हिंदी-इंग्लिश का एक पेज सुलेख ही डॉक्टरों का मोक्ष हो सकता है
क्या आम क्या खास डॉक्टर्स की हैंड राइटिंग से सभी परेशान थे. ऐसे में इलाहाबाद हाई कोर्ट का उसे गंभीरता से लेना और डॉक्टर्स पर जुर्माना लगाना ही सुधार की दिशा में उठाया गया पहला कदम है.
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आम आदमी की नजर में भगवान का दर्जा रखने वाले डॉक्टर सावधान हो जाएं. मरीज को देखते वक्त, हैंडराइटिंग के नाम पर अब तक जो कौआ डॉक्टर्स पर्चे पर बैठाते थे, अब वो नहीं चलेगा. कोर्ट ने उन कौओं के पर कुतर दिए हैं. अब डॉक्टर्स को अपनी हैंड राइटिंग सुधारनी ही होगी. खबर उत्तर प्रदेश से है. इलाहबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक हैरत में डालने वाला फैसला सुनाया है. कोर्ट ने तीन डॉक्टरों पर केवल इस बात पर 5-5 हजार रुपये का जुर्माना लगाया, क्योंकि उनकी हैंड राइटिंग इतनी बुरी थी कि काबिल से काबिल इंसान भी शायद ही उसे पढ़ पाए.
दरअसल, अपराध के तीन अलग मामलों की सुनवाई में सीतापुर, उन्नाव और गोंडा के अस्पतालों ने जो रिपोर्ट कोर्ट के सामने पेश की वो पढ़े जाने लायक नहीं थी. रिपोर्ट में दर्ज डॉक्टरों की लिखावट इतनी बदतर थी कि उसे पढ़ना लगभग असंभव था. बेंच ने इस बात को आधार बनाया और माना कि इससे कार्य में बाधा उत्पन्न हो रही है.
डॉक्टर्स की हैंड राइटिंग हमेशा ही लोगों की चिंता का एक बड़ा कारण रही है
कोर्ट ने तीनों डॉक्टरों, उन्नाव के टीपी अग्रवाल, सीतापुर के पीके गोयल और गोंडा के आशीष सक्सेना को कोर्ट के समक्ष हाजिर होने के आदेश जारी किया. जस्टिस अजय लांबा और जस्टिस संजय हरकोली की बेंच ने इन डॉक्टरों को कोर्ट की लाइब्रेरी में 5-5 हजार जमा करने के आदेश दिए. साथ ही आदेश की प्रति प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य को भिजवाई है. कोर्ट ने कहा कि बार-बार डॉक्टरों से कहा जा रहा है कि वे अपनी लिखावट में आसान शब्द लिखें, लेकिन उनकी लिखावट ऐसी होती है जिसे समझ पाना जजों और वकीलों के लिए बहुत कठिन होता है. कोर्ट के अनुसार हर बार मेडिकोलीगल रिपोर्ट पढ़ने के लिए डॉक्टरों को बुलाना भी संभव नहीं है.
गौरतलब है कि एक याचिका पर सुनवाई करते वक़्त कोर्ट, याचिकाकर्ताओं की ओर से प्रस्तुत इंजरी रिपोर्ट नहीं पढ़ पा रहा था. कोर्ट ने इसे कार्य में बाधा माना और रिपोर्ट तैयार करने वाले सीतापुर जिला अस्पताल के डॉक्टर को तलब कर लिया. कोर्ट ने जब डॉक्टर से पूछा कि क्या उन्हें डीजी मेडिकल एवं चिकित्सा के सर्कुलर के बारे में जानकारी नहीं है? डॉक्टर ने कहा कि वो सर्कुलर उनके संज्ञान में है, लेकिन काम की अधिकता के चलते उनसे ऐसा हो गया.
डॉक्टर द्वारा प्रस्तुत किये गए इस तर्क पर कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा कि काम की अधिकता इस बात का बहाना नहीं हो सकती. ऐसी इंजरी रिपोर्ट तैयार करने का क्या फायदा जिसे पढ़ा ही न जा सके. यह कहते हुए कोर्ट ने डॉक्टर पर पांच हजार रुपये का जुर्माना ठोक दिया. इसके अलावा कोर्ट ने ये भी कहा कि रिपोर्ट में संक्षिप्त शब्दों का इस्तेमाल न किया जाए.
आपको बताते चलें कि, कोर्ट के एक आदेश के अनुपालन में डीजी मेडिकल एवं चिकित्सा ने 8 नवंबर 2012 को सर्कुलर जारी किया था. सर्कुलर में प्रदेश के सभी सरकारी डॉक्टरों को आदेश दिया था कि मेडिकोलीगल रिपोर्ट्स तैयार करते समय इस बात का विशेष ध्यान दिया जाए कि लेखनी साफ सुथरी हो ताकि उसे जज, सरकारी वकील या डिफेंस के वकील द्वारा पढ़ा जा सके.
डीजी मेडिकल एवं चिकित्सा ने अपने उस सर्कुलर में कहा था कि, डॉक्टर मेडिको लीगल अपने लिए नहीं तैयार करते बल्कि उसका प्रयोग कोर्ट में होने के लिए करते हैं. यह भी आदेश दिया था कि रिपोर्ट बनाते वक्त डॉक्टर्स संक्षिप्त शब्दों का प्रयोग न करें. साथ ही रिपोर्ट को बहुत ही साधारण शब्दों में लिखा जाए ताकि उसे समझने में आसानी हो. इसके अलावा सर्कुलर में ये भी था कि जिस डॉक्टर ने रिपोर्ट तैयार की हो उसका नाम, हस्ताक्षर एवं पद रिपोर्ट पर जरूर दर्ज हो.
बहरहाल, अब जबकि कोर्ट डॉक्टर्स की हैंड राइटिंग को लेकर सख्त हो गया है. तो हम उन डॉक्टर्स से मुखातिब होना चाहेंगे जिनकी राइटिंग को केवल मेडिकल स्टोर वाला समझ पाता है. हम जानते हैं और हमने बड़े बुजुर्गों से सुना भी है कि डॉक्टर बनना कोई आसन नहीं है. डॉक्टर बनने में बहुत मेहनत लगती है. इंसान 18- 20 घंटे की पढ़ाई करता है.
पुरानों के पास अनुभव ज्यादा है. वो कोई न कोई तिकड़म भिड़ा लेंगे. हम उन लोगों से बात कर रहे हैं जो ताजे ताजे डॉक्टर बने हैं. या फिर कुछ महीनों में डॉक्टर बन जाएंगे. ऐसे लोग आज से ही एक पेज हिन्दी और एक पेज इंग्लिश की नकल कर उसे किसी रफ नोट बुक में उतरना शुरू कर दें. कहावत है कि मेहनत कभी बर्बाद नहीं जाती. इनकी भी नहीं जाएगी. क्या पता अभी नोट बुक पर नोट बुक भरती ये मेहनत भविष्य में हैंडराइटिंग अच्छी कर दे और डॉक्टर साहब भारी भरकम जुर्माने से ही बच जाएं.
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