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Updated: 04 फरवरी, 2018 10:53 AM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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इन दिनों देश में कुछ ही चीजें चर्चा में हैं और उनमें भी जो चीज लोगों के सिर पर चढ़कर बोल रही है वो है निर्देशक संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत और इस फिल्म पर राजपूत संगठन "करणी सेना" का विरोध के नाम पर उग्र प्रदर्शन. खबर है कि करणी सेना ने अपना विरोध वापस लेने का ऐलान किया है. मुद्दे से अचानक यूटर्न लेने वाली करणी सेना ने माना है कि इस फिल्म में निर्देशक ने राजपूतों की वीरता को बढ़ाकर गौरव के साथ दिखाया गया है.

ध्यान रहे कि, भंसाली ने 180 करोड़ का खर्च कर, फिल्म बनाई थी ये सोचकर कि वो इसके बल पर जहां एक तरफ दर्शकों का मनोरंजन करेंगे तो वहीं इससे मुनाफा भी कमाएंगे. मगर इसके बाद जो हुआ उससे हम सभी वाकिफ हैं. फिल्म के चलते भावना आहत होने से उग्र हुए लोगों ने सड़कें जाम की, तोड़ फोड़ की, थियेटर के बाहर फिल्म के पोस्टर्स जलाए, बच्चों से भरी स्कूल पर पथराव किया. पुलिस वालों की ड्यूटी के घंटे बढ़ाए यहां तक की फिल्म कोर्ट चली गयी. यानी वो सब कुछ हुआ जिसकी उम्मीद तब की जाती है जब लोग उग्र होते हैं और किसी चीज पर अपना विरोध व्यक्त करते हैं.

पद्मावत, संजय लीला भंसाली, करणी सेना, विरोधशायद ही कोई ऐसा दिन हो जब भंसाली की फिल्म पद्मावत चर्चा में न रहे

आज पद्मावत पर करणी सेना का समर्थन भले ही सुनने में थोड़ी अजीब लगे मगर ये सच है. फिल्म पद्मावत को लेकर श्री  राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के मुंबई इकाई के नेता योगेन्द्र सिंह कतार ने कहा है कि, संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुखदेव सिंह गोगमदी के निर्देश पर संगठन के कुछ सदस्यों ने फिल्म मुंबई में देखी और पाया कि इस फिल्म के अन्दर राजपूतों की बहादुरी और उनकी कुर्बानी को बढ़ा चढ़ा कर दिखाया गया है. फिल्म देखने के बाद सभी राजपूत अपने को गौरवान्वित महसूस करेंगे.

पद्मावत, संजय लीला भंसाली, करणी सेना, विरोधमहाराष्ट्र की करणी सेना ने एक चिट्ठी के माध्यम से मुद्दे को समर्थन दिया है

योगेन्द्र सिंह कतार न सिर्फ इससे खुश हैं बल्कि उन्होंने एक पत्र जारी करते हुए कहा है कि फिल्म में दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी और मेवाड़ की रानी पद्मावती के बीच ऐसा कोई दृश्य नहीं फिल्वाया गया है जिससे राजपूतों की भावनाओं पर असर पड़े. इसलिए करणी सेना अपना विरोध वापस लेती है. साथ ही पत्र में इस बात का भी जिक्र है कि भविष्य में करणी सेना राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात समेत बाक़ी हिस्सों में इस फिल्म को रिलीज कराने में प्रशासन का साथ देगी. करणी सेना के इस बड़े यू टर्न से दिमाग में कुछ सवालों और बातों का आना स्वाभाविक है. आइये नजर डालते हैं उन बातों पर.

पद्मावत, संजय लीला भंसाली, करणी सेना, विरोधविरोध के लिए करणी सेना का तर्क था कि इसमें खिलजी को दिखाकर भारतीय संस्कृति का अपमान किया गया है

संदेह के घेरे में करणी सेना की विश्वसनीयता

इस खबर को सुनकर जो सबसे पहला सवाल दिमाग में आता है वो ये है कि क्या करणी सेना दो धड़ों में बंट गयी है और इनकी खुद की विश्वसनीयता संदेह के घेरों में है. इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि अब तक हम फिल्म पर राजस्थान और हरियाणा की करणी सेना को ही प्रदर्शन करते देख रहे थे. आज महाराष्ट्र की इस करणी सेना का सामने आना और इस मुद्दे पर समर्थन देना ये बताने के लिए काफी है कि ये मौके की राजनीति कर रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि जब तक मुद्दा गर्म था ये उसपर हथौड़ा मारा जा रहा था अब जब फिल्म आ चुकी है, लोग देख रहे हैं तो ये लोग उसपर ठंडा पानी डाल कर क्लीन चिट लेने का प्रयास कर रहे हैं.

यही बात तो पहले भंसाली ने भी कही थी

फिल्म के विरोध पर भंसाली का तर्क था कि, फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है जो किसी की भावना आहत करे. साथ ही भंसाली ने आलोचकों से ये भी कहा था कि उनके द्वारा फिल्म में राजपूतों की वीरता को बढ़ाकर गौरव के साथ दिखाया गया है. तो सवाल ये उठता है कि क्या तब ऐसी सेनाओं और इनसे जुड़े लोगों ने कान में तेल डाल रखा था. जब भंसाली इनसे बार बार फिल्म देखने का आग्रह कर रहे थे तो बिना कुछ जाने बूझे विरोध करने वाले ये लोग फिल्म देखने के लिए सामने क्यों नहीं आए.

पद्मावत, संजय लीला भंसाली, करणी सेना, विरोधकरणी सेना का आरोप था कि फिल्म से आम हिन्दुओं की भावना आहत हुई है

क्या ये पब्लिसिटी स्टंट था

एक बेबात की बात को जिस तरफ करणी सेना ने मुद्दा बनाया. उसपर विरोध किया और अब यू टर्न ले रही है, उससे एक बात तो साफ है कि, इनकी संस्कृति बचाने की बातें एक ऐसा जुमला थीं जिसपर इन्हें भविष्य में राजनीति करनी थी और इन्होंने जो भी किया वो अख़बारों और टीवी की सुर्ख़ियों में बने रहने के लिए किया.

तो क्या "पद्मावत" को मुद्दा बनाकर सियासत के दरवाजे पर दस्तक देने वाली है करणी सेना

किसी भी आम भारतीय के दिमाग में ये सवाल तब ही जन्म ले चुका था जब इस पूरे आंदोलन की शुरुआत हुई. आज जब फिल्म को लेकर विरोध लगभग समाप्त हो चुका है और जिस तरह विरोध की आग में संगठन के द्वारा ठंडा पानी डाला जा रहा है उससे एक बात तो साफ है कि यदि हम भविष्य में संगठन के 8-10 लोगों को चुनाव लड़ते हुए और जीतते हुए देख लें तो हमें हैरत बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए. कुल मिलाकर बात का सार ये है कि फिल्म  "पद्मावत" को मुद्दा बनाकर सियासत के दरवाजे पर करणी सेना ने दस्तक दे दी है.

पद्मावत, संजय लीला भंसाली, करणी सेना, विरोधफिल्म पर मचे बवाल को देखकर कहा जा सकता है कि भविष्य में भी संगठन वैसा ही रहेगा जैसा ये आज है

भविष्य में इस संगठन का स्वरूप क्या होगा

जैसा कि हम पहले बता चुके हैं आज से एक साल पहले तक, "करणी सेना" कुछ लोगों का संगठन की. इसका फिल्म पद्मावत को मुद्दा बनाना और उस मुद्दे पर हिंसक और उग्र प्रदर्शन करना ये दर्शाता है कि भविष्य में इसका स्वरूप जटिल और आक्रामक रहेगा. जिस तरह आज प्रशासन इनके सामने बेबस नजर आया है उससे एक बात तो साफ है कि इन्हें कहीं न कहीं बल मिला है.

पद्मावत, संजय लीला भंसाली, करणी सेना, विरोधफिल्म पर औरतों और मर्दों में बराबर का रोष था

"पद्मावत" क्या इनके लिए सबक बनेगी

जिस तरह इन्होंने बिना फिल्म के बारे में कुछ जाने, बवाल काटा और फिर अब इनका फिल्म और निर्देशक को अपना समर्थन देना इस बात की ओर अपने आप इशारा कर देता है कि फिल्म "पद्मावत" हमेशा इनके लिए एक सबक रहेगी और एहसास कराएगी कि ये जब भी किसी चीज को मुद्दा बनाएं तो पहले उसके बारे में अच्छे से जान लें और पूरी बातों को ढंग से समझ लें.

बहरहाल, इस खबर से एक बात तो साफ है नेताओं के अलावा अब नागरिकों को भी आदत ही गयी है हर चीज में राजनीति देखने की. इस पूरे मुद्दे को देखकर भी यही कहा जाएगा कि राजनीति निरंतर चल रही है और भविष्य में भी चलती रहेगी. और अगर हम कुछ बदलने का इरादा ही कर चुके हैं तो हमें सबसे पहले चीजों के प्रति अपना नजरिया बदलना चाहिए और आदत डाल लेनी चाहिए ऐसे संगठनों की, इनकी बातों की, इनके उग्र प्रदर्शनों की.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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