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Updated: 08 मार्च, 2016 09:18 PM
रीता सिंह
रीता सिंह
 
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यह विडंबना है कि भारतीय समाज में जैसे-जैसे स्वतंत्रता और आधुनिकता का विस्तार हुआ, वैसे-वैसे महिलाओं के प्रति संकीर्णता का भाव बढ़ा है. प्राचीन समाज ही नहीं आधुनिक समाज की दृष्टि में भी महिलाएं मात्र औरत हैं और उन्हें थोपी व गढ़ी-बुनी गयी तथाकथित नैतिकता की परिधि से बाहर नहीं आना चाहिए. इसी मानसिकता का घातक परिणाम है कि महिलाओं के प्रति छेड़छाड़, बलात्कार, यातनाएं, अनैतिक व्यापार, दहेज मृत्यु तथा यौन उत्पीड़न जैसे अपराधों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है. यह स्थिति तब है जब देश में महिलाओं को अपराधों के विरुद्ध कानूनी संरक्षण हासिल है.

गौरतलब है कि भारतीय महिलाओं को अपराधों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने तथा उनकी आर्थिक तथा सामाजिक दशाओं में सुधार करने हेतु ढ़ेर सारे कानून बनाए गए हैं. इनमें अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956, दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961, कुटुम्ब न्यायालय अधिनियम 1984, महिलाओं का अशिष्ट-रुपण प्रतिषेध अधिनियिम 1986, गर्भाधारण पूर्व लिंग-चयन प्रतिषेध अधिनियम 1994, सती निषेध अधिनियम 1987, राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005, बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006, कार्यस्थल पर महिलाओं का लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध, प्रतितोष) अधिनियम 2013 प्रमुख हैं.

इसके अलावा राजधानी दिल्ली में 16 दिसंबर, 2012 को हुई नृशंस सामूहिक बलात्कार की घटना के विरुद्ध राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित आक्रोश की पृष्ठभूमि में ‘दंड विधि (संशोधन) 2013 पारित किया गया और यह कानून 3 अप्रैल, 2013 को देश में लागू हो गया. इस कानून में प्रावधान किया गया है कि तेजाबी हमला करने वालों को 10 वर्ष की सजा और बलात्कार के मामले में अगर पीड़ित महिला की मृत्यु हो जाती है तो बलात्कारी को न्यूनतम 20 वर्ष की सजा होगी. इसके साथ ही महिलाओं के विरुद्ध अपराध की एफआईआर दर्ज नहीं करने वाले पुलिसकर्मियों को दंडित का भी प्रावधान है. इस कानून के मुताबिक महिलाओं का पीछा करने और घूर-घूर कर देखने को भी गैर जमानती अपराध घोषित किया है. साथ ही 15 वर्ष से कम उम्र की पत्नी के साथ यौन संबंध बनाने को बलात्कार की श्रेणी में रखा गया है. लेकिन त्रासदी है कि इन कानूनों के बावजूद भी महिलाओं पर अत्याचार थमने का नाम नहीं ले रहा है. देश में घरेलू हिंसा, बलात्कार, कन्या भ्रुण हत्या, दहेज-मृत्यु, अपहरण और अगवा, लैंगिक दुव्र्यवहार और ऑनर किलिंग की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं.

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की हालिया रिपोर्ट से उद्घाटित हुआ है कि महिलाओं को सुरक्षा उपलब्ध कराने के बावजूद भी 2014 में प्रतिदिन 100 महिलाओं का बलात्कार हुआ और 364 महिलाएं यौनशोषण का शिकार हुई. रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में केंद्रशासित और राज्यों को मिलाकर कुल 36735 मामले दर्ज हुए. यह भी तथ्य उजागर हुआ है कि हर वर्ष बलात्कार के मामले में वृद्धि हुई है. यानी इसका मतलब यह हुआ कि महिला अत्याचार विरोधी कानून का खौफ नहीं है या यों कहें कि कानून का ईमानदारी से पालन नहीं हो रहा है.

आंकड़ों पर गौर करें तो बहुत कुछ स्पष्ट हो जाता है. आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2004 में बलात्कार के कुल 18233 मामले दर्ज हुए जबकि वर्ष 2009 में यह आंकड़ा बढ़कर 21397 हो गया. इसी तरह वर्ष 2012 में 24923 मामले दर्ज किए गए और 2014 में यह संख्या 36735 हो गयी. गौर करें तो 2014 का आंकड़ा वर्ष 2004 के मुकाबले दोगुनी है. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट पर गौर फरमाएं तो पिछले वर्ष के रिकार्ड के अनुसार महिलाओं के लिए मध्यप्रदेश सबसे अधिक असुरक्षित राज्य के रुप में उभरा है. पिछले वर्ष यहां सबसे अधिक 5076 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए. इसी तरह राजस्थान में 3759, उत्तरप्रदेश में 3467, महाराष्ट्र में 3438 और दिल्ली में 2096 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए. आमतौर पर राजनीतिकों द्वारा बिहार में जंगलराज की बात कही जाती है. लेकिन गौर करें तो यह राज्य महिलाओं की सुरक्षा के मामले में मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली से बेहतर है. आंकड़ों से उजागर हुआ है कि 2014 में बिहार में बलात्कार के कुल 1127 मामले दर्ज हुए. आमतौर पर बलात्कार के कारणों में अशिक्षा को भी जिम्मेदार माना जाता है. लेकिन विडंबना है कि संपूर्ण साक्षरता के लिए जाना जाने वाला राज्य केरल में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं. यहां पिछले वर्ष 1347 महिलाओं के साथ बलात्कार का मामला दर्ज किया गया.

महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से केंद्रशासित राज्य बेहतर हैं. रिपोर्ट के मुताबिक लक्षद्वीप महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से प्रथम और नगालैंड दूसरे स्थान पर है. इसी तरह दमन और दीव तथा दादर नगर हवेली भी महिलाओं के लिए सुरक्षित स्थान है. लेकिन गौर करें तो देश के अधिकांश राज्य महिलाओं की सुरक्षा के लिहाज से बेहद संवेदनशील और असुरक्षित हैं.यहां ध्यान देने वाली बात यह भी कि महिलाएं सिर्फ सड़कों व सार्वजनिक स्थानों पर ही असुरक्षित नहीं है. बल्कि वह अपने घर-परिवार और रिश्ते-नातेदारों की जद में भी असुरक्षित हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो उद्घाटित कर चुका है रिश्तेदारों द्वारा बलात्कार किए जाने की घटनाओं में अप्रत्याशित रुप से वृद्धि हुई है. दुष्कर्म की घटनाओं में तकरीबन 95 फीसदी मामलों में पीड़ित लड़की दुष्कर्मी को अच्छी तरह जानती-पहचानती है फिर भी उसके खिलाफ अपना मुंह नहीं खोलती. शायद उसे भरोसा नहीं होता है कि कानून व समाज उसे दण्डित कर पाएगा.

यूनिसेफ की हालिया रिपोर्ट ‘हिडेन इन प्लेन साइट’ से उजागर हुआ है कि भारत में 15 साल से 19 साल की उम्र वाली 34 फीसद विवाहित महिलाएं ऐसी हैं, जिन्होंने अपने पति या साथी के हाथों शारीरिक या यौन हिंसा झेली हैं. इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 15 साल से 19 साल तक की उम्र वाली 77 फीसद महिलाएं कम से कम एक बार अपने पति या साथी के द्वारा यौन संबंध बनाने या अन्य किसी यौन क्रिया में जबरदस्ती का शिकार हुई हैं. इसी तरह 15 साल से 19 साल की उम्र वाली लगभग 21 फीसद महिलाएं 15 साल की उम्र से ही हिंसा झेली हैं. 15 साल से 19 साल के उम्र समूह की 41 फीसद लड़कियों ने 15 साल की उम्र से अपनी मां या सौतेली मां के हाथों शारीरिक हिंसा झेली हैं जबकि 18 फीसद ने अपने पिता या सौतेले पिता के हाथों शारीरिक हिंसा झेली है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जिन लड़कियों की शादी नहीं हुई, उनके साथ शारीरिक हिंसा करने वालों में पारिवारिक सदस्य, मित्र, जान-पहचान के व्यक्ति और शिक्षक थे. संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष तथा वाशिंगटन स्थित संस्था ‘इंटरनेशनल सेंटर पर रिसर्च ऑन वुमेन’(आईसीआरडब्ल्यु) से उद्घाटित हुआ है कि भारत में 10 में से 6 पुरुषों ने कभी न कभी अपनी पत्नी अथवा प्रेमिका के साथ हिंसक व्यवहार किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि यह प्रवृत्ति उनलोगों में ज्यादा है जो आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक 52 फीसद महिलाओं ने स्वीकारा है कि उन्हें किसी न किसी तरह हिंसा का सामना करना पड़ा है. इसी तरह 38 फीसद महिलाओं ने घसीटे जाने, पिटाई, थप्पड़ मारे जाने तथा जलाने जैसे शारीरिक उत्पीड़नों का सामना करने की बात स्वीकारी है.

दरअसल महिलाओं के उत्पीड़नकर्ताओं के मन में सजा का भय ही नहीं है यही वजह है कि बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामलों में वृद्धि हो रही है. गौर करें तो बलात्कार के मामलों में सजा की दर बेहद कम है. आंकड़ें बताते हैं कि 2006 में यौन उत्पीड़न मामले में सजा की दर 51.8 फीसदी, 2007 में 49.9, 2008 में 50.5 और 2009 में 49.2 फीसद रही. इन आंकडों से साफ है कि बलात्कार के अधिकतर मामले में अपराधी सजा से बच जा रहे हैं. यानी महिलाओं पर होने वाले समग्र अत्याचारों में सजा केवल 30 फीसदी गुनाहगारों को ही मिल रही है. ऐसे में अगर बलात्कारियों और यौन उत्पीड़नकर्ताओं का हौसला बुलंद होता है तो यह अस्वाभाविक नहीं है.

इस समय देश में तकरीबन 95000 से अधिक बलात्कार के मुकदमें अदालतों में लंबित हैं. इनका निपटरा कब होगा भगवान जाने. भारत में हर एक घंटे में 22 बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं. ये वे आंकड़े हैं जो पुलिस द्वारा दर्ज किए जाते हैं. अधिकांश मामले में तो पुलिस रिपोर्ट दर्ज करती ही नहीं है. दूसरी ओर लोकलाज के कारण भी ऐसे मामलों को पीड़िता के परिजनों द्वारा दबा दिया जाता है. जब तक यौन उत्पीड़न के मामले में शत-प्रतिशत गुनाहगारों को सजा नहीं मिलेगा तब तक ऐसे दुष्कृत्य थमने वाले नहीं हैं.

लेखक

रीता सिंह रीता सिंह

लेखिका एक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं

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