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Updated: 06 दिसम्बर, 2015 02:40 PM
विनीत कुमार
विनीत कुमार
  @vineet.dubey.98
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17 साल पहले 28 जुलाई, 1998 को जब सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के सभी सार्वजनिक परिवहन के वाहनों को CNG में बदलने का ऐतिहासिक फैसला दिया तो कुछ ऐसी ही अफरातफरी मची थी जैसा अब ऑड-इवेन कारों को लेकर मचा है. अरविंद केजरीवाल की सरकार ने दो दिन पहले बेशक एक बड़ी बात कह कर एक संकेत दिया था कि वो दिल्ली के प्रदूषण को लेकर ठोस कदम उठाने को तत्पर हैं. लेकिन एक दिन बाद ही केजरीवाल ने एक बेहद कमजोर बयान देकर अभी ही इस योजना का बंटाधार कर दिया है.

केजरीवाल का बयान

केजरीवाल ने कहा कि यह प्रयोग 10 या 15 दिनों का होगा और अगर बहुत ज्यादा समस्या सामने आती है तो इसे रोका जा सकता है. हम लोगों को परेशान नहीं करना चाहते. इस बात के बाद अब बाकी क्या रह जाता है. यह तय हो चला है कि सम-विषम नंबर वाले गाड़ियों के इस्तेमाल का ये प्रयोग किसी हालत में सफल नहीं होने वाला.

दिल्ली की सरकार ने इस योजना को सामने रखने से पहले इस बात पर मंथन किया ही होगा कि कैसी प्रतिक्रिया मिलेगी. उन्हें तो इसके लिए तैयार रहना चाहिए था. महज एक दिन में सुर बदलने का मतलब तो यही निकलता है कि पूरी तैयारी ही आधी-अधूरी थी. और प्रयोग भी वैसा ही होगा... आधा-अधूरा. अगर केजरीवाल ने सफल होने की उम्मीद जताई होती और इसे सफल करने के बेहतर तरीकों पर बात की होती तो प्रदूषण को लेकर सरकार की सोच में ज्यादा गंभीरता नजर आती.

CNG का प्रयोग कैसे रहा सफल

सुप्रीम कोर्ट ने जब 1998 में ऐतिहासिक फैसला दिया तब दिल्ली में करीब 100,000 पब्लिक ट्रांसपोर्ट थे. तब भी ऐसी ही हाय-तौबा मची कि क्या होगा, ये कैसे होगा. CNG तब सभी के लिए नया था. काफी टालमटोल के बाद 2000 में सरकार ने CNG को लेकर गंभीरता दिखानी शुरू की. आज दिल्ली के लगभग सभी इलाकों में CNG स्टेशन मौजूद हैं और इसे बढ़ाने की बात भी हो रही है. देश के दूसरो महानगरों में भी यह सफल हो रहा है. यह तो नहीं कह सकते कि CNG आने के बाद दिल्ली-एनसीआर का क्षेत्र प्रदूषण मुक्त हो गया. लेकिन कल्पना कीजिए अगर CNG प्रयोग में नहीं होता तो जिस प्रदूषण पर हम चिंता कर रहे हैं, दिल्ली में उसका स्तर क्या होता.

दरअसल, CNG की सफलता और असफल होने जा रहे सम-विषम कारों के प्रयोग में सबसे बड़ा अंतर ही यही है कि वो कोर्ट का ऑर्डर था और ये एक सरकार की आधी-अधूरी योजना. जल्दबाजी में कोई घोषणा करने से बेहतर था कि दिल्ली की सरकार इस पूरी योजना पर और बेहतर मंथन करती, विशेषज्ञों और जानकारों से राय लेती. क्योंकि प्रयोग कभी इस सोच से नहीं किए जाते कि 'असफल हो गया तो'...

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लेखक

विनीत कुमार विनीत कुमार @vineet.dubey.98

लेखक आईचौक.इन में सीनियर सब एडिटर हैं.

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