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Updated: 17 सितम्बर, 2015 10:24 AM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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जिनकी कला के लोग दीवाने हैं, जिनका नाम कला के कद्रदानों ने सुनहरे अक्षरों में लिखा, जिनकी पेंटिंग्स लाखों करोड़ों में बिकती हैं, जिनके रंगों का सम्मान भारत ने कुछ ऐसे किया कि पद्म श्री(1955), पद्म भूषण(1973) और पद्म विभूषण(1991) उनके नाम कर दिए. इतने सम्मान और इतनी दीवानगी के बावजूद भी उस शख्स को भारत छोड़कर जाना पड़ा, वो शख्स थे भारत के पिकासो, मकबूल फिदा हुसैन. ये नाम जितना लोकप्रिय है उतना विवादित भी, उनके जन्मदिन पर उन्हें याद कर करते हैं और जानते हैं कि क्यों हुसैन हमारे होते हुए भी हमारे नहीं रहे.

32 साल की उम्र में ही हुसैन की गिनती नामी गिरामी चित्रकारों में होने लगी थी. चित्रकारी ही नहीं हुसैन ने फिल्मों का निर्देशन भी किया. देश विदेश में मशहूर हुसैन को खबरों में बने रहना बहुत पसंद था. अपने काम की वजह से तो वो अक्सर चर्चित रहते ही थे पर वो कुछ न कुछ ऐसा भी करते रहते कि खुदबखुद सुर्खियों में आ जाते थे. 

खूबसूरती के दीवाने थे- खूबसूरत चित्रकारी करने वाले हुसैन खूबसूरती के बहुत बड़े दीवाने थे, आपातकाल के दौरान उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पेंटिंग बनाई, बॉलीवुड की अदाकाराओं से खासे प्रभावित थे हुसैन. माधुरी दीक्षित के फैन रहे हुसैन ने अपनी दीवानगी को एक फिल्म के ज़रिए दिखाया, 'गजगामिनी' नाम की ये फिल्म अब शायद ही किसी को याद हो. इतना ही नहीं माधुरी के बाद हुसैन फिदा हुए तब्बू पर, और उन्हें भी फिल्म 'मीनाक्षी-ए टेल ऑफ़ थ्री सिटीज़' के ज़रिए चित्रित किया. यहां तक तो ठीक था, पर विद्या बालन पर हुसैन कुछ इस तरह फिदा हुए कि उन्होंने विद्या के सामने उनकी न्यूड पेंटिंग बनाने की पेशकश रख डाली. अपनी इस दीवानगी के कारण उनका अच्छा खासा मज़ाक बना. हालांकि एक चित्रकार किस तरह से सोचता है ये कोई नहीं समझ सकता.

हिंदू देवियों की तस्वीरों को लेकर विवाद- चरमपंथी हिंदू संगठनों की मानें तो हुसैन हिन्दू विरोधी थे. उन्होंने हिन्दू देवियों की ऐसी तस्वीरें बनाई जिससे हिन्दू धर्म को लोगों को बड़ा झटका लगा. उन्होंने मां दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती की नग्न तस्वीरें बनाईं. जिसके बाद उन्हें कड़ी आलोचना का शिकार होना पड़ा। हुसैन ने सन 1970 में ये पेंटिंग बनाई थीं मगर इन पेंटिंग को 'विचार मीमांसा' नाम की पत्रिका में साल 1996 में छापा गया था, और इसका शीर्षक दिया गया, मक़बूल फ़िदा हुसैन-पेंटर या क़साई. अश्लील पेंटिंग बनाने के विरोध में हुसैन के खिलाफ देश भर में कई आपराधिक मामले दर्ज किए गए। उनके खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी हुए। 1998 में हिंदू संगठनों ने हुसैन के घर पर हमला किया और वहां रखी दूसरी तस्वीरों को नष्ट कर दिया था।

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                                                             हिन्दू देवियों की विवादित पेंटिग्स

ईश-निंदा का आरोप- एक इस्लामी संगठन 'ऑल इंडिया उलेमा काउंसिल' ने उनकी फ़िल्म 'मीनाक्षी' के एक गीत 'नूर-उन-अला-नूर' से नाराज़गी जताई। इस गीत को ईश-निंदा माना गया। हुसैन ने फिल्म से इस गाने को नहीं हटाया बल्कि इस फ़िल्म को ही सिनेमाघरों से हटा लिया था।

भारतमाता को दिखाया नग्न- 2006 में इंडिया टुडे की मैगजीन के कवर पेज पर भारत माता की नग्न तस्वीर की वजह से हुसैन की काफी आलोचना हुई. इस तस्वीर में एक नग्न युवती को भारत माता के रूप में दिखाया गया जो भारत के मानचित्र पर लेटी हुई थी. उसके पूरे जिस्म पर भारत के राज्यों के नाम थे। हिंदू जागृत्ति समिति और विश्व हिंदू परिषद् ने इसे अश्लील मानते हुए कड़ा विरोध किया।

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                                                          भारतमाता की विवादित पेंटिंग

अजीबोगरीब पेंटिंग्स- हुसैन की पेंटिग्स के लोग दीवाने हैं, फिर भी उनके बनाए चित्र अक्सर लोगों को समझ नहीं आते थे. एक बार म्यूजिक सुनते-सुनते उन्होंने पेंटिंग बनाई, और म्यूजिक बंद होते ही पेंटिंग खत्म कर दी और एक बढ़िया पेंटिग तैयार हो गई. बाद मे यह पेंटिग काफी महंगी बिकी. मुंबई के पृथ्वी थियेटर्स में हुसैन ने एक कैनवस पर दो मिनट में ही पेंटिंग बना डाली और फिर दूर खड़े होकर हाथों में रंग उठाया और वहीं से कैनवस पर फेंक दिया. फिर एक नई पेंटिंग तैयार थी.

अंतिम समय रहा निर्वासित जीवन- कहते हैं जो प्यार करते हैं वही सबसे ज़्यादा हर्ट होते हैं. हुसैन को जितना सम्मान भारत ने दिया, उनकी विवादित पेंटिग्स ने भारत को ही सबसे ज्यादा हर्ट किया. उसका असर ये हुआ कि 2006 में हुसैन पर लगातार विरोध प्रदर्शन, मुकदमे हुए, उन्हें मौत की धमकियां भी मिलने लगीं. इन सबसे हुसैन इतना दुखी हुए कि उन्होंने स्वेच्छा से भारत छोड़ दिया और वो लंदन और दोहा में निर्वासित जीवन बिताने लगे। बाद में 2010 में उन्हें क़तर की नागरिकता मिल गई। अपनी आखिरी सांस भी हुसैन भारत में न ले सके, 9 जून 2011 को लंदन में उनकी मृत्यु हो गई.

मकबूल फिदा हुसैन की पेंटिंग्स पर लोग कल भी फिदा थे और हमेशा फिदा रहेंगे, ठीक वैसे ही ये नाम कल भी चर्चा में था और हमेशा चर्चाओं में बना रहेगा.

 

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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