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Updated: 30 नवम्बर, 2019 05:12 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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Hyderabad में डॉक्टर प्रियंका रेड्डी का गैंगरेप और फिर हत्या (Dr. Priyanka Reddy rape and murder case) कर दी गई. 27 साल की एक पढ़ी-लिखी डॉक्टर का वो हाल किया गया जिसे देखकर हर लड़की का मन अंदर तक सिहर उठे. सड़क के किनारे पड़े और कोयला बन चुके शरीर की तस्वीर शायद ही आंखों से जल्दी ओझल हो सकेगी. इस तस्वीर ने लड़कियों के हौसलों को पस्त कर दिया है. बेटियों को अकेले शहरों में छोड़ने वाले माता-पिता के माथे पर चिंता की लकीरें और गहरा गई हैं. लोग इस खौफनाक दास्तां को दिल्ली के निर्भया कांड से जोड़कर देख रहे हैं. प्रियंका रेड्डी को हैदराबाद की निर्भया कहा जा रहा है. लेकिन मुझे ऐतराज है - क्योंकि Dr. Priyanka Reddy निर्भया नहीं थीं.

मेरी बात को समझने के लिए जरूरी है कि पहले एक बार Hyderabad के इस काले अध्याय को पढ़ा जाये जिसने पूरे देश को एक लड़की के बलात्कार और हत्या का मातम मनाने का मौका दिया है.

dr priyanka reddy murderप्रियंका रेड्डी के साथ जो कुछ हुआ उसका दोषी कौन?

वो रेप जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया

तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद के शादनगर इलाके में रहने वाली डॉक्टर प्रियंका हर रोज क्लीनिक जाती थीं जो उनके घर से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर शमशादबाग में था. वो आधा रास्ता स्कूटी से पार करतीं और टोंडूपल्ली टोल प्लाजा की पार्किंग में अपनी स्कूटी पार्क कर देती थीं - और आगे का रास्ता पार करने के लिए कैब मंगा लेती रहीं. रोजाना का यही रुटीन था. 27 नवंबर को प्रियंका काम खत्म करके क्लीनिक से निकलीं, लेकिन उनका एक अन्य डॉक्टर के साथ appointment था क्योंकि वो स्किन ट्रीटमेंट ले रही थीं. यहां उन्हें देर लग गई. घरवालों ये बात पहले से मालूम थी कि प्रियंका को आने में देर होगी.

डॉक्टर से मिलने के बाद प्रियंका टोल प्लाजा की पार्किंग में पहुंचीं, तो देखा कि स्कूटी का एक टायर पंक्चर है. प्रियंका परेशान हो गईं क्योंकि रात हो चुकी थी और टोल प्लाजा जैसी जगह पर उन्हें मदद भी नहीं मिल पा रही थी. अब उस जगह अकेली लड़की को आने जाने वाला हर शख्स घूर रहा था. प्रियंका परेशान होने लगीं, समझ में नहीं आ रहा था कि वो करें तो क्या करें? कुछ लोग पूछने भी आए, मदद की पेशकश भी की, लेकिन प्रियंका को ये समझ आ गया था कि उसे मदद के लिए पूछने वालों के इरादे नेक नहीं हैं. लड़कियों की sixth sense उन्हें अच्छे और बुरे का पूर्वाभास करा देती है. प्रियंका को अब ज्यादा डर लगने लगा था.

रात 9.22 पर प्रियंका ने अपने घर फोन किया. बहन को हालात बताए तो उसने कहा कि गाड़ी वहीं छोड़कर कैब से घर आ जाओ. लेकिन प्रियंका ने कहा कि गाड़ी यहां कैसे छोड़ूं? छोड़ी दी तो फिर कल क्लीनिक कैसे जाउंगी? इसलिए उसने बहन से कहा, मैं देखती हूं कि ये ठीक हो जाए क्योंकि कल ऑफिस जाना है. लेकिन तुम फोन पर ही रहो, क्योंकि मुझे डर लग रहा है.

प्रियंका को डर जरूर लग रहा था कि लेकिन आने वाले खतरे के बारे में जरा भी अंदाजा नहीं था. वो तो ये सोच रही थी कि स्कूटी यहां छोड़ी तो कोई उसे चोरी करके न ले जाए. अपने साथ इतना बुरा होने की कल्पना जल्दी कोई नहीं करता. तब से वो फोन पर बनी हुई थीं. इस बीच कई लोग मदद को लिए पूछने आए. एक तो गाड़ी लेकर पंक्चर ठीक करवाने भी गया, लेकिन लौटकर कहा कि दुकान बंद हो गई. एक ने कहा कि गाड़ी और आगे लेकर जानी पड़ेगी क्योंकि सभी दुकानें बंद हैं. यानी मदद के नाम पर कोई न कोई प्रियंका के साथ बना ही रहा था. लेकिन लोगों की आंखों में मदद नहीं कुछ और नजर आ रहा था. प्रियंका बस किसी ऐसे शख्स की उम्मीद कर रही थी जिसकी मदद लेने में वो खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें. 9.42 तक प्रियंका बहन से बात करती रही और कहती रही कि उसे डर लग रहा है. और अंत में बहन के कहने पर वो कैब लेने के लिए राजी हो गई थीं. लेकिन तभी उसका फोन कट जाता है. बहन ने दोबारा फोन लगाया तो फोन स्विच ऑफ हो चुका था.

घरवालों को लगा कि शायद प्रियंका को कैब मिल गई है और वो आ रही होगी, और हो सकता है कि फोन की बैटरी खत्म हो गई हो. लेकिन दो घंटे बीत जाने के बाद भी जब वो नहीं लौटी तो परिवार ने टोल प्लाजा जाने का फैसला किया. वो वहां पहुंचे तो वहां न स्कूटी थी और न प्रियंका. अब सभी को अनहोनी की आशंका होने लगी थी.

प्रियंका की बहन तुरंत सबसे नजदीकी पुलिस स्टेशन - साइबराबाद (Cyberabad) पहुंचती है. वहां से उसे ये कहकर लौटा दिया जाता है कि टोल प्लाजा वाला इलाका तो हमारे अंडर आता ही नहीं. आपको शमशाबाद पुलिस स्टेशन जाना होगा. प्रियंका की बदहवास बहन वहां से शमशाबाद पुलिस स्टेशन पहुंचती है. जहां पुलिस अपने ही अंदाज में ढुलमुल रवैया अपनाते हुए टोल प्लाजा पहुंचती है और प्रियंका को ढूंढने लगती है. कुछ नहीं मिलता और सुबह हो जाती है.

इस जगह से कुछ दूर एक अंडरपास के नीचे एक किसान को एक लाश जली हालत में मिलती है, तो वो पुलिस को खबर करता है. सुबह करीब 7 बजे पुलिस वहां पहुंचती है और लाश की शिनाख्त की कोशिश करती है - जो 100 फीसदी जल चुकी थी, सिवाए स्कार्फ के टुकड़े के. गले में पड़ा लॉकेट इशारा कर रहा था कि ये लाश एक महिला की है. वहीं प्रियंका के परिवार को बुलाया जाता है जहां इन्हीं चीजों से इस बात की पुष्टी हो जाती है कि वो जलकर कोयला हो चुकी लाश प्रियंका रेड्डी की ही थी.

इसी लाश को देखकर पुलिस की नींद असल में खुल पायी. फिर पुलिस एक्टिव होती है क्योंकि ये एक महिला डॉक्टर की हत्या का मामला होता है. छानबीन में पता चलता है कि हत्या से पहले प्रियंका के साथ गैंगरेप भी हुआ था.

खुद कातिलों से सुनिए कि उन्होंने प्रियंका के साथ क्या किया था

पुलिस ने इस मामले में 4 लोगों को गिरफ्तार किया है जिनमें एक ट्रक ड्राइवर मोहम्मद आरिफ 25 साल का है और वही मुख्य आरोपी है. उसके साथ तीन हेल्पर - सी चेन्नाकेशवुलु, जे शिवा और जे नवीन भी हैं, जिनकी उम्र करीब 20 साल है. पुलिस के सामने सबने रेप और हत्या का गुनाह कबूल किया है.

इस जुर्म की प्लानिंग तभी कर ली गई थी जब इन लोगों ने प्रियंका को वहां स्कूटी पार्क करते देखा था. जब प्रियंका वहां नहीं थीं तो नवीन ने जानबूझकर स्कूटी पंक्चर कर दी. रात 9.18 पर जब प्रियंका स्कूटी लेने आईं तो टायर की हवा पूरी तरह निकल चुकी थी. तब परेशान प्रियंका की मदद करने के बहाने से आरिफ वहां पहुंचा था. ये वही व्यक्ति था जिसने कहा था कि सारी दुकाने बंद हैं. लेकिन प्रियंका उससे मदद के लिए मना करती रही. शिवा उसके स्कूटर को ठीक करवाने के लिए लेकर गया था. जिसने आकर कहा था कि दुकान बंद हो गई.

पुलिस ने बताया कि प्रियंका आवाज न करे इसलिए रेप के दौरान हमलावरों ने उसका मुंह और नाक बंद कर दिया था. प्रियंका का दम घुट गया और उसकी मौत हो गई. फिर उन लोगों ने पेट्रोल खरीदा और प्रियंका के शरीर को जला दिया. प्रियंका जिन लोगों से डर रही थी वही लोग या तो जबरन या फिर मदद के बहाने से उसे वहां से ले गए और उसके साथ हैवानियत की.

dr priyanka reddy murderडॉक्टर रेड्डी और  दरिंदगी करने वाला मुख्य आरोपी मोहम्मद आरिफ

क्या अब भी कहेंगे कि डॉ प्रियंका निर्भया थी?

इस पूरे मामले में एक बात जो ध्यान आकर्षित करती है वो ये कि डॉक्टर प्रियंका डरी हुई थीं. वो बार-बार अपनी बहन से यही कह रही थीं कि उसे डर लग रहा है. लोग उसे घूर रहे हैं. ये अच्छे लोग नहीं हैं. इस भय में जीने वाली अकेली प्रियंका नहीं थी बल्कि हर लड़की इस भय के साथ सड़क पर उतरती है कि लोग उसे गंदी निगाह से घूर रहे हैं. निर्भय होने या निर्भया बनने का कोई अवसर ये समाज महिलाओं को नहीं देता. प्रियंका भी इसी भय के साथ दुनिया छोड़ गई.

माना कि निर्भया के साथ दरिंदगी करने वाले लोग भी ड्राइवर और हेल्पर ही थे और वो कांड भी रात में ही हुआ था. हैदराबाद का ये मामला निर्भया मामले की तरह वीभत्स तो है लेकिन निर्भया मामले से बिल्कुल अलग है. निर्भया मामले में निर्भया का गैंग रेप चलती बस में किया गया था जो पहले से planned नहीं था. हां, निर्भया के हमलावरों ने ये माना था कि वे शिकार की तलाश में ही निकले थे. हैदराबाद की घटना को अंजाम देने की प्लानिंग सुबह से ही शुरू हो गई थी. अपराधियों ने सब कुछ सोच-विचार कर ही किया था. निर्भया के आरोपियों को तो ये नहीं पता था कि उनके साथ क्या हो सकता है. लेकिन प्रियंका के दोषियों के सामने तो निर्भया कांड उदाहरण के रूप में था. उन्हें अच्छी तरह से पता था कि वो एक महिला का रेप और हत्या प्लान कर सकते हैं और किस तरह से बच सकते हैं. वे बैखौफ थे क्योंकि ये जानते थे कि फांसी की सजा सिर्फ डराने के लिए होती है, हकीकत में कहां किसी को फांसी होती है.

इन्हें लगता था कि निर्भया मामले (Nirbhaya case) के आरोपियों को फांसी की सजा भले ही सुनाई गई थी लेकिन फांसी दी नहीं गई. इन्हें लगा कि निर्भया तो बच गई थी इसलिए उसके आरोपी फंसे. और मामला वहीं खत्म करने और खुद को बचाने के लिए उन्होंने प्रियंका को मौके पर ही जला दिया. यही तो किया जाता है आजकल, रेप करके सीधे हत्या ही कर दी जाए जिससे आरोप लगाने के लिए कोई बचे ही न.

ये समझिए कि न आज कोई लड़की निर्भया है और न कोई अपराधी खौफ में. कोई भी सरकार न अपराधियों के मन में भय पैदा कर सकी और न महिलाओं के मन से अब तक भय निकाल सकी है. हमारा समाज तो इन्हीं भेड़ियों से भरा पड़ा है इसलिए पढ़ लिखकर बेटियां बची रहेंगी इसकी गारंटी भी अब नहीं रही. 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' जैसे नारे अब कोई बकवास की तरह हैं, प्रेरित करने के लिए नहीं. क्योंकि आज के माता-पिता जब भी बेटियों को पढ़ाने की बारे में सोचते हैं, ऐसी कोई न कोई खौफनाक घटना उनके हौसले तोड़ने का इंतजार करती रहती है. कैसे आज की बेटियां अपने माता-पिता को यकीन दिलाएं कि बाहर वो सुरक्षित हैं. कैसे उनसे कहें कि उन्हें पढ़ने के लिए बाहर जाने दो.

हैदराबाद के प्रियंका रेड्डी मर्डर केस (Dr. Priyanka Reddy rape and murder case) ने एक बार फिर सरकार और सुरक्षा का वादा करने वाली पुलिस को निकम्मा साबित कर दिया है. हैदराबाद की पुलिस और सरकार तो पहले ही 100 नंबर का राग अलाप कर प्रियंका रेड्डी पर ही दोष मढ़ चुकी है. इतना ही नहीं, उसी शमशाबाद इलाके में प्रियंका रेड्डी केस के अगले ही दिन एक और महिला का जला हुआ शव मिला है जो ये बताने के लिए काफी है कि हैदराबाद पुलिस कितनी सक्रिय है. 122 पेट्रोलिंग कारें भी प्रियंका और इस महिला को जलते नहीं देख सकीं, तो लानत है ऐसी पुलिस पर. 

लेकिन भारत सरकार के लिए क्या कहा जाए जिसकी आंखें अपराध के आंकड़े देखकर भी नहीं खुलतीं. जिस देश में हर साल औसतन 40 हजार रेप होते हों, हर दिन में 106 रेप और हर 10 रेप में से 4 वारदात की शिकार छोटी बच्चियां होती हों, जहां conviction rate सिर्फ 25 फीसदी हो यानी 40 हजार रेप करने वालों में से सिर्फ 10 हजार को ही सजा मिले और 30 हजार खुला घूमें वहां कोई क्यों डरे. अपराधियों इन आंकड़ों से हौसला बढ़ता है और वे अगले अपराध की प्लानिंग करते हैं - सरकार तो सिर्फ बकैती ही कर सकती है.

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सॉरी डॉक्टर प्रियंका रेड्डी, तुम एक बेहतर देश डिजर्व करती थी!

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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