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Updated: 06 दिसम्बर, 2019 09:53 PM
गिरिजेश वशिष्ठ
गिरिजेश वशिष्ठ
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वाह रे देश ! हैदराबाद पुलिस के जवानों को कंधे पर बिठा रहे हो. मिठाई खिला रहे हो और फूल बरसा रहे हो. ये वो ही हैदराबाद पुलिस है ना जिसने पीड़िता के परिवार वालों को थाने से भगा दिया था. दो किलोमीटर दूर उसे ढूंढने को तैयार नहीं थी. ये वही पुलिसवाले हैं ना जिन्होंने पीड़िता के घरवालों को थाने से ये कहकर लौटा दिया था कि वो किसी के साथ भाग गई होगी.

ये वही हैदराबाद पुलिस है ना जो कोर्ट से सुपुर्दगी में मिले चार लोगों को संभालकर नहीं रख पाई. वही पुलिस है ना जिससे किसी अपराधी ने नहीं पहली बार केस में फंसे ट्रकवालों ने बड़ी आसानी से हथियार छीन लिए (खुद पुलिस की कहानी है) ये वही पुलिस है ना जिसकी ट्रेनिंग इतनी घटिया थी कि दौड़कर उन निहत्थों को नहीं पकड़ पाई. वही पुलिस है ना जो अपराधियों को आधी रात को सीन रिक्रियेट करने के लिए लेकर गई और उनके हाथ तक नहीं बांधे.

hyderabad encounterहैदराबाद पुलिसकी बताई कहानी पर क्या यकीन किया जा सकता है?

ये वही पुलिस है ना जो अपराधियों के पैर में ठीक से निशाना तक नहीं लगा सकी. लेकिन आप तो उसे सिंघम से लेकर पता नहीं क्या क्या समझ रहे हैं. आप जो भी समझकर इस पुलिस की आरती उतार रहे हैं. लेकिन वो चारों आरोपियों को वो आधी रात को लेकर गई और गोली से उड़ा दिया. पर ये तो अपराध है. अगर ये अपराध भी आपको मंजूर है तो अकेले इस केस में बेहद घटिया तरह की हरकतों से एक्सपोज हुई पुलिस पर आप कैसे भरोसा कर सकते हैं कि उसने केस में सही लोगों को ही उठाया था.

लेकिन आपका क्या, आप कुछ भी कर सकते हैं. उन्माद इसी को तो कहते हैं. आप किसी की मौत पर मिठाई बांट सकते हैं. बताइये किस धर्म के किस ग्रंथ में लिखा है कि किसी की मौत पर मिठाई बांटी जाएं. महाभारत युद्ध जीतने के बाद मिठाई बंटी थी क्या. रामायण में कम से कम बीस राक्षस मारे गए. मिठाई बंटी क्या? और तो और किसी दानव ने किसी देवता की मौत पर मिठाई बांटी क्या?

लेकिन आप समझेंगे नहीं आपको लगता है गोली से उड़ा दिया तो रेप की समस्या खत्म हो गई. आपको ऐसी गलतफहमी क्यों है कि ये गोली किसी बलात्कारी को खत्म करने के लिए चलाई गई. ऐसे कितने केस हैं जिनमें पुलिस ने बलात्कारी पर गोली चलाई. अरे गोली तो वो इसलिए चला रहे हैं कि आपका मुंह बंद हो जाए. आप देश में महिलाओं की सुरक्षा पर आवाज़ उठा रहे थे. गोली आपकी आवाज़ को खामोश करने के लिए चली है. ऐसी गोलियां चलाने से क्या रेप कम हो जाएंगे. क्या अपराधियों के हौसले कम हो जाएंगे. दिल्ली के नज़दीक नोएडा और गाजियाबाद में रोज एक एनकाउंटर होता है. कभी कभी दो दो. न तो छीना झपटी की वारदातें कम हुई हैं न लूट की. बल्कि असली अपराधी मजे में रहते हैं.

पुलिस गलत लोगों को फंसाकर गोली से उड़ा देगी तो फायदा किसका होगा. असली अपराधी का ही होगा ना. अब ये मत कहना कि पुलिस असली अपराधी को ही पकडती है. देश में एक से एक बड़े मामले हैं जिनमें बेकसूरों को पुलिस ने उड़ा दिया. छत्तीसगढ़ में पुलिस ने सामूहिक हत्याकांड को अंजाम दिया और कह दिया कि नक्सली थे. गुरुग्राम में बच्चे की स्कूल में हत्या हुई तो बस के क्लीनर को फंसा दिया. इतना टॉर्चर किया कि उसने गुनाह कबूल कर लिया. बाद में मृतक बच्चे के पिता ने न्याय की गुहार लगाई. असली अपराधी को पकड़े जाने को कहा तो सीबीआई जांच हुई. हत्यारा निकला एक बेदद पहुंच वाले बड़े आदमी का बेटा.

पुलिस की कारगुजारियों की लिस्ट गिनाने बैठेंगे तो आप के कान से धुआं निकलने लगेगा. आपको याद होगा कि कैसे यूपी पुलिस ने बिना पूछताछ किए बड़ी अंतर्राष्ट्रीय आईटी कंपनी के एक अफसर को उड़ा दिया था.

hyderabad encounterहैदराबाद पुलिस पर फूलों की बारिश की गई

बाकी की तो छोड़िए सत्ताधारी पार्टी के नंबर दो नेता और देश के गृहमंत्री खुद कई मुकदमों में छूटे हैं. इन मुकदमों में जो भी आरोप थे वो पुलिस के ही लगाए हुए थे ना. साध्वी प्रज्ञा को निर्दोष बताने वाले भी तो सोचें कि उनके खिलाफ मुकदमे पुलिस ने ही लिखाए थे. इसलिए पुलिस की हैसियत समझो. पुलिस सरकार की तरफ से रखे गए बाहुबलियों का एक इजारा है. वो सरकार के अखाड़े के पहलवान हैं. भारत के संविधान में व्यवस्था है कि ऐसे पहलवान किसी को नाजायज न सता सकें. इसीलिए न्यायपालिका बनीं है. पकड़कर पेश करना पड़ता है. पुराने जमाने में भी राजा के सामने पेश किया जाता था. पहले चेक करते थे कि बात सही है या गलत. इल्जाम सच्चा है या झूठा. तब सज़ा होती थी.

इसलिए ज़रा सोचें. जब भी कोई गलत आदमी फंसता है तो वो बेकसूर आदमी ही होता है. आप भी बेकसूर हैं. किसी अज्ञात मामले में कोई आपको अचानक कसूरवार कहना शुरू कर दे तो आपके पास कहने को कुछ होना चाहिए. आपकी सुनवाई होनी चाहिए. इसलिए सुनवाई के हक के खत्म होने पर तालियां न बजाएं. थोड़ा समझ से काम लें. अदालत में अगर वक्त भी लगता है तो होती तो फांसी ही है. पुलिस वक्त पर रिपोर्ट लिख ले. समय पर एक्टिव हो जाए. जो उसकी जिम्मेदारी है ठीक से निभाने लगे तो लड़कियों के अपहरण और हत्या की आधी से ज्यादा वारदात खत्म हो जाएं. अदालत में फैसला भी जल्दी हो क्योंकि केस पुख्ता बना होगा. समस्या ही खत्म हो जाएगी. याद रखिए हो सकता है कि पुलिस वाले अच्छे इनसान होते हों लेकिन पुलिस उतनी अच्छी नहीं होती. उसे कानून की जकड़ में रखना जरूरी है.

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लेखक

गिरिजेश वशिष्ठ गिरिजेश वशिष्ठ @girijeshv

लेखक दिल्ली आजतक से जुडे पत्रकार हैं

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