया था कि जेल में ही राम सिंह की हत्या हुई थी.

मांगेलाल के अनुसार उसके उस हाथ में चोट थी जिसमें 2009 में एक्सीडेंट में घायल होने के कारण लोहे की रॉड डाली गई थी. हत्या का आरोप परिवार का पक्ष है पुलिस ने इसे आत्महत्या ही कहा है तो हम भी राम सिंह की मौत को आत्महत्या ही मानेंगे. राम सिंह की मौत ने उस बात को साबित कर दिया है जिसमें कहा गया है कि हर बुरे काम का अंत बुरा होता है.

जुवेनाइल

बात अगर निर्भया बलात्कार कांड की हो तो 'जुवेनाइल' मोहम्मद अफरोज़ उर्फ़ राजू (Mohammad Afroz Nirbhaya case Juvenile) को ही इस पूरी घटना का मास्टर माइंड माना जाता है. आपको बताते चलें कि जिस वक़्त ये घटना घटी इस नाबालिग लड़के की उम्र 17 साल 6 महीने थी. निर्भया मामले में इस आरोपी की वर्तमान उम्र 23 साल है.

बात अगर इसे मिली सजा की हो तो चूंकि ये नाबालिग था इसलिए इसे जुवेलाइल जस्टिस के तहत सजा हुई और इसे बाल सुधार गृह में रखा गया. इस युवक के मंसूबे कितने खतरनाक थे इसे उन बयानों से भी समझ सकते हैं जो निर्भया मामले में अन्य आरोपियों ने दिए हैं.

उन बयानों के अनुसार इसी ने निर्भया और उसके दोस्त को आवाज देकर अपनी बस में बुलाया था. निर्भया के बैठने के बाद उसी ने छेड़छाड़ शुरू की और अपने साथियों को रेप के लिए उकसाया. यही वो दोषी था, जिसने निर्भया के शरीर में लोहे की रॉड घुसाई, जिससे फैला इंफेक्शन 26 साल की छात्रा की मौत की वजह बना.

बात अगर इसकी वर्तमान स्थिति की हो तो जेल से छूटने के बाद ही पुलिस ने इसे दक्षिण भारत भेज दिया था. सुधार गृह में युवक ने खाना बनाने में दिलचस्पी दिखाई थी इसलिए युवक वर्तमान में होटलों में काम करता है. इस घिनौनी वारदात को अंजाम देने के बाद युवक की मौजदा स्थिति कैसी है?

अगर सवाल इसपर हो तो बता दें कि आज ये गुमनामी की जिंदगी जी रहा है. युवक को कोई पहचान न ले इसलिए एक जगह काम करने के कुछ महीने बाद इसे हटाकर किसी दूसरी जगह कर दिया जाता है. कुल मिलाकर ये कहना हमारे लिए कहीं से भी गलत नहीं है कि जो हालत इस समय इस युवक की है वो हमारे बीच है भी और नहीं भी है और जिस तरह की इसकी जिंदगी है उससे बेहतर मौत है.

पवन गुप्ता, विनय शर्मा, अक्षय कुमार सिंह और मुकेश सिंह

ये वो चार नाम हैं जो हमारे सामने हैं और पटियाला हाउस कोर्ट जिनपर कभी भी डेथ वॉरंट जारी कर सकता है और इनकी जीवन लीला समाप्त कर सकता है. चारों ने जो घिनौना अपराध किया है उसकी कोई माफ़ी नहीं है. चाहे हाई कोर्ट हो या फिर सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति सभी ने इनकी दया याचिकाओं को खारिज कर दिया है.

वर्तमान में किसी ऐसे आदमी को लें जिसे इस घटना (निर्भया गैंगरेप केस) की कोई जानकारी न हो उसे घटना बताएं तो वो भी शायद यही कह दे कि ऐसे लोगों को फांसी से भी सख्त सजा मिलनी चाहिए. सजा ऐसी हो कि उसे जो भी सुने उसकी आत्मा तक हिल जाए.

बात अगर इन चारों आरोपियों की हो तो जेल की चारदीवारी में तिल तिल मरते इन चारों ही आरोपियों को चंद सांसों की आस है. इन चारों ही आरोपियों द्वारा डाली गई याचिकाओं पर अगर गौर किया जाए तो मिलता है कि ये अपनी तरफ से हर वो कोशिश कर रहे हैं जिनका परिणाम इनका जीवन हो. बता दें कि फैसला तो इनके भाग्य में उसी दिन लिख गया था जिस दिन दिल्ली में ये दिल दहला देने वाली घटना हुई थी. अब जो होगा उसके लिए बस यही कहा जाएगा किअब उस लिखे को अमली जामा पहनाया जाएगा.

जैसा कि हम बता चुके हैं ये लोग अपना अंतिम वक़्त देख रहे हैं और अब बस इसी जुगत में हैं कि ये ऐसा क्या कर लें कि इनकी सांसें बच जाएं. इनके लिए जिंदगी कितनी अहम है इसे आरोपी अक्षय की उस याचिका से भी समझ सकते हैं जिसने उसने बड़ी ही बेशर्मी के साथ दलील दी थी कि, दिल्ली के लोग वायु और जल प्रदूषण से मर रहे हैं तो फिर फांसी क्यों दी जा रही है. अपनी याचिका में अक्षय कुमार सिंह ने ये भी कहा था कि प्रदूषण से दिल्ली गैस चेंबर में तब्दील हो चुकी है ऐसे में मृत्यु दंड की क्या जरूरत है.

वहीं बात अगर दूसरे आरोपी पवन गुप्ता की हो लें तो पवन के परिवार का तर्क है कि पवन निर्दोष है और उसका मामले से कोई लेना देना नहीं है. सवाल होगा कि आखिर ये लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं तो जवाब बस इतना है कि गुनाहगार होने के बावजूद ये सभी लोग जीना चाहते हैं मगर ये लोग शायद इस बात को भूल गए कि इंसान जैसा करता है वैसा ही भरता है साथ ही व्यक्ति के गुनाहों की सजा उसे उसी जन्म में मिलती है. पवन कुमार गुप्ता ने एक आखिरी दलील खुद को वारदात के समय जुवेनाइल होना बताकर दी है, लेकिन क्‍या ये काफी है?

अंत में हम फिर इसी बात को दोहरा रहे हैं कि बबूल बोने पर गेंदे या गुलाब की कल्पना व्यर्थ है. यदि कोई व्यक्ति ऐसी कल्पना कर रहा है तो वो किसी और को नहीं बल्कि अपने आपको धोखा दे रहा है. ये लोग अपने कर्म इसी जन्म में भोगेंगे और यकीनन वो बहुत तकलीफ देने वाले होंगे. हमारा इशारा सीधे तौर पर उन मनचलों की तरफ है जिन्हें औरत की इज्जत की कोई परवाह नहीं है. आज इन 4 दोषियों को सजा हो रही है. यदि ये लोग नहीं सहेत हुए तो कल फिर इनका नंबर है और तब शायद ये लोग भी जिंदगी के लिए वैसे ही घुंट घुंट कर मरें जैसे आज निर्भया बलात्कार मामले में ये 4 आरोपी.   

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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