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Updated: 03 अक्टूबर, 2022 04:59 PM
आशीष कुमार ‘अंशु’
आशीष कुमार ‘अंशु’
  @ashishkumaranshu
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चर्च में हो रहे भेदभाव के खिलाफ सिस्टर लूसी कलाप्पुरा (56) ने आमरण अनशन पर जाने का निर्णय लिया है. वे मंगलवार से अनशन पर हैं. वे बिशप फ्रेन्को मुलक्कल के यौन उत्पीड़न मामले में उसके खिलाफ हुए प्रदर्शन में शामिल रहीं थी. अब चर्च उन्हें 'अभिव्यक्ति' की सजा दे रहा है. उन्होंने मनंतवाडी (वायनाड—केरल) के कॉन्वन्ट पर गंभीर आरोप लगाए हैं. सिस्टर लूसी का कहना है कि वहां उनके साथ भेद भाव किया जा रहा है. उन्हें कॉन्वेटन के अंदर मूलभूत सुविधाओं से वंचित किया जा रहा है. वहां उन्हें लेकर ऐसा डर का माहौल बना दिया गया है कि पिछले चार सालों से कोई उनसे बात नहीं करता. उन्हें कान्वेन्ट का फ्रीज इस्तेमाल नहीं करने दिया जाता. उन्हें कॉन्वेन्ट की दूसरी सिस्टर के साथ खाने की इजाजत नहीं है. उनका कसूर सिर्फ इतना है कि उन्होंने चर्च के अंदर चल रहे अधार्मिक गतिविधियों के खिलाफ आवाज बुलंद की है. बिशप और पादरियों द्वारा यौन उत्पीड़न की कहानी सिस्टर लूसी कलाप्पुरा की आत्मकथा ‘कार्ताविन्ते नामाथिल’ (भगवान के नाम पर) में भी पढ़ी जा सकती है. जिसे पढ़कर स्पष्ट होता है कि यौन शोषण और उत्पीड़न चर्च के लिए कोई नया शब्द नहीं है. वह पहले भी लगातार चल रहा था. अब तक जारी है. सिस्टरल लूसी ने उस सच को समाज के सामने बेपर्दा कर दिया, जिसकी सजा उन्हें कॉवेन्ट के अंदर दी जा रही है.

Church, Christian, Priest, Nun, Kerala, Wayanad, Sexual Harassement, Womanबड़ा सवाल ये है कि क्या सिस्टर लूसी को इंसाफ मिलेगा या नहीं

सिस्टर लूसी मानती हैं कि पहले और अब में फर्क सिर्फ इतना आया है कि पहले कोई मामला खुल जाता था. किसी नन के शोषण/ उत्पीड़न की बात सामने आ जाती थी तो चर्च के कार्डिनेल—बिशप सिस्टर का समर्थन करते थे लेकिन अब समय बदला है. अब वे आरोपियों के बचाव में लग जाते हैं. दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि क्रिश्चियन सभा फ्रांसिस्कन क्लैरिस्ट कॉन्ग्रेगेशन (एफसीसी) ने ड्राइविंग लायसेंस बनवाने जैसे कई बचकाने आरोप लगाकर सिस्टर लूसी कलाप्पुरा को सभा से निलंबित किया. सिस्टर लूसी कहती हैं कि बिशप और पादरियों के कारनामों के बारे में सब जानते हैं, बस कोई बोलता नहीं है.

ननों का उत्पीड़न कोई नई बात नहीं

पादरियों और बिशप्स द्वारा ननों का उत्पीड़न कोई नई बात नहीं है. इसी बढ़ते उत्पीड़न का परिणाम है कि दुनिया भर में जिसस को अपना पति मानकर जीवन समर्पित करने वाली ननों की संख्या कम होती जा रही है. केरल जैसे राज्य में तो यह संख्या गिरकर 25 प्रतिशत तक रह गई है. इसी का परिणाम है कि चर्च अपने पांव पूर्वोत्तर भारत में पसार रहा है और पूर्वोत्तर राज्यों समेत पंजाब, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, झारखंड, हिमाचल, ओडिशा जैसे राज्यों के गरीब परिवार की लड़कियों को चर्च में ला रहा है. 60 के दशक में चर्च में ननों की भर्ती भारत में अचानक बहुत बढ़ गई थी, जो 1985 से फिर धीरे-धीरे कम होना शुरू हुई.

पहले गरीब कन्वर्ट हुए क्रिश्चियन परिवारों से उनकी एक बेटी को जिसस का आदेश बताकर चर्च अपने कन्वेन्ट में रख लेता था. जहां उन्हें नर्स, शिक्षिका या फिर नन बनने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था. चर्च को पता था कि शिक्षा और स्वास्थ के रास्ते ही वह भारत में घर-घर तक पहुंच सकता है. लेकिन लड़कियों को नन बनाकर चर्च की चारदीवारी के अंदर होने वाली यौन शोषण की कहानियां जब बाहर आने लगी फिर क्रिश्चियन परिवारों ने अपनी बेटी चर्च को देने से इंकार करना प्रारम्भ कर दिया.

पूरी दुनिया में घट रही है ननों की संख्या

ऐसा सिर्फ भारत में नहीं हो रहा था, पूरी दुनिया में चर्च को बेटी देने से इंकार करने वालों की संख्या बढ़ने लगी है. इसी का परिणाम था कि अमेरिका जहां साठ साल पहले दो लाख के आस-पास नन थीं, वहां अब ननों की संख्या पचास हजार से भी कम हो गई हैं. इटली में जब पूर्व नन फेडरिका और इसाबेल ने चार साल पहले एक समलैंगिक शादी की तो क्रिश्चियन समुदाय के बीच पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बनी. फेडरिका ने चर्च में ननों के बीच बनने वाले समलैंगिक संबंधों पर और चर्च परिसर में होने वाले बलात्कारों पर लिखा.

जब उसने तीन साल संबंध में रहने के बाद पूर्व नन इसाबेल से शादी करने का निर्णय लिया तो उसे कई समाचार पत्रों ने ‘बहिष्कृत नन’ लिखा. फेडरिका ने ही लिखा कि चर्च के अंदर कोई लोकतंत्र नहीं है. पादरियों का वर्चस्व है. नन वहां वासना का शिकार होने के लिए है. फेडरिका की बात को इस संदर्भ में परखा जा सकता है कि जहां एक तरफ चर्च में ननों की संख्या तेजी घट रही है, वहीं पादरियों की संख्या में वृद्धी दर्ज की गई है.

मुलक्कल के मामले में सामने आया चर्च का पुरुषवादी रवैया

पिछले दिनों बिशप फ्रैंको मुलक्कल के मामले में भी चर्च के पुरुषवादी रवैया को हमने देखा. मुलक्कल पर चल रहे नन बलात्कार के मामले में उनके ख़िलाफ़ मुख्य गवाह फ़ादर कुरियाकोस कट्टूथारा का शव संदिग्ध हालत में उनके जालंधर स्थित घर से मिला था. कुरियाकोस के छोटे भाई जोस कुरियन ने केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री पीनराई विजयन को पत्र लिखकर भाई को जान से मारने की मिल रही धमकी के संबंध में बताया था.

मुलक्कल के खिलाफ शिकायत जून 2018 में दर्ज की गई थी. शिकायत में नन ने आरोप लगाया था कि 2014 से 2016 के बीच बिशप मुलक्कल ने उसका यौन शोषण किया था. इस मामले में बिशप मुलक्कल नन को कैद में रखने, उसका बलात्कार करने, अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने और चुप रहने के लिए धमकाने के आरोप में गिरफ्तार हुआ था. मुलक्कल के खिलाफ गवाही देने वाली एक दूसरी नन ने भी उस पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. दूसरी नन के अनुसार फ्रैंको मुलक्‍कल ने 2015 से 2017 के बीच उसका यौन उत्‍पीड़न किया था.

बिशप पर आरोप लगने के बाद चर्च का पूरा पुरुष तंत्र सक्रिय हो गया. सिस्टर लिसी इस मामले की प्रमुख गवाहों में से एक थी. लिसी के अनुसार फ्रैंको मुलक्कल के खिलाफ दिए गए बयान को बदलने के लिए उस पर लगातार दबाव डाला जा रहा था. उल्लेखनीय है कि आरोपित बिशप को नोटिस जारी करने के बाद केरल सरकार ने पुलिस के एक अधिकारी का तत्काल तबादला कर दिया था. उन पांच ननों में से चार नन का ट्रांसफर भी बिशप मुलक्कल के मामले में हुआ, जो उसके खिलाफ प्रदर्शन कर रहीं थी.

चार नन को कोट्टायम जिला स्थित कॉन्वेंट छोड़ने का निर्देश मिला था. ये निर्देश रोम कैथोलिक चर्च के जालंधर डायसिस के तहत मिशनरीज ऑफ जीसस ने दिया था. इतना सब होने के बाद चर्च की बेशर्मी की इंतहां यह है कि कैथोलिक सभा’ के नए साल के कैलेंडर में मार्च पृष्ठ पर बिशप फ़्रैंको मुलक्कल की तस्वीर लगा दी गई. यह तस्वीर सीरो-मालाबार कैथोलिक चर्च के त्रिसूर आर्चडायसेस के वर्ष 2021 के नए आधिकारिक कैलेंडर में अन्य बिशप्स की तस्वीरों के साथ लगाई गई थी.

यौन शोषण पर बोलती रहीं सिस्टर जेस्मी

सिस्टर लूसी कलाप्पुरा की तरह कॉन्ग्रीनेशन ऑफ मदर ऑफ कार्मेल (सीएमसी) से निकलकर सिस्टर जेस्मी भी चुप नहीं रहीं. वह चर्च की खामियों और चर्च के परिसर के अंदर हो रहे यौन शोषण पर बोलती रहीं और लिखा भी. उनकी किताब आमीन : एक नन की आत्मकथा, एक बहुचर्चित किताब है. यह किताब अब तक मलयालम (2009), अंग्रेजी (2009), तमिल (2009) और हिन्दी (2009) में उपलब्ध है.

किताब में ननों का समलैंगिक आचरण से लेकर पादरियों द्वारा सहजता से उपलब्ध नन को विशेष सुख-सुविधा उपलब्ध कराने तक का उल्लेख है. जो नन पादरी को जितना खुश रखती, उसके लिए चर्च के अंदर उतनी अधिक सुविधाएं उपलब्ध होती. मतलब चर्च के अंदर पादरी ही प्रभू बने बैठे हैं, नन उनकी सेवा करें और सुविधाएं पाएं. समलैंगिक रिश्ते में गर्भवती होने की संभावना नहीं होती.

ऐसे संबंध चर्च के अंदर बन रहे हैं, इसकी जानकारी भी बाहर नहीं जा पाती. इसलिए इसे सहज माना जाता है. वरिष्ठ नन समलैंगिक संबंध बनाने के लिए जबर्दस्ती भी करती हैं. यह सारी बातें जेस्मी ने लिखी है और जो भी लिखा है, वह सुनी-सुनाई बात नहीं है. उनका भोगा हुआ यथार्थ है.

पूरी दुनिया से मिशनरी (चर्च) गतिविधियों में उत्पीड़न की खबरे सामने आने की वजह से अब लोगों का विश्वास ईसाई शैक्षणिक संस्थानों से भी उठने लगा है. वे विद्या मंदिर, केन्द्रीय विद्यालय, दिल्ली पब्लिक स्कूल, दयानंद एंग्लो वैदिक स्कूल, नवोदय, नेतरहाट जैसे विद्यालयों पर अधिक विश्वास करने लगे हैं. सच्चाई तो यही है कि पादरियों के यौन उत्पीड़न से जुड़ी खबरों ने चर्च के प्रति समाज का विश्वास जड़ से हिला कर रख दिया है. 

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