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Updated: 06 मई, 2020 07:29 PM
अनु रॉय
अनु रॉय
  @anu.roy.31
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जब देश के बच्चे एक-दूसरे को अब्जेक्टिफ़ाई करने लगे तब समझना चाहिए सामाजिक पतन शुरू हो चुका है. कल #BoisLockerRoom ट्रेंड कर रहा था आज #GirlslockerRoom ट्रेंड कर रहा. आख़िर देश किस दिशा में जा रहा. हम कब सोचेंगे इसके बारे में. मुझे नहीं पता कि Girls Locker Room नाम वाली चैट विंडो किसी लड़के ने बनायी है या लड़कियों ने. आज मुझे इस बात से कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ रहा. मैं ये सोच रहीं हूं कि दिल्ली के पॉश एरिया में रहने वाले ये बच्चे, जो देश से सबसे बढ़िया स्कूल में जा रहें हैं आख़िर वो वहां जाकर सीख क्या रहें हैं? इन बच्चों के अमीर मां-बाप को पता भी है कि उनका नौनिहाल आख़िर कर क्या रहा है? क्या इन मां-बाप की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ पैसे ख़र्च करके और महंगे स्कूल में डाल देने से पूरी हो जाती है.

सोशल मीडिया पर अलग ही गेम शुरू हो चुका है. Boys locker Room के बाद अब Girl Locker Room के ट्रेंड होते ही पुरुष समुदाय, लड़कों की ग़लती भूल अब लड़कियों को कोसने पर तुल गया है. जबकि समझने वाली बात ये है कि दो ग़लत मिल कर किसी भी चीज़ को सही नहीं कर सकते.

जैसे Boys locker room का होना ग़लत है. वैसे ही girl locker room का होना भी उतना ही ग़लत है. अगर वो लड़के ग़लत हैं और उन्हें गिरफ़्तार किया गया है तो ये लड़कियां भी उतनी ही ग़लत है, अगर वो हिस्सा हैं ऐसे किसी भी चैट रूम का . न तो किसी लड़की को हक़ है किसी लड़के की फ़ोटो को morphed करके वायरल करने का और न ही किसी लड़के को.

Girls Locker Room, Bois Locker Room, Instagram, Chatsलड़कों के बाद लड़कियों की ये चैट किसी भी इंसान को शर्म से पानी पानी कर देगी

फ़ेमिनिज़म समानता की बात करता है. फ़ेमिनिस्ट वहीं होते हैं जो दोनों जेंडर को एक नज़र से देखें. फिर यहां मैं एक और बात जोड़ना चाहूंगी कि फ़ेमिनिस्ट बनने से पहले फ़ेमनिजम को समझिए. वेब-सीरिज़ में जो दिखाते हैं फ़ेमिनिज़म के नाम पर वो आपकी व्यक्तिगत आज़ादी है न की फ़ेमिनिज़म.

और एक बात यहां और समझने की दरकार है. वो ये कि आपकी आज़ादी वहीं ख़त्म हो जाती है जहां से किसी दूसरे की आज़ादी शुरू होती है. आप फ़्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन के नाम पर किसी के ऊपर कीचर नहीं उछाल सकते. नेट पर किसी की फ़ोटो वायरल नहीं कर सकते.

आज हम जिस माहौल में जी रहें वहां सबसे ज़्यादा ज़रूरी है अपने-अपने घरों में अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देना. न कि पुरुष, स्त्री पर कीचड़ उछाले और स्त्री पुरुष को फ़ेमनिजम के नाम पर नीचा दिखाए. सोशल मीडिया पर भी बजाय एक-दूसरे को ग़लत दिखाने या साबित करने के सच्चाई के लिए एक-दूसरे का साथ दें.

ग़लत कोई भी हो सकता है. वो बच्चें हैं उनको सही मार्गदर्शन की ज़रूरत है. अगर घर में उनको सही माहौल मिलता, अगर वो देखते अपने-अपने घरों में मां -बाप को एक दूसरे की इज़्ज़त करते तो आज वो किसी भी ऐसे चैट रूम का हिस्सा नहीं होते.

अभी भी वक़्त है सुधर जाइए. बच्चों के हाथ में फ़ोन थमाने के बजाय कोई अच्छी किताब पकड़ाइए. आज आपका बेटा किसी की बेटी के साथ ग़लत कर रहा कल किसी की बेटी आपके बेटे के सात ग़लत करेगी. क्या सच में इतना मुश्किल है एक सभ्य समाज का निर्माण करना?

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लेखक

अनु रॉय अनु रॉय @anu.roy.31

लेखक स्वतंत्र टिप्‍पणीकार हैं, और महिला-बाल अधिकारों के लिए काम करती हैं.

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