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Updated: 11 जून, 2015 01:17 PM
सौरिश भट्टाचार्य
सौरिश भट्टाचार्य
  @sourishb1963
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मैगी नूडल्स के खिलाफ शुरू हुई राष्ट्रव्यापी कार्रवाई एक क्लासिक मामले की तरह बहुत कम और देर से उठाया गया कदम लग सकता है, लेकिन इस कदम ने हमें खाद्य पदार्थों और उनके उत्पादन की स्थिति के बारे में सोचने को मजबूर कर दिया है.

बड़ा मुद्दा मैगी नहीं है, जो 32 वर्षों से बिना रोकटोक चल रही है, या इसके निर्माता, या नेस्ले नहीं, न ही अमिताभ बच्चन या माधुरी दीक्षित (क्या हम एक 'सेलिब्रिटी एंगल" के बिना इस देश में कोई खबर कहानी पा सकते हैं?). यह मामला ऐसा है कि हम सभी को उत्तेजित होना चाहिए कि हमारा कानून और हमारी प्रवर्तन एजेंसियां हमारे रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करने वाली चुनौती से निपटने के लिए नाकाफी है.

कुछ समय पहले मैंने ऊटपटांग लेबलिंग के मुद्दों का हवाला देते हुए खाद्य पदार्थों और मादक पेय पदार्थों के आयात में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) की रूचि देखकर इसे बंद कराने के लिए लिखा था.

यह निवेश घरेलू उत्पादकों में यह सुनिश्चित करने की कोशिश में किया गया था कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों और स्थानीय निर्माताओं से रेस्तरां तक, बूचड़खानों और स्ट्रीटफूड विक्रेताओं तक अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता मानकों और भोजन की गुणवत्ता के मानदंडों का पालन करेंगे. हमारे हालात ऐसे नहीं हैं कि हम मैगी के हर पैकेट को अब बुरा कहें, क्योंकि मैगी का हर पैक उपभोग के लिए सुरक्षित है इसके लिए पैक पर बना FSSAI का एक लोगो गारंटी माना जाता है.

FSSAI के बचाव में यह तर्क हो सकता है कि इनके पास प्रशिक्षित कर्मियों की पर्याप्त संख्या नहीं है, और न ही इनके पास अपना बड़ा काम होने के बावजूद प्रयोगशालाएं पर्याप्त हैं, लेकिन इतने लंबे समय के बाद भी इस संगठन ने खुद को कमतर दिखाने के लिए बहुत कुछ किया है ताकि यह तर्क इसके पक्ष में काम आए.

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मैगी, अब इस्तेमाल के लिए एक लोकल सा शब्द बन गया है, यह एक सूप हो सकता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि बाजार में जिन अन्य खाद्य उत्पादों की बाढ़ आ गई है, वे इसांन के इस्तेमाल के लिए सुरक्षित हैं (और जाहिर है अब हमे पता है कि FSSAI का लोगो किसी भी बात गारंटी नहीं है). कई वर्षों से विशेषज्ञ हमारे भोजन लेबलिंग कानूनों के खिलाफ झंडा बुलंद कर रहे हैं और सेंटर फॉर साइंस एंड एनवाइर्नमेंट (सीएसई) जैसे गैर-सरकारी संगठन कुछ लोकप्रिय खाद्य ब्रांडों में से कुछ के खिलाफ पुख्ता सबूतों के साथ सामने आए हैं. लेकिन किसी को इस बात की परवाह नहीं है यहां तक कि किसी ने इसके नतीजों पर भी गौर नहीं किया है.

सीएसई ने बिना शक की गुंजाइश के यह साबित कर दिया है कि खाद्य उत्पादों के निर्माता केवल ट्रांस फैट पर कानून द्वारा निर्धारित सीमा के तहत स्वाद के लिए अपनी सेवाएं दे रहे हैं, जो अवरुद्ध धमनियों और दिल के दौरे की प्रमुख वजह बनता है. कुछ साल पहले सीएसई ने प्रयोगशाला में कुछ लोकप्रिय फूड़ पैक लेबल की जांच की थी और स्कूली बच्चों को ध्यान में रखकर प्रकाशित एक रिपोर्ट में जंक फूड का भंडाफोड़ किया था.

सीएसई ने अपनी रिपोर्ट में पूछा कि "हल्दीराम आलू भुजिया और टॉप रेमन नूडल्स ट्रांस फैट से मुक्त होने का दावा करते हैं लेकिन क्या वे सच में ऐसे हैं?" FSSAI का नियम है कि वही उत्पाद ट्रांस फैट से मुक्त होने का दावा कर सकते हैं जिनमें सर्व किए जाते वक्त इस घातक पदार्थ की मात्रा 0.2gm की तुलना में कम होती है. लेकिन सीएसई ने अध्ययन में पाया कि टॉप रेमन नूडल्स के एक पैकेट में ट्रांस फैट की मात्रा 0.6gm है और हल्दीराम की 100 ग्राम आलू भुजिया में ट्रांस फैट की मात्रा 2.5gm है.

सीएसई रिपोर्ट यह भी बताती है कि "लेज़ अमेरिकन स्टाइल क्रीम एंड ऑनियन जैसे उत्पादों के 100 ग्राम पैक में 'जीरो' ट्रांस फैट का दावा किया जाता है. लेकिन सीएसई के अध्ययन में पाया गया कि इसके 100 ग्राम चिप्स में ट्रांस फैट की मात्रा 0.9gm है.

बिंगो ओए पुदीना चिप्स ऐसा ही एक अन्य उत्पाद है. "और यह भी हजारों उल्लंघन करने वाले हमारे फूड़ बिजनेस ऑपरेटरों में से एक है" और इसी वजह से FSSAI के लोग उन्हें रोजाना फोन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

अगर अंतरराष्ट्रीय खाद्य निर्माता झूठी लेबलिंग करने में लगे हैं तो क्या हम एक ही तेल को बार-बार इस्तेमाल करने वाले स्ट्रीटफूड विक्रेताओं को दोष दे सकते हैं, जो खाना पकाने के माध्यम से कैंसर की वजह बनने वाले रसायनों को छोड़ रहे हैं? हमारी FBOs की दुनिया शायद स्टार होटलों और एयरलाइन किचन को छोड़कर बड़े पैमाने पर अनियमित है जिसे FSSAI न तो अपनी ताकत दिखाती है और न ही नियंत्रित कर पाती है. हम केवल यह उम्मीद कर सकते हैं कि मैगी पर नाराजगी का लगातार राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार होगा. ऐसे ही उत्पादों ने हमारे खाद्य कानूनों को कमजोर कर दिया है.

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लेखक

सौरिश भट्टाचार्य सौरिश भट्टाचार्य @sourishb1963

लेखक मेल टुडे और आईटी ट्रेवल प्लस के स्तंभकार हैं.

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