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Updated: 05 जुलाई, 2015 01:20 PM
किश्वर देसाई
किश्वर देसाई
 
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कई साल पहले मैं 'कैपिटल व्यू' नाम के एक टीवी कार्यक्रम को प्रोड्यूस करती थी. हमारे कार्यक्रम में एक खास हिस्सा होता था जहां हम दिल्ली में स्थित विभिन्न एतिहासिक स्थलों के बारे में बात करते थे. यह करीब 20 साल पहले की बात है. हम तब चिंता जताते थे इन एतिहासिक स्थलों की उपेक्षा की जा रही है. इन पर ध्यान नहीं दिया गया तो एक दिन यह सब बर्बाद हो सकते हैं. उस समय हम अपने कार्यक्रम में एंकरिंग के लिए रातिश नंदा नाम के एक युवा व्यक्ति को अपने साथ रखते थे. रातिश वैसे तो एंकरिंग के बारे में कुछ नहीं जानते थे लेकिन इतिहास, वास्तुकला और उसके रखरखाव की उन्हें अच्छी जानकारी थी.

यह एक छोटा से प्रोडक्शन हाउस था जो मेरे घर से ही संचालित होता था. यह दिलचस्प था कि रातिश को टीवी एंकरिंग की जानकारी नहीं थी और हम वास्तुकला और उसके रखरखाव की प्रक्रिया से बेखबर थे. लेकिन फिर भी हम एक बेहतर कार्यक्रम तैयार करने में सफल रहे. इसका बड़ा श्रेय रातिश की जानकारी और इस क्षेत्र में उसके जुनून को जाता है. हर हफ्ते रातिश हमारे लिए कोई रोचक जानकारी ले आते और उससे जुड़ी कहानी हमें बताते.

ऐसा कई बार हुआ जब हमारी कैमरा टीम ने उन एतिहासिक धरोहरों पर लोगों द्वारा अतिक्रमण करने की कोशिशों को पकड़ा. वहां से ईंट, पत्थर चुराते और दीवारों को गिराते तस्वीरों को कैमरे में कैद किया. यहां तक कि कई लोगों ने वहां अपना घर ही बसाने की कोशिश की. गौरतलब है कि सभी एतिहासिक इमारतों के रखरखाव की जिम्मेदारी भारतीय पूरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पास है.

हम हालांकि उम्मीद कर सकते हैं कि अब भारत और खासकर दिल्ली में इस विषय पर थोड़ी जागरूकता बढ़ी है. अगर सभी इसमें दिलचस्पी नहीं भी लेते हैं तो भी रातिश जैसे कुछ बेहतरीन लोग हैं जिन्होंने हुमायूं के मकबरे और हैदराबाद के कुछ एतिहासिक स्थलों के रखरखाव में काफी योगदान दिया है. रातिश ने आगा खान फाउंडेशन, अफगानिस्तान और कई ऐसे जगहों पर काम किया है जहां लापरवाही और संघर्ष के कारण पहले ही हम कई एतिहासिक धरोहरों को खो चुके हैं. कई जगह तो लोंगों ने इन इमारतों की बेशकीमती चीजों को चुराया भी है ताकि वे इसे बेच मोटा पैसा कमा सकें. ऐसी स्थिति में जहां हमेशा हमारी एतिहासिक पहचान खतरे में हैं, वहां रातिश जैसे लोगों की विशेष जरूरत है.

ऐसा ही एक खतरा ISIS ने पैदा कर रखा है. ईराक और सीरिया जैसे देशों में इन आतंकियों ने कई एतिहासिक स्थलों को नुकसान पहुंचाया है. हम अफगानिस्तान में पहले ही बामियान बुद्ध की प्रतिमा खो चुके है. अब इन आतंकियों ने विध्वंस की नई इबारत लिखनी शुरू की है. संस्कृति की खिलाफत करने वाले उन आतंकियों को लगता है कि पास्ट को मिटा कर वे एक नई दुनिया बसा सकते हैं.

लंदन के नेशनल म्यूजियम के डायरेक्टर नील मैक्ग्रेगर ने इस संबंध में अपनी चिंता जताई है. उन्होंने आशंका व्यक्त की है ISIS के आतंकी अब उन बड़े म्यूजियमों या जगहों पर हमला कर सकते हैं जहां एतिहासिक चीजें हैं. यूरोप के जानकारों ने भी प्राचीन असीरिया के निनेवेह, निमरुड तथा सीरिया के अन्य शहरों की एतिहासिक धरोहरों को ISIS द्वारा नुकसान पहुंचाने की आशंका जताई है.

देर से ही सही पर UNESCO अब इस समस्या को लेकर शायद गंभीर है. क्या दुनिया को अब यह भरोसा दिलाने की जरूरत नहीं है कि हमारी सभ्यता और उससे जुड़ी धरोहरों की रक्षा की जाएगी?

#ISIS, #आतंकवाद, #UNESCO, ISIS, हुमायूं का मकबरा, UNESCO

लेखक

किश्वर देसाई किश्वर देसाई

Author/Columnist, Winner of Costa First Novel Award for Witness the Night. Her 3rd novel The Sea of Innocence is out.

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