New

होम -> समाज

 |  2-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 15 अक्टूबर, 2015 04:20 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
  • Total Shares

केन्द्र में सरकार चाहे यूपीए की रही हो या फिर एनडीए की हो, दोनों बड़ी बेसब्री से चाह रही हैं कि देश में आधार कार्ड के इस्तेमाल को जल्द से जल्द कानूनी अमली जामा पहना दिया जाए. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने एक दशक से चले आ रहे इस प्रयास पर रोड़ा डाल रखा है. जहां अगस्त 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने देश में केरोसीन और एलपीजी सब्सिडी दिए जाने के लिए आधार कार्ड के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी वहीं, बीते हफ्ते अदालत ने सरकार की दलीलों को दरकिनार करते हुए इस रोक को फिलहाल जारी रखने का फैसला किया है.

दरअसल, आधार कार्ड के इस्तेमाल में निहित खतरों पर सुप्रीर्म कोर्ट में चल रहा मामला आम आदमी की आंख खोल रहा है. केन्द्र सरकार ने अपनी दलील में कहा है कि दुनियाभर में मोबाइल और टेक्नोलॉजी कंपनियां अपने उपभोक्ताओं से जुड़ी जानकारियां जुटा रही हैं. अपने हलफनामे में सरकार ने बताया कि देश में इस्तेमाल हो रहे एप्पल जैसे तमाम मोबाइल फोन और फेसबुक और व्हाट्स एप्प जैसे सोशल मीडिया एप्पह आम आदमी से जुड़ी सूचनाओं को देश के बाहर स्थित डेटा सर्वर पर एकत्रित कर रही हैं. सरकार की दलील है कि आधार के जरिए इकट्ठा की जा रही सूचनाएं, जिसमें उसका बायोमेट्रिक डीटेल शामिल है, इन विदेशी कंपनियों के डेटा बैंक से कहीं ज्यादा सुरक्षित है.

गौरतलब है कि ब्लैकबेरी, एप्पल फोन और गूगल अकाउन्ट के लिए स्वेक्षा से साझा हुई आपकी सूचनाएं इन कंपनियों के डेटा बैंक में दर्ज रहती हैं. बीते दिनों ऐसी खबरें छपी हैं कि किस तरह अमेरिकी सरकार इन कंपनियों के साथ सांठ-गांठ कर अपनी सामरिक नीतियों के लिए इन सूचनाओं को हासिल कर लेता है. इसके अलावा, दुनियाभर में अदालती कारवाई के लिए भी सरकारें इन निजी कंपनियों के पास सुरक्षित आपकी जानकारियों को आसानी से हासिल कर लेती हैं. इसके साथ ही देश में स्थित मोबाइल कंपनियां तकनीकि रूप से सक्षम है कि वह उपभोक्ताओं की बातचीत को सुन सके, उन्हें रिकॉर्ड कर सके और जरूरत पड़ने पर उसका इस्तेमाल कर सकें.

लिहाजा, टेक्नोलॉजी के इस विस्तार के साथ-साथ एक बात साफ है कि उपभोक्ताओं की गोपनीय सूचनाएं सरकार और निजी कंपनियां आसानी से इस्तेमाल करती हैं और इसमें उपभोक्ताओं की गोपनीयता की कोई गारंटी नहीं रहती है. नतीजतन, देश में नागरिकों की आपसी बातचीत और आपसी व्यवसाय की गोपनीयता अब मौलिक अधिकार की परिधि में नहीं आती और सरकार और कंपनियां अपने प्रभाव क्षेत्र के विस्तार के लिए बराबर इसका इस्तेमाल करती हैं.

अब केन्द्र सरकार की एक दशक की मेहनत के बाद आधार कार्ड पर जिस तरह गोपनीयता के संदर्भ में सवाल उठ रहा है उससे यह साफ है कि ये कंपनियां और सरकार सब कुछ जानती हैं... लिहाजा अब बचा यह है कि वह किसी साइंस फिक्शन फिल्म की तरह आम आदमी के मस्तिष्क में एक सिम कार्ड लगा दे जिससे उसकी सोच तक पर नियंत्रण किया जा सके.

#आधार कार्ड, #एलपीजी, #सुरक्षा, आधार कार्ड, एलपीजी, सुरक्षा

लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय