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Updated: 16 नवम्बर, 2015 11:58 AM
धीरेंद्र राय
धीरेंद्र राय
  @dhirendra.rai01
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ग्रीनपीस जैसे एनजीओ को लेकर मोदी सरकार की लड़ाई नए दौर में पहुंचने जा रही है. साल की शुरुआत में सरकार ने इस एनजीओ के सभी खाते फ्रीज कर दिए थे, क्‍योंकि यह संगठन देश में चल रही अपनी गतिविधि की संतोषजनक जानकारी सरकार को नहीं दे रहा था. लेकिन अब इस संगठन के कर्ताधर्ताओं का आरोप है कि सरकार का विरोध करने के कारण उस पर यह कार्रवाई की गई. वह विरोध को अपना अधिकार बताते हुए कोर्ट जाने की तैयारी मेें है. लेकिन क्‍या इस मामले का सच सिर्फ इतना ही है?

जनवरी 2015 में ही ग्रीनपीस की कार्यकर्ता प्रिया पिल्लई लंदन जाने से पहले दिल्ली हवाई अड्डे पर रोक लिया गया था. वे वहां मध्यप्रदेश के महान में कोयला ब्लॉक के खिलाफ एक प्रेजेंटेशन देने जा रही थीं. इंटेलिजेंस एजेंसी आईबी ने ग्रीनपीस को भी उन एनजीओ में शामिल बताया, जो भारत के विकास में रोड़े अटका रहे हैं. विदेशों से करोड़ों रुपए का फंड लेकर ये संगठन भारत की खराब तस्वीर विदेशों में प्रस्तुत कर रहे हैं. आईबी ने ऐसे एनजीओ को लेकर चौंकाने वाले खुलासे किए-

1. भारत की कोयला खदानों और पावर प्रोजेक्ट का लगातार विरोध कर रही ग्रीनपीस को पिछले सात वर्षों में 45 करोड़ रुपए का फंड मिला है.

2. इस संस्था का काम अब भारत में कोयले के खिलाफ माहौल खड़ा करना रह गया है. ग्रीन पीस ने एक प्राइवेट रिसर्च इंस्टीट्यूट को पैसा दिया कि वह मध्यप्रदेश के महान को लेकर स्वास्थ्य, प्रदूषण और दूसरे मुद्दों पर ऐसी रिपोर्ट दे, जिससे वहां की कोयला खदानों पर प्रतिबंध लगवाया जा सके.

3. भारत में काम कर रहे एनजीओ को 2012-13 में 164 देशों से 11,838 करोड़ रुपए का डोनेशन मिला है.

4. कई एनजीओ को ये धन भारत में न्यूक्लियर पावर प्लांट्स, यूरेनियम खदानों, ताप-विद्युत घरों, जीएम टेक्नोलॉजी, मेगा इंडस्ट्रियल प्रोजेक्ट (पॉस्को और वेदांता), हाइडेल प्रोजेक्ट (नर्मदा सागर, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश के प्रोजेक्ट) के विरोध के लिए दिया गया है.

5. यह भी खुलासा हुआ है कि विदेशी दानदाताओं ने जानबूझकर एनजीओ के जरिए मानवाधिकार, विस्थापित लोगों के लिए सौदेबाजी कराई और लोगों के धार्मिक अधिकारों के नाम पर बवाल खड़े कराए.

6. विदेशी दानदाताओं ने षड्यंत्रपूर्वक इन एनजीओ के जरिए भारत सरकार की नीतियों के खिलाफ फील्ड रिपोर्ट तैयार करवाईं, ताकि पश्चिमी देशों की विदेश नीतियां भारत विरोधी बनाने के लिए जमीन तैयार हो सके.

7. माओवादियों से भी गठजोड़ है कुछ एनजीओ का. ये नियमानुसार जर्मनी, फ्रांस, हॉलैंड, तुर्की और इटली से फंड मंगाते हैं और उसे यहां पर आतंक फैलाने वाले माओवादियों को मुहैया करा देते हैं.

8. कुछ माओवादी संगठन फिलिपींस और इंडोनेशिया से भी जुड़े हैं, जहां न सिर्फ उनकी ट्रेनिंग होती है, बल्कि फंड भी दिया जाता है. ये संगठन फिर अपने इलाके में पड़ने वाली कोयला खदानों और वहां के पावर स्टेशनों पर हमले करवाते हैं या फिर कामकाज प्रभावित करते हैं.

9. एनजीओ के विरोध-प्रदर्शनों और कानूनी अड़ंगे अटकाने से देश की जीडीपी में 2-3 प्रतिशत का नुकसान आंका गया.

10. एनजीओ के फ्रॉड और गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त होने के 24 केस सीबीआई को और दस केस राज्य पुलिस को सौंपे गए हैं.

हालांकि, इन सब तमाम बातों के उलट ग्रीनपीस और उस जैसे एनजीओ के अपने तर्क और आरोप हैं. वे इस रिपोर्ट को सिरे से नकारते हुए कह रहे हैं कि ऐसा राजनेताओं और बिजनेसमैन के गठजोड़ के कारण हो रहा है.

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लेखक

धीरेंद्र राय धीरेंद्र राय @dhirendra.rai01

लेखक ichowk.in के संपादक हैं.

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