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Updated: 13 मई, 2018 12:16 PM
निवेदिता सिंह
निवेदिता सिंह
  @nivedita.singh.7798
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मां और बच्चे का रिश्ता हर रिश्ते से अनूठा है. और हो भी क्यों नहीं.. हमारे जीवन के सभी रिश्ते हमारे जन्म लेने के बाद शुरू होते हैं, पर मां बच्चे का रिश्ता इकलौता ऐसा रिश्ता है जिसकी डोर मां के गर्भ से ही जुड़ जाती है. कल तक बेफ़िक्र घूमने वाली बेपरवाह लड़की एकदम से संजीदा और समझदार हो जाती है, जब उसे पता चलता है कि उसके भीतर एक नया अंकुर फूट रहा है जो जल्द ही एक नए जीव के रूप में उसके सामने होगा. एक इंजेक्शन के नाम से डरने वाली लड़की, दवाइयों को छुप-छुपकर डस्टबिन में फेंक देने वाली लड़की कितनी ही कड़वी दवाइयों को गले के नीचे ख़ुशी-ख़ुशी गटक जाती है. इंजेक्शन के दर्द को हल्की सी चीख के साथ सीने में छुपा ले जाती है, पर अपने होने वाले बच्चे के लिए कोई रिस्क नहीं लेना चाहती. जिस दिन से उसे मां बनने के बारे में पता चलता है, उसी दिन से उसकी ज़िन्दगी की प्रियॉरिटी बदल जाती हैं और आने वाला बच्चा उसकी ज़िंदगी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाता है.

मदर्स डे, मां, रिश्ता, गर्भवती

इसमें कोई दो राय नहीं कि मां बनना दुनिया के बेहतरीन अनुभवों में से एक है और शायद ही कोई ऐसी लड़की हो जो इस अनोखे अनुभव से ख़ुद को वंचित रखना चाहती हो. पहले की अपेक्षा आज लड़कियाँ अधिक होशियार और अपने भविष्य को लेकर सज़ग हैं, फ़िर भी उनके दिल के किसी कोने में मां बनने का सपना सबसे ऊपर होता है. हाँ इतना ज़रूर है कि बदलते दौर में मां की भूमिका में परिवर्तन देखने को ज़रूर मिल रहा है. अब माएँ सिर्फ़ बच्चे पैदा करने और उनकी देखभाल तक ख़ुद को सीमित नहीं रख रही हैं बल्कि बच्चों के क़दम से क़दम मिलाते हुए उनका भविष्य सँवारने के साथ-साथ कुछ वक़्त अपने लिए भी चुरा रही हैं, जिससे हर मोड़ पर वह अपनों बच्चों के साथ खड़ी रह पाएं और उन्हें ज़िंदगी की हक़ीक़त से रूबरू करा पाएँ. बच्चों की पढ़ाई से लेकर उनके सपनों के चयन तक में माएं आज महत्वपूर्ण रोल प्ले कर रही हैं.

बच्चों के नजरिए में भी परिवर्तन हो रहा है

पहले बच्चे सिर्फ़ खाने-पीने तक के लिए ही मां पर निर्भर रहते थे, पर अब ऐसा नहीं हैं. बच्चे हर छोटी बड़ी बात के लिए मां से सलाह ले रहे हैं और अपने स्कूल से लेकर कॉलेज तक कि बात भी खुलकर मां से शेयर करने लगे हैं. हम कह सकते हैं कि आज की मॉडर्न मां बच्चों की बेहतरीन सहेली और दोस्त साबित हो रही हैं. बच्चे के जन्म के बाद से लेकर उसके बड़े होने तक एक मां को अलग-अलग जिम्मेदारियों का निर्वहन करना पड़ता है और इस काम को वही बख़ूबी निभा सकती है. बच्चों से कब प्यार जताना है और कब उन्हें डांट लगाकर सही रास्ते पर लाना है. इस बात को मां से बेहतर कोई नहीं समझ सकता है. और आज़कल बच्चे भी मां की डांट में छुपी उसकी चिंता और मनुहार को समझते हैं.

मां और सासू मां, दोनों ही समय के साथ ख़ुद को बदल रहे हैं

मां तो आख़िर मां होती है, इस बात से तो सभी परिचित हैं, पर सासू मां के नाम से लड़कियों को अज़ीब तरह की चिढ़ रहती थी, जिसकी वज़ह था सासू मां का अपने बहुओं के साथ करने वाला भेदभाव. पर बदलते समय के साथ ससुराल में सासू मां की भूमिका में भी परिवर्तन देखने को मिल रहा है. सासू मां अब बहुओं की प्रतिद्वन्द्वी नहीं रह गई हैं, बल्कि एक मां की तरह उन्हें सपोर्ट कर रही हैं और उनके साथ दोस्ती का हाथ बढ़ा रही हैं. भविष्य के लिए निश्चित तौर पर यह एक शुभ संकेत है.

मदर्स डे का औचित्य...

सिर्फ़ एक दिन मां के लिए काफ़ी नहीं है. पर हां यह एक दिन उन कई दिनों का सेलिब्रेशन जरूर हो सकता है जो हम अपनी मां के साथ हर रोज़ शेयर करते हैं, पर जता नहीं पाते. इसलिए इस मौके को हाथ से जाने न दें और मां के साथ अपने स्पेशल बॉन्ड को और मज़बूत कीजिये. उन्हें जिस भी बात से ख़ुशी मिलती हो उनके लिए वह कार्यक्रम बनाइये और उन लम्हों को याद कीजिये जो आप और आपकी मां दोनों के लिए स्पेशल हो.

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लेखक

निवेदिता सिंह निवेदिता सिंह @nivedita.singh.7798

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

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