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Updated: 26 नवम्बर, 2015 01:41 PM
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बड़ा हो या छोटा - दुनिया का हर एक देश आतंकवाद की समस्या से जूझ रहा है. शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरता हो, जब आतंकी घटनाओं की खबरें सुनने-पढ़ने को नहीं आतीं. कुछ खुशकिस्मत देशों ने इसे हाल-फिलहाल में महसूस किया है, जबकि भारत के साथ ऐसा नहीं है. राज्य प्रायोजित आतंकवाद को जितने लंबे समय से भारत ने झेला है, उतना शायद ही किसी ने झेला हो. लेकिन अनुभव से सबक सीख ही लिया जाए, यह जरूरी नहीं. 26/11 से जुड़ी एक तस्वीर तो यही बयां कर रही है.

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शहीद स्मारक की बदहाली... कल्याण के कॉर्पोरेटर अरविंद मोरे कहते हैं कि शहीद स्मारक की मरम्मत के बजाय वे एक नया और भव्य स्मारक बनाएंगे!!! फोटो साभार : Mid Day

कुछ तारीखें इतिहास में दर्ज हो जाती हैं. 26/11 की तारीख भी कुछ ऐसी ही है. कुछ लोगों के मन में यह बस भी जाती है - लेकिन कुछ ही लोगों के मन में. नेताओं के लिए ऐसी तारीखों का मतलब डायरी के एक आम दिन से कुछ ही ज्यादा - एक ऐसा दिन जब कहीं जाकर कुछ फूल-वूल चढ़ाना होता है. इन दिनों में जनता के दिल में भावनाओं की नदी बहती है, ऐसा भी नहीं है. स्मारकों की बदहाली में हमारा योगदान नेताओं से कहीं बढ़कर होता है. इन पर पान की पीक फेंकने और कचड़े के ढेर लगाने का 'शुभ कार्य' हम ही तो करते हैं.

जब-जब देश में आतंकी हमला होता है, हमारी देशभक्ति गुब्बारे सी फूल जाती है - नेता-अभिनेता से लेकर जनता तक सभी एक राग में होते हैं. कुछ दिनों के बाद जिनके अपने दुनिया छोड़कर चले गए होते हैं, सिर्फ वही दर्द झेलते हैं - सहायता राशि से लेकर अनुकंपा पर नौकरी तक के लिए वो लंबी बाट जोहते हैं. अफसोस कि उनका दर्द कभी भी हमारा दर्द नहीं बन पाता... तभी तो आतंक और आतंकी सिस्टम को खत्म करने के लिए हम अपने सिस्टम पर दबाव नहीं बना पाते हैं - जिसका मौका हर पांच वर्षों में हमारे पास आता है. और ऐसा करके हम 26/11 के बाद किसी 13/7 का इंतजार करते हैं या वेंसडे के बाद किसी थर्सडे का... मानो हम इसके आदी हो चुके हैं!!!

#26/11, #मुंबई अटैक, #आतंकवाद, 26/11, मुंबई अटैक, आतंकवाद

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