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Updated: 18 फरवरी, 2020 08:46 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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नागरिकता संशोधन कानून के विरोध (Anti CAA Protest) में दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया (Jamia Millia Islamia) में उपद्रव मचाने वाले कैम्पस के छात्र नहीं थे. दावा खुद दिल्ली पुलिस (Delhi Police) का है. वहीं जो वीडियो वॉर चल रही है उसमें कभी स्टूडेंट्स का पक्ष मजबूत नजर आता है. तो कभी दिल्ली पुलिस भारी पड़ती नजर आती है. दोनों के बीच मुकाबला कांटे का है. दिल्ली पुलिस और छात्रों के बीच आरोप प्रत्यारोप का आलम कुछ यूं है कि जामिया (Jamia) की तरफ से एक वीडियो (Jamia Video) आता है तो वहीं दिल्ली पुलिद अपनी तरफ से एक ही दिन में दो वीडियो जारी कर बता देती है कि उपद्रव के दौरान एक्शन के नाम पर परिसर में जो कुछ भी हुआ वो 'क्रिया पर प्रतिक्रिया' थी. अब जबकि जामिया हिंसा के तहत अपनी चार्जशीट में दिल्ली पुलिस ने छात्रों को क्लीन चिट दे दी है. माना जा रहा है कि स्टूडेंट्स वर्सेज पुलिस (Students Vs Police) वाली छात्रों की थ्योरी पर खुद पुलिस ने विराम लगाया है. अब पुलिस खुद यही चाहती है कि दोनों पक्षों के बीच चल रही जंग ख़त्म हो जाए. ध्यान रहे कि जामिया मामले में चंद ही घंटों में दोनों ही पक्षों की तरफ से कई वीडियो आने के बाद अब शांति है. साथ ही चार्जशीट (Chargesheet) में छात्रों का नाम पुलिस की तरफ से नहीं डाला गया है. पुलिस की इस पहल को छात्रों के लिए एक बड़ी राहत की तरह देखा जा रहा है.

Jamia Protest, Jamia Millia Islamia, Delhi Police, Students   जामिया मिल्लिया इस्लामिया के गेट पर सीएए के खिलाफ प्रदर्शन करते छात्र

हो सकता है इसे जामिया के छात्रों और दिल्ली पुलिस दोनों का फायदा कहा जाए. मगर तमाम सवाल हैं जो अब भी जस के तस बने हुए हैं. अब जबकि परिसर के छात्र जामिया हिंसा के मद्देनजर पुलिस की पैनी नजर से बच गए हैं तो भी सवाल वही है कि आगे क्या ? आगे वो कौन कौन सी रणनीतियां होंगी जिन्हें यदि जामिया के छात्र अपनाते हैं तो वो उन्हें फायदा देंगी. आये नजर डालते हैं उन बिन्दुओं पर जिन्हें अगर जामिया के छात्र अपनाते हैं तो इससे उनकी दशा और दिशा दोनों बदलेगी.

सिर्फ और सिर्फ स्टूडेंट प्रोटेस्ट है

दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध की लड़ाई जामिया से शुरू हुई जामिया के छात्र सड़कों पर आए और उसे स्थानीय जनता से समर्थन मिला. नतीजा ये निकला कि प्रोटेस्ट, प्रोटेस्ट न होकर उपद्रव में तब्दील हो गया. हिंसा हुई. सरकारी और निजी वाहनों को आग के हवाले किये गया. हालात संभालने आए पुलिस वालों पर पत्थर चले.

पुलिस ने भी एक्शन लिया नतीजा ये निकला कि पुलिस की आलोचना हुई. जामिया के छात्रों पर हुई पुलिसिया बर्बरता को ओखला क्षेत्र की महिलाओं ने गंभीरता से लिया और शाहीनबाग़ में प्रदशन शुरू कर दिया. इस प्रदर्शन को एक लंबा वक़्त गुजर चुका है और अगर इसपर गौर करें तो मिलता है कि आज शाहीनबाग़ नागरिकता संशोधन कानून के विरोध का चेहरा है. जबकि होना जामिया को चाहिए था.

आज वो वक़्त आ गया है जब जामिया के स्टूडेंट्स को अपनी खुद की छवि को तोड़ना पड़ेगा और साथ ही दुनिया को बताना पड़ेगा कि दिल्ली में सीएए विरोध का चेहरा सिर्फ और सिर्फ जामिया है. सवाल ये है कि ये होगा कैसे ? तो जवाब है इसके लिए जामिया को शाहीनबाग ससे प्रेरणा लेनी होगी और शांति से काम लेते हुए अपने प्रोटेस्ट से अराजक तत्वों को दूर रखना होगा.

दिखाना होगा कि वो लोग इससे दूर रहें जिनका मकसद सिर्फ सीएए प्रोटेस्ट नहीं है.

किसी भी विरोध के लिए एजेंडा जरूरी है. आने वाले वक़्त में जामिया के छात्रों को भी अपना एजेंडा नहीं भूलना चाहिए. छात्रों को सोचना होगा कि उनका मंच सिर्फ छात्रों और नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के लिए है. ध्यान रहे कि यदि कोई इनके मंच पर आता है और सीएए को दरकिनार कर इनके मंच का इस्तेमाल किसी दूसरी चीज या ये कहें कि अपना एजेंडा चलाने के लिए करता है तो इससे छात्रों का ही नुकसान है. सारी लाइमलाइट या ये कहें कि तोहमत वो व्यक्ति ले जाएगा और ये ठगे हुए से रह जाएंगे जो न तो इनके लिए अच्छा है और न ही इनके आंदोलन के लिए.

आंदोलन के लिए रोडमैप डिफाइन करना होगा

अभी तक जो प्रोटेस्ट जामिया में चल रहा है वो छितरा हुआ है. प्रोटेस्ट में तमाम लोग आ रहे हैं और अपने मन की बात कर रहे हैं. जामिया के मंच से अलग अलग मुद्दों पर इतने भाषण हो गए हैं कि जब आज हम यहां के मंच को देखते हैं तो मिलता है कि सारी चीजें एक तरफ हैं और नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कहीं दूसरी तरफ है. इसलिए अब वो समय आ चुका है जब इन्हें अपने आंदोलन का एक रोडमैप बनाना और देश को बताना होगा कि इनका एजेंडा सिर्फ और सिर्फ नागरिकता संशोधन कानून का विरोध है.

यूनिवर्सिटी प्रशासन और सरकार से संवाद को जगह देनी होगी

नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के नाम पर जामिया में जो कुछ भी हो रहा है अगर इसपर गौर करें तो मिलता है कि यहां न तो यूनिवर्सिटी प्रशासन और वाइस चांसलर की बातों को सुना जा रहा है न ही इसपर ध्यान दिया जा रहा है कि 'नागरिकता' के मद्देनजर सरकार क्या कह रही है.

यहां छात्रों के पास अपनी ढपली है और अपना राग है. इसलिए अब वो समय भी अ गया है जब इन्हें यूनिवर्सिटी प्रशासन और सरकार से संवाद को जगह देनी होगी साथ ही अगर सरकार या यूनिवर्सिटी प्रशासन कुछ कहता है तो उसे न सिर्फ सुनना बल्कि उसे अमली जामा भी पहनना होगा.

दबाव बनाना होगा कि जामिया कैम्पस में पुलिस लाठीचार्ज की निष्पक्ष जांच हो

सबसे अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात. जामिया में हुआ लाठीचार्ज वीडियो वॉर के बाद एक बार फिर सुर्ख़ियों में आया है. इसलिए आगे की रणनीति के तौर पर जामिया के छात्रों को कुछ इस तरह संगठित होना पड़ेगा जिससे पुलिस और प्रशासन पर दबाव बन सके और उस लाठीचार्ज की निष्पक्ष जांच हो सके जिसने सोशल मीडिया पर फिर एक बार चर्चा का बाजार गर्म कर दिया है.

बता दें कि वीडियो वार के तहत कभी हमें छात्रों का पक्ष मजबूत होता दिखाई दे रहा है तो कभी पुलिस के लोग मजबूत स्थिति में दिखाई दे रहे हैं. तमाम सवाल जस के तस खड़े हैं और जवाब तभी मिल पाएगा जब समय रहते इनकी निष्पक्ष जांच हो.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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