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Updated: 11 अक्टूबर, 2016 10:57 AM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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जानते हैं हर साल रावण को क्यों जलाना पड़ता है? क्योंकि हम खुद की बुराइयां न ढ़ूंढकर रावण में बुराई खोजते हैं. अगर हम अपने अंदर के रावण को खत्म कर दें तो रावण जलाने की जरूरत ही न पड़े. हम सब में बुराइयां कूट कूट कर भरी हैं, पर हम हैं कि मानते नहीं, भला हम कैसे बुरे हुए. जरा नजर डालिये इन छोटी छोटी बुराइयों पर, भले ही आप रावण नहीं लेकिन रावण से कम भी महसूस नहीं करेंगे खुद को. जानिए क्या है जिसे तुरंत रोका जाना चाहिए...

हल्ला बंद करो-

यहां किसी की बारात निकले तो हल्ला पूरे शहर में होता है. धार्मिक अनुष्ठानों में भी लोग लाउडस्पीकर का जमकर इस्तेमाल करते हैं, बिना इसकी परवाह किए कि इस कान फोड़ू शोर से लोगों को कितनी परेशानी होती है. शोर करना न केवल गैर जिम्मेदाराना काम है बल्कि गैरकानूनी भी है. 1986 के पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के सैक्शन 3 के अनुसार रात 10बजे से सुबह 6 बजे के बीच किसी को भी लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करना गैरकानूनी है. आवासीय क्षेत्रों में ध्वनि का स्तर केवल 55 डेसिबल होना चाहिए. जबकि स्कूल, अस्पताल और अदालत के आस पास का 100 मीटर का इलाका साइलेंस जोन होता है.

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ऐतिहासिक इमारतों पर लिखना बंद करो-

हमारे देश के कुछ लोग इतने रोमेंटिक हैं कि अपने प्यार का ऐलान केवल ऐतिहासिक इमारतों पर लिखकर ही करते हैं. प्राचीन संस्‍मारक तथा पुरातत्‍वीय स्‍थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के अनुसार अगर कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार से स्‍मारकों की खूबसूरती खराब करता है तो उसे तीन महीने की कैद और पांच हजार रुपए या फिर दोनों का दण्ड भोगना होगा.

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नदियों में कचरा फेंकना बंद करो-

आस्था है कि भगवान को चढ़ाए फूल और सामग्री कचरे में नहीं फेंकना चाहिए, भले ही पवित्र नदियां इस कचरे से कूड़ादान ही क्यों न बन जाएं. सिर्फ ये ही नहीं घरों का कचरा, और फैक्ट्रियों से निकलने वाला जहरीला पानी भी नदियों में जाता है, इससे नदियां कितनी प्रदूषित होती हैं सब जानते हैं. नदियों में कचरा फेंकते पाए जाने पर 5000 रुपए का जुर्माना लगाए जाने का प्रावधान है.

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लाल बत्ती रुकने के लिए है-

ट्रैफिक नियम इसलिए बनाए गए हैं कि व्यवस्था बनी रहे. पर यहां सबको जल्दी है. लाल बत्ती जम्प करना स्टंट बनता जा रहा है, नजर बचाकर आप लाल बत्ती जम्प तो कर लेते हैं लेकिन उन लोगों के लिए दुर्घटना का कारण बन जाते हैं जो सही तरह से नियमों का पालन करते हैं. ऐसा करने वालों पर फर्क ही क्‍या पड़ता है, यदि पकड़े गए तो 100 रुपए का जुर्माना ही तो होता है.

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भिखारियों को बढ़ावा देना बंद करो-

हम भारतीय बड़े ही दयालु होते हैं. और ट्रैफिक सिगनल पर भीख मांगते हुए बच्चों पर ये दया कुछ ज्यादा ही आती है. ऐसा करके हम उन्हीं बच्चों का भविष्य खराब करते हैं. भारत में ऐसे बच्चों की संख्या 800,000 से भी ज्यादा है.

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चेन मैसेज भेजना बंद करो-

मोबाइल पर आने वाले कुछ मैसेज कहते हैं कि इसे 15 लोगों को फॉर्वर्ड करो नहीं तो कुछ बुरा हो जाएगा, 20 लोगों को फॉर्वर्ड करो तो कुछ अच्छी खबर मिलेगी. धर्म के नाम पर आए ये मैसेज लोगों की आस्था का इम्तिहान लेते हैं. भला आज तक कभी किसी का बुरा हुआ है इनसे. पर सच..ये बहुत पकाते हैं.

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बैनरबाजी बंद करो-

चुनाव हो, या फिर कोई त्यौहार, शहरों की गलियां और चौराहे हमेशा राजनीतिक बैनरों से पटे रहते हैं. लाइमलाइट में आने के लिए कुछ नेता लोग शुभकामनाएं भी बैनरों के जरिए देते हैं. इससे सच में खीज होती है. हालांकि ऐसे बैनर टांगने के लिए सरकारी मंजूरी लेनी आवश्यक है.

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खाने की बर्बादी बंद करो-

जानकर हैरानी होगी कि हर साल 44,000 करोड़ की कीमत का खाना भारत में बर्बाद होता है. जिस देश के पास इतना खाना है, वहां देश के 20 करोड़ लोग हर रात भूखे सोते हैं.

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नोट पर लिखना बंद करो-

कुछ लोग नोट पर लिखकर भी अपनी भावनाओं का इजहार करते हैं. पर इन लोगों को ये नहीं पता कि ऐसा करके वो देश की मुद्रा को नुकसान पहुंचा रहे हैं. ऐसा करने वालों को इंडियन पीनल कोड सैक्शन 489E के तहत सजा का प्रावधान है.

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सैक्स पर मुंह बंद करना बंद करो-

पॉर्न देखने वाले में भारत टॉप 6 देशों में है, लेकिन सेक्स पर बात करना हमारे देश में बहुत ही गंदा माना जाता है. इसे लेकर बढ़ती विकृति ही कह नहीं की यौन अपराधों की जड़ है. सेक्स पर बात करना जरूरी है, सेक्स एजुकेशन ज़रूरी है.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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