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Updated: 05 मई, 2016 01:41 PM
स्वाति अर्जुन
स्वाति अर्जुन
  @swati.arjun
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मेरी एक कलीग थी, जो मेरी तरह पत्रकारिता के पेशे में थी. वो अपने फील्ड में बहुत ही सफल थी और लगातार आगे बढ़ रही थी. एक छोटे शहर के मध्यम वर्गीय परिवार से आयी उस लड़की का उसके करियर में आगे बढ़ना हर किसी के लिए एक अबूझे सवाल जैसा था कि आखिर ये कैसे हुआ. इस सादे चेहरे और व्यक्तिव में ऐसा क्या है कि वो इस तामझाम वाले प्रोफेशन में लगातार आगे बढ़ रही है? लेकिन मेरी वो दोस्त जानती थी कि उसका साधारण होना ही उसके व्यक्तिव की खूबी है, जिसे उसकी मेहनत और लगातार कोशिशों ने काफी आकर्षक बना दिया है और उसे अपनी उस उर्जा को हमेशा बचाकर रखना है.

एक बार वो छुट्टियां बिताकर घर से लौटी तो काफी उदास थी. उसे देखकर लगता रहा कि वो पहली वाली लड़की है ही नहीं. उसके भीतर कुछ तो चल रहा था जिससे वो काफी परेशान थी. इसका असर उसके कामकाज पर भी पड़ रहा था. काफी पूछने पर उसने बताया कि छुट्टियों में जब वो अपने घर गई तो किसी बात पर उसकी अपने भाई और भाभी से बहस हो गई. भाभी उसे पसंद नहीं करती थी और भाई भी नाराज रहता था. लेकिन उसे ये नहीं पता था कि उनके मन में उसके लिए इतनी कटुता है. उसके मुताबिक उस दिन उसके भाई ने उससे कहा कि वो एक ऐसे पेशे में है जहां खुलेआम वेश्यावृत्ति होती है. इतना ही नहीं उसकी भाभी ने उसपर काला जादू करने का भी आरोप लगाया जिसका इस्तेमाल कर वो अपने करियर में आगे बढ़ पायी.

परिवार के ही सदस्यों और अपने ही भाई-बहनों के इन आरोपों या तानों ने उसे बुरी तरह से लहूलुहान कर दिया था. वो अपना आत्मविश्वास खोती जा रही थी. उसके बाद क्या हुआ वो और कहानी है...क्योंकि वो कंगना रनौट नहीं थी.

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कंगना का महत्व, सिर्फ कंगना होने के कारण नहीं है, न ही उसके बेहतरीन अदाकारा या तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त अभिनेत्री होने में है. कंगना होने का महत्व इस बात में है कि वो इस देश की 85% उन लड़कियों में से एक एक हैं जिनका जन्म मध्य वर्गीय घरों में हुआ है, जहां बेटियां अगर बोझ नहीं मानी जाती हैं तो उनके आने पर कोई खास खुशी भी नहीं होती.

कंगना होना एक ऐसी लड़की होना है जो अपने-आप और अपनी सोच से सबसे ज्यादा प्यार करती है. उसे सबसे ज्यादा विश्वास अपनी भावनाओं, अपने अनुभवों, अपनी अंतर्दृष्टि और गट-फीलिंग पर है और उसके फैसले इन्हीं भावों के सहारे लिए जाते हैं. आज भी जब हमारे देश में बेटों को अंग्रेजी मीडियम और बेटियों को हिंदी मीडियम में पढ़ाया जाता है तो कंगना ने फिल्म अभिनेत्री बनने के बाद अपनी इस कमी को पूरा करने के लिए ट्यूशन लेकर पढ़ाई की. अपनी अंग्रेजी को बेहतर किया और अपना लहजा सुधारा.

कंगना किसी के सहारे आगे नहीं बढ़ी उसने अपना रास्ता खुद तलाश किया, गलतियां की और उन्हीं गलतियों से सीखते हुए आगे बढ़ी. अपने साथ जुड़े विवादों को न नकारा न उनसे टूटी, हां परेशान जरूर हुई...ये भी कहा कि खुद का अपमान किए जाने और गाली-गलौज की भाषा से तनिक भी विचलित नहीं है लेकिन चिंतित जरूर हैं कि 21वीं सदी के इस दौर में भी एक महिला द्वारा चुनौती दिए जाने पर पुरुष उसपर ऐसे आरोप लगाता है. वो ये भी कहती हैं कि उनकी सफलता इन आरोपों के बदले में उनकी तरफ से लिया गया एक मीठा बदला है यानि अपने विरोधियों से बदला लेने में उन्हें कोई गुरेज नहीं है. वो सीता नहीं द्रौपदी के गुणों से लैस हैं. वे कहती हैं कि वे एक स्त्री हैं और शारीरिक तौर पर मर्दों से कमजोर हैं. इसलिए वे उनसे अपने दिमाग या काम से बदला लेती हैं जहां वो उनपर भारी पड़ती हैं.

उनकी शारीरिक प्रक्रियाओं से लेकर उनकी मानसिक स्थिती पर जिस तरह से हमला किया जा रहा है उससे मुझे मेरी वो दोस्त याद आ गई जो आज कहीं गुमनामी में जी रही है. उसने इस पेशे को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया और घर में ही अपने बच्चे और परिवार की देखभाल कर रही है. मैंने उससे जब भी कहा कि कुछ लिखा करो तो उसने कहा अब हिम्मत नहीं रही, सोच नहीं पाती हूं, लिख नहीं पाती हूं..आदि- आदि.

कंगना कंगना रनौट से जुड़े इस विवाद और मेरी उस दोस्त की बदली हुई जिंदगी ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि काश उसकी जैसी सभी लड़कियां कंगना के इस संघर्ष से सीख ले और खुद को खत्म होने से रोक सके. हमारा काम, हमारा शरीर, हमारी सोच, हमारी शिक्षा, हमारा प्यार, हमारी पसंद-नापसंद को दुनिया चाहे जो नाम दें, हम अपने नाम को मिटना छोड़िये....मलीन भी न होने दें.

कंगना होने का मतलब ये होता है.

लेखक

स्वाति अर्जुन स्वाति अर्जुन @swati.arjun

लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं.

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