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Updated: 04 फरवरी, 2019 07:49 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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वर्जिनिटी टेस्ट क्यों? इस सवाल पर चर्चाएं तो बहुत हुईं लेकिन जवाब अभी तक नहीं मिल पाया है. क्योंकि सवाल जुड़ा हुआ है समाज के बनाए हुए घटिया नियमों से जिन्हें प्रथा का नाम दिया जाता है. महाराष्‍ट्र की एक खास कम्‍युनिटी में दुल्हनों का जबरन कौमार्य परीक्षण यानी वर्जिनिटी टेस्ट कराए जाने के दो मामले सामने आए हैं जिनकी आंच राष्ट्रीय महिला आयोग तक जा पहुंची है.

राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने दुल्हनों के जबरन कौमार्य परीक्षण कराये जाने की प्रथा पर गंभीर चिंता जतायी है. और NCW की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने महाराष्ट्र की महिला एवं बाल कल्याण मंत्री पंकजा गोपीनाथ मुंडे को इस मामले में जांच के लिये पत्र लिखा है. पत्र में शर्मा ने लिखा है कि- 'ये बेहद गंभीर चिंता का मामला है. यह प्रथा समाज को पीछे धकेलने वाली, भ्रामक और मूलभूत मानवाधिकरों एवं प्रतिष्ठा का हनन है. इसलिए मैं आपसे अनुरोध करती हूं कि आप इस संबंध में जांच करें और सुनिश्चित करें कि इस तरह की भेदभावपूर्ण, भ्रामक प्रथाओं के दोषियों को समुचित दंड दिया जा सके ताकि ऐसी घटनाओं को भविष्य में रोका जा सके. मैं यह भी अनुरोध करती हूं कि इस संबंध में की गयी कार्रवाई से आयोग को अवगत कराया जाये.'

Kanjarbhat verginity test.कंजरभाट समाज में होने वाली कौमार्य परीक्षा पर अब महिला आयोग की निगाह पड़ गई है.

वो प्रथा जिसको लेकर महिला आयोग इतना चिंतित दिख रहा है वो असल में कैसी है वो सभी को जान लेना चाहिए. समाज का ये रूप देखकर आप में से बहुतों को शर्मिंदगी जरूर होगी.

सुहाग-रात को होने वाली भयानक परीक्षा की फीस 5000 रु.

महाराष्‍ट्र में एक समाज है कंजारभाट. जो नई नवेली दुल्हनों की कौमार्य परीक्षा की वजह से खासा चर्चित रहता है. महाराष्ट्र के बाहर इस समाज को सांसी समाज और गुजरात में छारा समाज कहा जाता है. जहां प्रथा के नाम पर वर्जिनिटी टेस्ट किया जाता है. राजस्थान में भी ये परीक्षण होता है, जिसे कुकरी प्रथा कहा जाता है.

समाज में किसकी पत्नी पवित्र है और किसकी नहीं, यह जांचने का अधिकार पंचायत को है. और अगर वो ‘वर्जिन’ नहीं है, तो उसकी जिंदगी तय करने का ठेका भी पंचायत का ही है. कंजारभाट समाज में पारंपरिक तौर पर शादी होने के बाद जात पंचायत बैठती है. जो वर और वधु पक्ष से 5000-5000 रुपए लेती है, और दोनों को कौमार्य परीक्षा के लिए तैयार करती है. ये पैसे परीक्षा शुल्क के तौर पर लिए जाते हैं. इसके बाद दूल्हा और दुल्हन को सुहागरात के लिए एक कमरे में भेजा जाता है. कमरे को खासतौर पर इसी प्रथा के लिए तैयार किया जाता है. दूल्हे को साथ में सफेद चादर भी दी जाती है. सफेद चादर यानी जिसपर शारीरिक संबंधों बनाने के बाद खून के धब्बे दिखाई देने चाहिए. इस परीक्षा के लिए साथ में कुछ रिश्तेदार भी जाते हैं जो कमरे के बाहर ही खड़े रहते हैं. इस पूरे टेस्ट के लिए आधे घंटे का समय दिया जाता है.

Verginity test white bedsheetसफेद चादर पर खून के धब्बे महिला का चरित्र बताते हैं.

परीक्षा के दौरान लोग बार-बार दरवाजा खटखटाकर ये पूछते रहते हैं कि कोई मदद तो नहीं चाहिए. मदद यानी लड़का-लड़की अगर यौन संबंध बनाने में परेशानी महसूस करते हैं तो उन्हें मदद के लिए दवाएं दी जाती हैं और पॉर्न फिल्म तक दिखाई जाती है. इतना ही नहीं बाहर खड़े 'अनुभवी' लोग तो अंदर आकर डेमो तक करने के लिए तैयार रहते हैं, कि ऐसे नहीं ऐसे करो.

कमरे को तैयार करते वक्त इस बात का ख्याल रखा जाता है कि कोई नुकीला सामान अंदर न हो. यहां तक कि दुल्हन के बालों में लगी पिन तक निकाल दी जाती है. दुल्हन की चूड़ियों को रुमाल से बांध दिया जाता है जिससे वो टूटे न. क्योंकि कांच की चीजें या नोकीली वस्तुओं से खून निकलने का डर रहता है. और सफेद चादर पर किसी और तरह के खून की कोई गुंजाइश न हो.

सुबह जात पंचायत फिर बैठती है. दूल्हा-दुल्हन समेत परिवारवाले सभी वहां मौजूद होते हैं और सभी के सामने पंचायत दूल्हे से पूछती है कि तेरा 'माल' कैसा था? माल यानी वो लड़की जिससे शादी हुई है. सफेद चादर पर पड़े खून के धब्बों से उस महिला के चरित्र की परीक्षा की जाती है. खून के धब्बे ही गवाही देते हैं कि लड़की कैसी है. धब्बे हैं तो लड़का जवाब देता है 'मेरा माल खरा-खरा-खरा' और धब्बे नहीं हैं तो 'मेरा माल खोटा-खोटा-खोटा'.

और 'माल खोटा' होने पर दुल्‍हन की शामत...

सफेद चादर पर अगर खून का धब्बा न हो तो लड़की को चरित्रहीन समझ लिया जाता है. और तब उसी जगह लड़की के घरवाले लड़की को मारते-पीटते हैं. और उससे पूछते हैं कि उसने किसके साथ ये सब किया था. समाज के ही सामने लड़की और लड़कीवालों के परिवार की बेइज्जती हो जाती है. जिस लड़की के हाथों की मेहंदी भी नहीं छूटी हो उसे सिर्फ इसलिए मारा-पीटा जाता है तो सोचिए ससुराल वाले उसका क्या हाल करते होंगे. चूंकि शादी तो हो गई अब लड़की जैसी भी है ससुराल में रहेगी ही. लेकिन इस परीक्षा की वजह से लड़की के घरवालों पर और भी दबाव पड़ता है. पंचायत और लड़के वालों को और पैसे भी देने पड़ते हैं. कई मामलों में तो उसी वक्त लड़की से तलाक ले लिया जाता है.  

जो ये प्रथा नहीं निभाते और इसके खिलाफ हैं

समाज में पढ़े-लिखे बहुत से लोग हैं जो इस कुरीति पर विश्वास नहीं करते. उन्होंने अपनी शादी पर इस परीक्षा को देने से मना किया. ऐसा करने वाले लोगों की शादी को ये समाज अमान्य घोषित कर देता है. और उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है. इस कुप्रथा के खिलाफ आवाज उठाने वाले युवाओं को सामाज से अलग कर दिया गया है. उन्हें मारा-पीटा जाता है, डराया धमकाया जाता है कि वो इस प्रथा के खिलाफ प्रचार प्रसार न करें.

दुनिया की सारी परीक्षाओं से बड़ी है कौमार्य परीक्षा

समाज में लड़कियों को घर की इज्जत कहा जाता है. लड़की बाप की नाक होती है. और ये नाक न कटे और इज्जत बनी रहे इसके लिए समाज के सभी लोग प्रयासरत रहते हैं. लड़की बिगड़ न जाए इसके लिए उसे सिर्फ स्कूल भेजा जाता है, न वो कॉलेज जा सकती है और न ही नौकरी कर सकती है. क्योंकि वहां उसके कथित रूप से बिगड़ने के चांस होते हैं. और उसकी असली परीक्षा तो ये वर्जिनिटी टेस्ट है. इस परीक्षा को पास कर चुकीं महिलाएं इस प्रथा को बहुत जरूरी मानती हैं. उनके मुताबिक तो इसे पास करने में उनके बाप-दादा की शान बढ़ती है, ये परीक्षा देना गर्व की बात है, ये लड़कियों का अभिमान है. जबकि लड़कियों के लिए पूरे समाज में इस तरह अपमान के घूंट पीने से ज्यादा शर्मिंदगी और कोई नहीं.

इस समाज की महापंचायत में एक किताब यानी प्रति संविधान प्रकाशित किया गया था जिसमें इस समाज के कायदे कानून प्रकाशित किए गए थे. किताब में पाप, व्याभिचार, शादी, तलाक, अग्निपरीक्षा और कौमार्य परीक्षा का भी जिक्र किया गया है. जिससे साफ पता चलता है कि समाज इन नियमों के लिए कितना गंभीर है.

कौमार्य परीक्षा सिर्फ लड़कियों के लिए क्यों?

अग्निपरीक्षा सिर्फ सीता ने दी थी इसलिए हमारा समाज भी महिलाओं से ही उम्मीद करता है कि पवित्रता की परीक्षा वो ही दें. इसलिए लड़कों के लिए इस समाज ने कोई नियम कायदे नहीं बनाए कि वो ये साबित कर पाएं कि वो भी वर्जिन हैं. स्वाभाविक है उन्हें साबित करने की जरूरत ही नहीं है. इस युग में भी हमारा समाज पुराने रीति-रिवाजों को परंपरा के नाम पर ढो रहा है. पढ़े-लिखे लोग तक इस बात को मानने से बचते हैं कि महिलाओं की हाइमन झिल्ली शारीरिक संबंधों के अलावा और भी कई वजहों से भंग हो जाती है. जिसमें लड़कियों का साइकल चलाना, व्यायाम करना, डांस करना, खेल कूद में हिस्सा लेना तक शामिल है. ये लोग विज्ञान को नहीं मानते, वही मानते हैं जो समाज कहता है. हैरानी की बात है कि लोगों ने अपनी बेहद निजी जिंदगी में भी इस समाज को जगह दे रखी है.

उम्मीद की जा रही है कि अब महिला आयोग की कार्रवाई के बाद समाज की ऐसी पंचायतों के हौसले पस्त होंगे और महाराष्ट्र से आने वाली इन खबरों पर विराम लगेगा. लेकिन समाज क्या वास्तव में वर्जिनिटी को लेकर अपनी सोच बदल पाएगा?

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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