New

होम -> समाज

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 01 जुलाई, 2015 01:28 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

'बेटे के लिए दूल्हा'. जब ये विज्ञापन छपा तो मुंबई के अय्यर परिवार को तमाम प्रस्तावों के साथ गालियां भी खूब मिलीं. आखिरकार अय्यर परिवार के बेटे को दूल्हा भी मिल ही गया.

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते समलैंगिकों के विवाह को कानूनी तौर पर वैध करार दिया था. भारत में भी इसकी खासी सराहना हुई. आयरलैंड तो समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने वाला पहला मुल्क बन ही चुका है.

हवा का ये झोंका अब भारत में भी वैचारिक बदलाव ला रहा है. मुमकिन है, जल्द ही यहां भी दोस्ताना रिश्तों को विवाह के तौर पर दर्ज कराने की मंजूरी मिल जाए. केंद्रीय कानून मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने धारा 377 को खत्म करने का संकेत दिया है.

क्या है धारा 377?

मौजूदा कानून के मुताबिक भारत में समलैंगिकता अपराध है. धारा 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध) के तहत किसी भी व्यक्ति (स्त्री या पुरुष) के साथ अप्राकृतिक यौन संबध बनाने पर या किसी जानवर के साथ यौन संबंध बनाने पर उम्र कैद या 10 साल की सजा व जुर्माने का प्रावधान है.

दिल्ली हाईकोर्ट ने 2 जुलाई, 2009 को आईपीसी की धारा 377 में समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से मुक्त करते हुए व्यवस्था दी थी कि एकांत में दो व्यस्कों के बीच सहमति से स्थापित यौन संबंध अपराध नहीं होगा. साल 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को बरकरार रखने का फैसला दिया था, जिसके बाद से भारत में समलैंगिक संबंध गैरकानूनी है.

कानून मंत्री का संकेत

कानून मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा का कहना है कि आईपीसी की धारा 377 को खत्म कर समलैंगिकों के आपस में विवाह करने को कानूनी मान्यता देने पर भी विचार किया जा सकता है.

डीएमके सांसद तिरुचि शिवा ने राज्य सभा में ट्रांसजेंडर्स के अधिकारों पर प्राइवेट मेंबर्स बिल पेश किया था. इस बिल का जोरदार ढंग से स्वागत हुआ और बीजेपी सांसद शोभा करंदलाजे, आरएसपी सांसद एनके प्रेमचंद्रन और बीजेडी सांसद विजयंत जे पंडा भी आगे बढ़ कर इसका सपोर्ट कर रहे हैं.

अप्रैल में राज्य सभा में ये बिल पास हो चुका है. गौड़ा का मानना है कि अगर वह लोक सभा में भी बिल पास हो जाए तो कानून बन जाएगा और धारा 377 बेकार हो जाएगी. हालांकि, ये बिल गे कम्युनिटी के बजाए ट्रांसजेंडर्स पर ज्यादा फोकस है. गौड़ा मानते हैं कि इस बिल को गे कम्युनिटी के लिए एक मॉडल बनाया जा सकता है.

बदलाव की बयार

जिस तरह अमेरिका में हिलेरी क्लिंटन के रुख में बदलाव आया है, उसी तरह भारत में बीजेपी के विचार में भी तब्दीली नजर आ रही है. एक दौर में गे मैरेज की मुखर विरोधी रहीं हिलेरी की सोच में भी बदलते वक्त के साथ आम अमेरिकियों की तरह स्वाभाविक तब्दीली आई. इंडियाना ने जब धार्मिक स्वतंत्रता कानून बनाया तो हिलेरी ने ट्वीट कर अपना विरोध जताया था जो उनकी बदली सोच का सबूत है.

दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से अलग करने पर बीजेपी ने तब इसे गैरकानूनी, अनैतिक और भारतीय संस्कृति के लोकाचार के खिलाफ करार दिया था. बाद में जब सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया तो बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने अपना समर्थन जताया था. तब लोक सभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा था कि सरकार के प्रस्ताव लेकर आने पर बीजेपी उस पर अपना रुख रखेगी. उस वक्त केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने कानून को बदलने की बात कही थी, जबकि पी चिदंबरम ने फैसले को गलत बताया था.

क्या ये वोट बैंक का खेल है? अमेरिका के हिसाब से तो हां कहा जा सकता है. भारत के हिसाब से ऐसा कहना मुश्किल होगा. यहां अभी एलजीबीटी कम्युनिटी की आबादी अमेरिका की तरह नहीं, बल्कि कुछ मेट्रो शहरों तक ही सीमित है. हाल ही में जब पहला लेस्बियन ऐड आया तो सोशल से लेकर मेनस्ट्रीम मीडिया तक खूब चर्चा हुई. कुछ भी हो इतना तो कह ही सकते हैं बदलाव की बयार बह चली है.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय