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Updated: 10 दिसम्बर, 2019 08:08 PM
अनु रॉय
अनु रॉय
  @anu.roy.31
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मैं जिस देश में पैदा हुई हूं और जिस रंग के साथ, मुझे कोई ख़ूबसूरत नहीं समझता. ख़ूबसूरती की पारम्परिक परिभाषा में मैं ख़ूबसूरत नहीं मानी जाती. लेकिन मैं चाहती हूं कि अब जब मैं अपने देश को लौटूं तो बच्चियां मुझ देख कर गर्व से भर जाएं. वो मुझ में अपना अक्स देखें और ख़ुद को ख़ूबसूरत महसूस कर सकें. - मिस यूनिवर्स जोजिबिनी टूंजी (MISS UNIVERSE 2019 Zozibini Tunzi)

वैसे सच ही तो कह रही थीं अटलांटा के मिस-यूनिवर्स के मंच से साउथ अफ़्रीका की जोजिबिनी. और ये अकेले उनका सच नहीं दुनिया की करोड़ों लड़कियों का सच है. हम लड़कियां चाहे दुनिया के किसी भी देश, किसी भी कोने से हो सबसे पहले हम नैन-नक़्श और रंग पर ही तो तौली जाती हैं. हम क्या और कितना जानती हैं ये बाद में आता है. ख़ास कर हम हिंदुस्तानी लड़कियां.

जोजिबिनी टूंजी , मिस यूनिवर्स, सुंदरता, रंग, Zozibini Tunziदक्षिण अफ्रीका की जोजिबिनी टूंजी ने मिस यूनिवर्स बन कई मिथकों को तोड़ा है

हमें तो बचपन से ही बेसन-दूध-हल्दी का लेप लगाया जाता कि हमारा रंग साफ़ हो सके. फिर जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है हम फ़ेयर-एंड-लवली से ले कर तमाम तरह की गोरेपन की क्रीम को अपनाना शुरू कर देते हैं. ऐसा नहीं है कि ये हम शौक़ से कर रहे होते. इसके पीछे पूरा का पूरा एक तंत्र काम कर रहा. फ़ेयरनेस क्रीम की मिलियन-ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी इसी रंग को हथियार बना कर खेल रही है. ये अपने विज्ञापनों में दिखाएंगे कि लड़की काली है तो न ब्याह हो रहा उसका और न नौकरी मिल रही. गोरेपन की क्रीम लगाते ही लेकिन उसकी क़िस्मत चमक गयी.

जबकि हक़ीक़त यह है कि हम जिस रंग के साथ पैदा हुए हैं उसी के साथ विदा कहेंगे इस दुनिया से. लेकिन मूर्ख बनना कभी मजबूरी तो कभी हमारी नियति होती है.

लेकिन अब यह सोच बदलनी चाहिए. ख़ास कर लड़कियों तुम जिस भी रंग की हो, जैसी भी हो ख़ूबसूरत हो. कोई तुम्हें चाहे तो तुम्हारे सीरत के लिए न कि गोरे रंग के लिए. और जो रंग देख कर तुम्हें सराहे तुम मान लेना कि उसका मन मैला है. प्लीज़ ख़ुद को यूं किसी और के लिए रंगों-पोतो मत. ख़ुद से प्यार करो.चुनो अपनी ख़ूबसूरती को अपने शर्तों पर. और मिस-यूनिवर्स जोजिबिनी आपको बहुत बधाई और ख़ूब सारा प्यार.

बीती रात आप जिस ख़ूबसूरती से अपने बचपन के दिनों से ले कर अब तक के सफ़र को बयान कर रही थी, उसने दुनिया की करोड़ों लड़कियों को हौसला दिया कि अगर हम चाह लें तो सब मुमकिन है. जिस अन्दाज़ में आपने कहा कि आपकी दादी ने आपको, आपकी ज़िंदगी की पहली किताब दीं थीं. जबकि वो ख़ुद कभी स्कूल नहीं जा पाई थीं.

आपकी दादी ने आपको कैसे बचपन में ही एहसास दिलवाया कि ख़ूबसूरती के लिए सिर्फ़ रंग-रूप नहीं बल्कि ज्ञान मायने रखता है. ज्ञान से ही इंसान ख़ूबसूरत बनता है. आपको बहुत शुक्रिया सुंदरता को एक नया आयाम देने के लिए. रंग से परे सपने देखने और उनके सच होने का भरोसा देने के लिए!

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ये तो नये, सुंदर और लंबे सफर की शुरुआत है

अगले जनम मोहे सुंदर न कीजो..

लेखक

अनु रॉय अनु रॉय @anu.roy.31

लेखक स्वतंत्र टिप्‍पणीकार हैं, और महिला-बाल अधिकारों के लिए काम करती हैं.

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