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Updated: 09 जुलाई, 2018 08:48 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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जो चीजें विदेशों में बैन हो जाती हैं, उन्हें भारत जैसे विकासशील देशों में धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाता है. आखिर दो देशों में किसी चीज से लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाला असर अलग-अलग कैसे हो सकता है? ऐसा क्या है कि अगर कोई चीज यूके में लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मानी गई है, तो वह भारत के लोगों के लिए फायदेमंद कैसे हो सकती है? ब्रिटेन के अखबार संडे टाइम्स ने जो खबर छापी है, उसमें कुछ ऐसे ही होश उड़ा देने वाले दावे हैं. जिस सिरिंज को यूके की सरकारी स्वास्थ्य सेवा संस्था (एनएचएस) ने बैन कर दिया है, उसे अब भारत, नेपाल और अफ्रीका जैसे विकासशील देशों में दान किया जा चुका है. इतना ही नहीं, बहुत सी ऐसी दवाइयां भी हैं, जो विदेशों में बैन हैं, लेकिन भारत में उनका धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है.

दवा, सेहत, अस्पताल, कोर्ट, सरकारइस सिरिंज को यूके की सरकारी स्वास्थ्य सेवा संस्था (एनएचएस) ने बैन कर दिया है.

ग्रेसबी सिरिंज ड्राइवर का है ताजा मामला

अगर हम ताजा मामले की बात करें तो एनएचएस ने जिन ग्रेसबी सिरिंज ड्राइवर्स पर बैन लगाया है, वो अब भारत के सरकारी अस्पतालों तक पहुंच चुकी हैं. कई जगह तो इसका इस्तेमाल भी हो रहा है. जब द संडे टाइम्स ने ग्रेसबी सिरिंज ड्राइवर्स से होने वाले नुकसान का खुलासा किया था तो उन्हें Isle of Wight NHS की तरफ से दिसंबर 2011 में एक नोटिस जारी किया गया, जिसमें कहा गया कि ग्रेसबी एमएस 16 और एमएस 26 सिरिंज ड्राइवर्स को रिप्लेस किया जाएगा. साथ ही यह भी कहा था कि इन सिरिंज ड्राइवर्स को तीसरे देशों को दान में दे दिया जाएगा.

एक नर्स ने अपने ब्लॉग में 2014 में लिखा था कि भी ग्रेसबी सिरिंज ड्राइवर्स दिए गए थे. इसी साल एक अन्य डॉक्टर ने बताया था कि जब वह नेपाल में एक मेडिकल चैरिटी कार्यक्रम में गए थे, तो उन्हें भी ये सिरिंज ड्राइवर्स दी गई थीं. यूके रोटरी क्लब ने 2011 में एक प्रोजेक्ट ऑर्गेनाइज किया था, जिसके तहत 100 से भी अधिक सिरिंज ड्राइवर दक्षिण अफ्रीका भेजे गए थे.

बैन दवाओं का धड़ल्ले से इस्तेमाल क्यों?

अगर बात दवाइयों की करें तो उत्तरी अमेरिका समेत बहुत से यूरोपियन देशों में विक्स वेपोरब, विक्स एक्शन 500, कॉम्बीफ्लेम जैसी दवाइयां बैन हैं. लेकिन हैरानी की बात ये है कि भारत में इन दवाइयों का खूब इस्तेमाल होता है. यहां तक कि हमारे देश की व्यवस्था भी कंफ्यूज सी मालूम पड़ती है. मार्च 2016 में केंद्र सरकार ने 344 दवाइयों पर बैन लगाया. इसके बाद दवा निर्माता कंपनियां कोर्ट जा पहुंचीं तो दिल्ली हाईकोर्ट ने यह बैन दिसंबर 2016 में हटा दिया. हालांकि, फिलहाल सुप्रीम कोर्ट भी उन दवाओं पर सोच-विचार कर रही है और हो सकता है कि आने वाले समय में उस पर बैन लगा दिया जाए.

यहां सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर इन दवाओं में ऐसा क्या है कि विदेशों में लोगों के स्वास्थ्य को इससे नुकसान हो रहा है, जबकि भारत में खुद डॉक्टर भी ऐसी दवाएं लिख देते हैं? जिस विक्स वेपोरब के इस्तेमाल से यूरोपियन देश के लोगों को दमा और टीबी तक हो सकता है, उसी को इस्तेमाल कर के भारत में लोगों को राहत कैसे मिल रही है? बात भले ही किसी दवा की हो, सिरिंज ड्राइवर्स की हो या फिर किसी अन्य प्रोडक्ट की. ये बात तो सच है कि भारत में बहुत सी ऐसी चीजों का इस्तेमाल बेझिझक किया जाता है, जिन्हें विदेशों में बैन किया हुआ है. सरकार को इस ओर अधिक ध्यान देने की जरूरत है, तभी हम विकास होने का दावा कर सकते हैं.

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