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Updated: 31 मार्च, 2017 02:19 PM
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लड़कियों के पीरियड्स हमेशा से समाज को खटकते आए हैं. लड़की होना अपने में कितना बड़ा पाप हैं ये समाज हमें बताने से कभी नहीं चूकता. लड़की को पीरियड्स हुए नहीं कि लोगों की नजरों में ये अछूत हो जाती हैं. पीरियड्स के दौरान घर में भी पाबंदियां, और तो और भगवान के दरवाजे भी बंद कर दिए जाते हैं.

लेकिन इस समाज को कब समझ आएगा कि पीरियड्स कोई छुआछूत की बीमारी नहीं बल्कि भगवान की ही देन हैं. ये एक प्राकृतिक क्रिया है, जिसकी वजह से हर महिला को इस दौर से गुज़रना पड़ता है. समाज में पीरियड को लेकर मानसिकता बदने के लिए कोशिशें जारी हैं, लेकिन हद तो तब हो जाती है जब इन्हीं कोशिशों पर कोई पढ़ा लिखा इंसान पानी फेर देता है. यहां बात केरल के एक एक नेता की हो रही है, वो नेता जो स्टेज पर खड़े होकर लड़कियों की सुरक्षा का दम भरते हैं, और वही महिलाओं के चरित्र तो कभी पीरियड्स जैसी बातों पर अपनी घटिया सोच भी दर्शाते हैं.

नेताओं की सोच को सलाम

केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) के अंतरिम अध्यक्ष एमएम हसन ने कहा है किऔरतों को मासिक धर्म के दौरान मंदिर में नहीं जाना चाहिए. क्योंकि औरतें इस दौरान अपवित्र होती हैं. मासिक धर्म के दौरान औरतों को पूजा नहीं करनी चाहिए. औरतों को खुद ही ये सोचना चाहिए इसलिए उन्हें मंदिर जाने से बचना चाहिए. मुस्लिम औरतें भी मासिक धर्म के दौरान पूजा और व्रत नहीं करतीं. मेरी बात को किसी और तरह से नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि ये मेरी निजी राय है. सबकी अपनी राय होती है और मेरा ऐसा मानना है कि अपवित्रता की वजह से मासिक धर्म के दौरान औरतों का मंदिर, मस्जिद या चर्च जाना ठीक नहीं.’ 

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पीरियड्स को अपवित्र बताते हुए हसन ने तर्क दिया की पीरियड्स के अपवित्र होने के पीछे कुछ वैज्ञानिक कारण भी हैं. जबकि जब जब उनसे वैज्ञानिक कारण बताने के लिए कहा गया तो वो कुछ बोल नहीं पाए. काश कि थोड़ी बायोलॉजी पढ़ लेते नेताजी...

युवा हो रहे हैं जागरुक-

मंत्री जी वरिष्ठ हैं इतने ऊंचे औहदे पर हैं, लेकिन उनकी सोच से अच्छी तो इस 20 साल के लड़के की सोच है, जिसे साफ पता है कि लड़कियों के पीरियड्स कोई पाप नहीं बल्कि एक नैचुरल प्रकिया है. स्नातक का ये छात्र करण लूथरा सोशल मीडिया पर वीडियो सीरीज़ चला रहे हैं जिसमें वो उन बातों पर खुलकर बात करता है जिसपर हमारा समाज बात नहीं कर पाता. इस सीरीज का नाम करण ने Lets Talk About Awkward रखा है.

ये वीडियो उन सारे लोगों की सोच पर तमाचा है जो पीरियड्स को लेकर घटिया सोच रखते हैं.

महिलाएं भी होती हैं बराबर की जिम्मेदार

दरअसल, इस टैबू की वजह महिलाएं खुद हैं. आज भी हमारे घरों में चाची/काकी अपनी बेटियों को मासिक धर्म के दौरान तरह-तरह की नसीहतें देती रहती हैं. छोटे शहर में आज भी लड़कियों पर अचार न छूने, पूजा का सामान न छूने, मंदिर न जाने, जमीन पर सोने जैसी न जाने कितनी ही पाबंदियां लगायी जाती हैं. महिलाओं को भी समझना होगा कि इसका पवित्रता से कोई लेना-देना नहीं है.

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समय बदल रहा है, लोगो की सोच कब बदलेगी-

पीरियड्स को लेकर दकियानूसी सोच रखने वालों को एक लड़की ने सोश्ल साइटस पर करारा जवाब दिया था. कोलकाता की हाई स्कूल में पढ़ने वाली एक लड़की ने जब 2016 में अपने पीरियड वाले पजामा को सोशल साइट पर शेयर किया, तो ये लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गई थी. दरअसल, अनुष्का दासगुप्ता नाम की इस लड़की को अचानक पीरियड्स आ गए और उसे पता नहीं चला, राह चलते मर्द उसे घूरने लगे, जबकि महिलाएं उसे अपना टी-शर्ट नीचे खींचकर खून के धब्बे छुपाने की सलाह देने लगीं. एक महिला ने जब उसे सैनिटरी नैपकिन दिया तब उसे समझ आया कि लोग उसे आश्चर्य भरी निगाहों से क्यों देख रहे हैं. फिर घर जाकर अनुष्का ने अपना वही पायजामा बिना किसी शर्म और झिझक के सोशल साइट पर शेयर करते हुए लिखा, “ये पोस्ट उन सभी महिलाओं के लिए जिन्होंने मेरे वुमनहुड को छुपाने के लिए मुझे मदद का ऑफर दिया. मैं शर्मिंदा नहीं हूं. मुझे हर 28 से 35 दिनों में पीरियड होता है, मुझे दर्द भी होता है, तब मैं मूडी हो जाती हूं, लेकिन मैं किचन में जाती हूं और कुछ चॉकलेट बिस्किट खाती हूं.”

अनुष्का का ये पोस्ट उन सभी लोगों के मुंह पर करारा तमाचा है, जो आज भी इस मुद्दे को टैबू बनाकर इसपर बात करने से बचते हैं और जो ऐसा करे उसे बेशर्म कहते हैं.

'यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता, लेकिन ये श्लोक तो अब सिर्फ किताबों में पढ़ने के लिए ही रह गए हैं. आज महिलाओं का हर जगह अपमान होता है. हसन जी ने भी अपनी सोच से यही साबित किया है. हम एक ऐसे शिक्षित देश में रहते हैं, जहां भले ही हम काफी मामलों में विकसित हो गए हों, लेकिन इन मामलों में आज भी बेहद पीछे हैं. ऐसी बातों पर चर्चा केवल हमारे देश में ही देखने और सुनने को मिलती है. हमें इन पुरानी मान्यताओं से आगे बढ़ना चाहिए. आज के दौर में ऐसी बातें करना मूर्खता से कम नही है. साथ ही महिलाओं को भी आगे आकर इसपर खुलकर बात करनी चाहिए. बड़े शहरों की कुछ शिक्षित महिलाओं को छोड़ दिया जाए, तो छोटे शहरों व कस्बों में ये आज भी शर्म का विषय है. पर जब बात होगी तभी इस मुद्दे से जुड़े टैबू को तोड़ा जा सकता है.

(आईचौक में इंटर्नशिप कर रहीं नेहा केशरी के विचार)

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