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Updated: 16 सितम्बर, 2015 12:56 PM
प्रतीक्षा पांडेय
प्रतीक्षा पांडेय
  @prateeksha.pandey
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वे सिग्नल पर आते हैं और आपके मुंह पर ताली बजाकर पैसे मांगते हैं, लेकिन आप मुंह फेर लेते हैं. फिर किसी खुशी के मौके पर वे घर आकर नाचते-गाते हैं, पर आप दरवाज़े बंद कर लेते हैं. आप 100 नंबर पर फ़ोन करके पुलिस बुलाते हैं, लेकिन आपकी जेब से पैसे निकलवाने के उनके अपने तरीके हैं. जब आपको लगता है कि वे अपने कपड़े उतारने लगेंगे, आप घबराकर आत्मसमर्पण कर देते हैं. आप उनके निजी अंग देखने से डरते हैं क्योंकि आपको लगता है वे नॉर्मल नहीं हैं. कहीं आपको कुछ ऐसा न दिख जाए जो 'नॉर्मल' लोगों से अलग है और जो आपने कभी देखा नहीं. 

बीते शुक्रवार को सुबह अखबार में खबर पढ़ी. आप विधायक प्रवीण कुमार के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को प्रस्ताव दिया कि दिल्ली में किन्नरों को कैब की स्टीयरिंग थमा दी जाए. ऐसा इसलिए कि कैब्स के अंदर महिलाओं के साथ होने वाले रेप की संख्या बढ़ती जा रही है. कुछ दिनों पहले तो ऐसी भी खबर आई कि एक कैब का ड्राइवर पीछे बैठी लड़की को बैक मिरर में देखकर मैस्टरब्रेट कर रहा था. विधायक प्रवीण कुमार की दलील है कि अगर किन्नर कैब चलाएंगे तो महिलाओं की इज्जत को खतरा नहीं होगा. पर इसके पीछ सोच क्या है? ऐसा उन्हें शायद इसलिए लगता है क्योंकि किन्नर मर्दों वाली ताकत रखकर भी 'मर्द' नहीं होते या शायद 'पूरे मर्द' नहीं होते.

किन्नरों को महिलाओं की रक्षा के लिए रखना कोई नई बात नहीं है. पहले ये हरम की पहरेदारी किया करते थे और रानियों के ख़ास होते थे. तबसे इनको ख्वाजा सरा कहा जा रहा है. ऐसा माना जाता है कि किन्नर 'नपुंसक' होते हैं इसलिए औरतें इनके साथ सेफ होती हैं. पर क्या किन्नर सच में नपुंसक होते हैं ? कामसूत्र के पन्ने पलटें तो न ही सिर्फ किन्नरों का ज़िक्र है बल्कि सेक्स करते हुए उनका चित्रण है. कामसूत्र के अनुसार वो 'तृतीय प्रकृति' हैं. ओरल सेक्स को समझाने के लिए वात्स्यायन ने किन्नरों का सहारा लिया है. 

आप किन्नरों को नपुंसक इसलिए कहते हैं क्योंकि वो आपके दिमाग में बसी 'नॉर्मल' की परिभाषा में फिट नहीं होते. क्योंकि आप उन्हें 'स्त्री' या पुरुष जैसी किसी बड़ी लिंगभेदी केटेगरी में डाल नहीं सकते. क्योंकि वो बच्चे पैदा नहीं कर सकते. 'नॉर्मल' की यह परिभाषा बचपन से आपके दिमाग में बैठाई गई है और आप इस कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलने में घबराते हैं. किन्नरों को कैब ड्राइवर बनाना उस  पुरुषवादी सोच की उपज है जो ये कहती है कि मेरी पत्नी, बेटी या बहन अगर दूसरे मर्दों से दूर रहे तो सेफ रहेंगी. 

अगर किन्नर कैब्स चलाएंगे तो उन्हें रोज़गार मिलेगा, ये बात सच है, पर समस्या किन्नरों की सेक्शुएलिटी, जिसका मतलब लैंगिकता और कामुकता दोनों से है, उसको नॉर्मल न मानकर, अपनी बनाई हुई नॉर्मल की परिभाषा में अंटाने से है. किन्नरों को यूनिफॉर्म देकर उन्हें उस तरह के 'नॉर्मल' में धकेला जाना है जिसके खिलाफ तमाम LGBT ग्रुप्स लड़ रहे हैं. रक्षा और पहरेदारी कराने वाली मानसिकता उनकी सेक्शुएलिटी से जुड़े टैबू से लड़ती नहीं, बल्कि उनको बढ़ावा देती है और समाज और कल्चर के हाशिये पर धकेल देती है. 

अगर किन्नरों की भलाई की परवाह सचमुच है तो उन्हें स्कूल-कॉलेजों में पढ़ने का मौका दें. नौकरियां दें. उनका काम सिर्फ बच्चे के पैदा होने पर आशीर्वाद देने का है, ये सोचना छोड़ दें. उनसे घबराना बंद करें क्योंकि वे मार्स से आए हुए एलियन नहीं हैं.

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लेखक

प्रतीक्षा पांडेय प्रतीक्षा पांडेय @prateeksha.pandey

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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