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Updated: 10 जून, 2020 08:26 PM
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कोरोना संकट के बीच एक और खबर जो लोगों का ध्यान आकर्षित कर रही है, वह है घाटी में कश्मीरी हिंदू पंडित अजय पंडिता भारती की हत्या. दक्षिण कश्मीर के लरकीपोड़ा इलाके स्थित लुकबावन गांव के सरपंच अजय पंडिता को उनके घर के पास ही बीते सोमवार को आतंकवादियों ने भून डाला. घाटी में लंबे समय बाद किसी कश्मीर पंडित की हत्या की खबर ने देशवासियों को 1990 के दशक की याद दिला दी. आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने इस घटना की जिम्मेदारी ली. सुरक्षाबलों की कार्रवाई में दर्जनों साथी खो चुके आतंकियों ने बौखलाहट में अजय पंडिता भारती की हत्या कर घाटी के अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक विवाद को हवा दे दी है.

घाटी में बीते कुछ दिनों से आतंकी गतिविधि तेज होने और अक्सर सुरक्षाकर्मियों की आतंकियों से मुठभेड़ की खबर के बीच अजय पंडिता भारती की हत्या के बाद बवाल मच गया. अजय पंडिता के हत्यारे को सजा दिलाने और कश्मीरी पंडियों से साथ न्याय की मांग करते हुए जम्मू-कश्मीर से लेकर देश के कई हिस्सों में कैंडल मार्च निकाले गए. सोशल मीडिया पर लोगों ने अपनी संवेदनाएं और कश्मीरी पंडियों की याद के आंसू बहाए, क्योंकि वे तो यही कर सकते हैं. घाटी में अल्पसंख्यक हिंदू की हत्या से तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों की जुबां शर्म के मारे बंद हो गई और कोई कुछ नहीं बोल रहा.

डर ऐसा कि सैकड़ों सरपंच होटलों में रह रहे

घाटी में अजय पंडिता भारती की हत्या ने सड़क से लेकर सोशल मीडिया और सियासी गलियों में बहस छेड़ दी है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी से जुड़े अजय पंडिता को लोकतंत्र का सच्चा सिपाही बताया. वहीं बीजेपी और अन्य दलों के नेताओं ने भी पंडिता की मौत पर संवेदना जताते हुए कड़ी कार्रवाई की बात दोहराई. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन इस घटना पर दुख जताते हुए कहते हैं कि अजय पंडिता का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा और दोषियों को सजा मिलेगी. साथ ही ये भी कहते हैं कि घाटी में कश्मीरी पंडित की हत्या कश्मीर के लोगों में डर और संप्रदायों के बीच नफरत पैदा करने की साजिश है. केंद्रीय मंत्री की बात सच साबित हो रही है और काफी संख्या में हिंदू घाटी से जम्मू शिफ्ट हो रहे हैं.

जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष जी. ए. मीर ने अजय पंडिता की हत्या के बाद मीडिया से बातचीत में कहा कि जब दो साल पहले पंडिता ने सरपंच चुनाव लड़ने की बात छेड़ी तो गांव के सभी लोगों ने एक साथ उनका समर्थन किया और विरोध में कोई भी खड़ा नहीं हुआ. बाद में पंडिता समेत घाटी के सभी पंचों और सरपंचों ने अपनी सुरक्षा के लिए राज्य और केंद्र स्तर पर गुहार लगाई, क्योंकि आतंकियों के निशाने पर सबसे ज्यादा ये पंच-सरपंच ही रहते थे. हिंदू सरपंच तो महज 2 थे, मुस्लिम सरपंचों में भी खौफ का इस कदर आलय है कि वे अपना घर-बार छोड़ बीते 2 साल से घाटी के होटलों में रह रहे हैं. पिछले साल नवंबर में एक सरपंच की हत्या कर दी गई थी, जिसके बाद कई सरपंचों ने इस्तीफा दे दिया था.

गृह मंत्री अमित शाह के वादे खोखले साबित

समय-समय पर घाटी के पंचों और सरपंचों ने स्थानीय प्रशासन से भी सुरक्षा की गुहार लगाई, लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया. पिछले साल सितंबर में गृह मंत्री अमित शाह ने घाटी के पंच-सरपंचों के लिए 2-2 लाख रुपये के बीमा कवर और सुरक्षा मुहैया कराने का आश्वासन दिया, लेकिन आज तक किसी भी सरपंच को सुरक्षा नहीं मिल पाई. हालांकि, जिन होटलों में ये लोग ठहरे हुए हैं, वहां पुलिस और जवानों की निगरानी है. लेकिन इन सबके बीच सवाल ये उठता है कि प्रदेश स्तर और केंद्र स्तर पर नेतागण इन पंच-सरपंचों की जान की वैल्यू क्यों नहीं कर रहे. कैसे आज अजय पंडिता की हत्या कर दी गई. कल को और लोगों के साथ ऐसा हो सकता है. केंद्र और केंद्रीय नेताओं के सारे दावे-वादे हवा हवाई क्यों हो जाते हैं. जब जन प्रतिनिधि ही सुरक्षित नहीं है तो फिर जनता का क्या होगा.

घाटी में बेगुनाहों की जानें ऐसे ही जाती रही हैं और आगे भी जाती रहेंगी और दिल्ली में नेता हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे. यह घटना घाटी में मोदी सरकार के कमजोर इंतजाम की पोल खोल रही है, जिसकी गूंज आने वाले समय में और तेज होगी. पिछले साल अक्टूबर में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 का खात्मा कर उसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया और कहा कि इससे जम्मू-कश्मीर के हालात बदल जाएंगे. लेकिन पिछले 9 महीने से कश्मीर में क्या हो रहा है और कितना विकास हुआ है, ये पूरी दुनिया देख रही है और अब कश्मीरी पंडित सरपंच अजय पंडिता की हत्या के बाद क्या होगा, ये भी देखेगी.

इस तरह बनाएंगे ‘नया कश्मीर’?

साल 2019 का अगस्त महीना. केंद्र की सत्ता में बैठे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घाटी के हालात सुधारने के साथ ही वहां जीवनशैली बेहतर करने और निवेश की रफ्तार बढ़ाने के लिए ‘नया कश्मीर’ बात पर से जोर दिया. हालांकि नया कश्मीर का नारा आजादी से पहले वर्ष 1944 में ही अस्तित्व में आ गया था. लेकिन साल 2014 में केंद्र की सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी ने कश्मीर और कश्मीरियों के लिए बहुत कुछ सोचकर रखा था. नरेंद्र मोदी सरकार ने कश्मीर घाटी से आतंक के खात्मे के साथ ही कश्मीरियों के हित और विकास के लिए प्रदेश में निवेश बढ़ाने और हरसंभव मदद के वायदे किए. इस बीच घाटी में आतंक के साये के साथ ही युवाओं की ‘आजाद कश्मीर’ की मांग को दबाने की कोशिशें भी वैचारिक और व्यावहारिक रूप से की गईं. उसके बाद घाटी में शांतिपूर्ण माहौल में पीएम नरेंद्र मोदी की रैली होती है.

पीएम मोदी की रैली के बाद दावे और वादों का बाजार गर्म होता है. दिल्ली की एलिट मीडिया में सिर्फ कश्मीर और कश्मीर ही छाता है... लेकिन! यह सब किस काम का? जब वहां की जनता ही खुद को सुरक्षित महसूस न करे, 1990 के दशक में अपने घरों से भगा दिए गए कश्मीरी पंडित रिफ्यूजी की जिंदगी छोड़ अपने वापस लौटने की न सोचे, घाटी के सैकड़ों पंच-सरपंच सुरक्षा की गुहार लगाते रहें, लेकिन राज्य और केंद्र सरकार से बस आश्वासन मिले, सुरक्षा नहीं. तो साहेब, ऐसे वादों और आश्वासनों का क्या फायदा? 1990 के दशक में कई कश्मीरी पंडितों की जान गई और अब 30 साल भी एक और कश्मीरी पंडित परिवार न्याय के लिए सड़कों पर बिलख रहा है, लेकिन इससे किसी को क्या?

‘साहेब, हमें तो मरने के लिए छोड़ दिया गया है’

अपनी मौत से कुछ दिन पहले अजय पंडिता भारती ने सही कहा था कि हम यहां किन हालातों में जीते हैं, ये किसी को नहीं पता. हमारी सुध लेने वाला कोई नहीं, हमें तो मरने के लिए छोड़ दिया गया है. अजय पंडिता के वो लफ्ज आज केंद्र की मोदी सरकार के लिए थप्पड़ से कम नहीं हैं, जो नया कश्मीर का नारा लगाए फिरती है. घाटी में समय तो बदला, लेकिन वहां के हालात नहीं बदले. आतंकी अब भी आते हैं और लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ कर चले जाते हैं. सुरक्षाकर्मियों द्वारा जवाबी कार्रवाई होती है. कुछ आतंकी मारे जाते हैं और फिर कुछ दिन बाद वही हालात. वर्षों से सुनते और देखते आ रहे हैं. अलगाववादी अपना काम कर जाते हैं और सत्तासीन लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे रह जाते हैं. आज जब अजय पंडिता की बेटी और पत्नी न्याय की मांग करते हुए केंद्र सरकार और प्रदेश प्रशासन के सामने चित्कार कर रही है तो यह सोशल मीडिया की सुर्खियां बन नेताओं के जेहन तक उतर रही है, लेकिन इससे कुछ फायदा नहीं होना.

अब घाटी में केवल एक हिंदू सरपंच

आपको जानकर हैरानी होगी कि घाटी में सिर्फ दो हिंदू सरपंच थे. एक थे 40 साल के अजय पंडिता भारती, जिनकी 2 दिन पहले हत्या कर दी गई और एक हैं विजय रैना, जो शायद रहमो-करम पर जिंदा हैं. अजय पंडिता की फैमिली भी 1990 के दशक में कश्मीर हिंसा के बाद पलायन कर गई थी, लेकिन घर की याद दोबारा उन्हें घाटी खींच लाई और अब काफी समय के बाद किसी अल्पसंख्यक पर आतंकियों की बुरी नजर पड़नी थी तो वो थे अजय पंडिता भारती. 1990 के दशक में भी कश्मीरी हिंदू सरपंचों को खोज-खोजकर अतिवादियों और आतंकवादियों द्वारा मारा जा रहा था, जिसके बाद ऐसी स्थिति बन गई कि लाखों की संख्या में कश्मीरी पंडित अपना घर-बार छोड़ अपने ही देश में विस्थापितों की जिंदगी जी रहे हैं. चाहे पूर्ववर्ती कांग्रेस हो या वर्तमान की नरेंद्र मोदी सरकार, सबने इन कश्मीरी पंडितों को वापस उनकी सरजमीं पर भेजने और कश्मीर में दोबारा बसाने से जुड़े वादे तो किए, लिए इन वादों पर अमल की कोशिशें नगण्य दिखी हैं.

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