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Updated: 13 फरवरी, 2021 04:35 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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Femina Miss India 2020 Runner-Up: दिन में पढ़ाई, शाम को बर्तन धुलाई और रात में कॉल सेंटर की जॉब करना, एक ऑटो ड्राइवर की बेटी का 'मिस इंडिया' तक का सफर जितना रोचक, उतना ही प्रेरणादायी है. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के रहने वाले एक ऑटो ड्राइवर की बेटी मान्या सिंह (Manya Singh) ने फर्स्ट रनरअप मिस इंडिया बनकर इतिहास रच दिया है. वह बीते दिसंबर में ही मिस उत्तर प्रदेश चुनी गई थीं. गांव की इस बेटी का 'मिस इंडिया' के मंच तक जाना स्थानीय प्रतिभाओं के लिए संभावनाओं के कई द्वार खोलता है. यह साबित करता है कि प्रतिभा कभी मौके की मोहताज नहीं होती है. यदि प्रतिभा के साथ आपके अंदर आत्मबल है तो संसाधनों की कमी के बावजूद कामयाबी के शिखर तक पहुंच सकते हैं. जैसा कि मान्या सिंह के संघर्ष की दास्तान खुद उसकी कामयाबी की कहानी को बयां करती है.

1-650_021221115536.jpgउत्तर प्रदेश के गोरखपुर की रहने वाली हैं मान्या सिंह.

Miss India फर्स्ट रनर अप का खिताब अपने नाम करने के बाद मान्या सिंह ने सोशल मीडिया पर लिखा, 'मैंने बिना खाए और सोए कई रातें बिताई हैं. मैं कई दोपहर मीलों पैदल चली, ताकि ऑटो का किराया बचा सकूं. मेरा खून, पसीना और आंसू मेरी आत्मा का निवाला बन गए. मैंने सपने देखने की हिम्मत जुटाई. एक ऑटो ड्राइवर की बेटी होने के नाते, मुझे कभी स्कूल जाने का अवसर नहीं मिला, क्योंकि मैंने बचपन में ही काम करना शुरू कर दिया था. मेरे पास जितने भी कपड़े थे, वो खुद से सिले हुए थे. मैं उस वक्त पढ़ने के लिए तरसती थी, लेकिन किस्मत मेरे खिलाफ थी. मेरी मां ने अपने जेवर गिरवी रखे, ताकी वो डिग्री के लिए परीक्षा की फीस भर सकें. मेरी मां ने मेरे लिए बहुत कुछ झेला है. घर के हालात और अपने सपनों को पूरा करने के लिए मैं 14 साल की उम्र में घर से भाग गई.'

मान्या आगे लिखती हैं, 'मैं किसी तरह दिन में अपनी पढ़ाई पूरी करने में कामयाब रही. शाम को बर्तन साफ किया करती थी और रात में कॉल सेंटर में काम किया. मैंने देर शाम तक घंटों पैदल चली हूं, ताकि ऑटो रिक्शा का किराया बचा सकूं. मैं आज यहां वीएलसीसी फेमिना मिस इंडिया 2020 (VLCC Femina Miss India 2020) के मंच पर अपने माता-पिता और भाई की वजह से पहुंची हूं. उनके त्याग और अपनी मेहनत के बदौलत खड़ी हुई हूं. मैं दुनिया को बताना चाहती हूं कि यदि आप अपने सपनों के लिए प्रतिबद्ध हैं तो सबकुछ संभव है.' मान्या का परिवार गोरखपुर के बैतालपुर ब्लॉक के विक्रम-विशुनपुर गांव का रहने वाला है. एक साधारण से परिवार में जन्मी मान्या देसही देवरिया के लोहिया इंटर कॉलेज में 12वीं की छात्रा हैं. पिता ओमप्रकाश सिंह कुशीनगर जिले के हाटा में मकान बनवाकर रहते हैं. वहां ऑटो चलाते हैं.

'मिस इंडिया' के मंच तक मान्या का पहुंचना, गांव की प्रतिभाओं के लिए संभावनाओं के कई द्वार खोलता है...

प्रतिभा कभी मौके की मोहताज नहीं होती

यह सच कहा जाता है कि प्रतिभा कभी मौके की मोहताज नहीं होती है. वह अपना रास्ता खुद चुनती है. उसे बनाती है. सजाती और संवारती है. उस पर सरपट दौड़ लगाकर अपनी मंजिल तक पहुंच जाती है. मान्या इसका साक्षात उदाहरण है. यूपी के पूर्वांचल जैसे पिछड़े क्षेत्र में पैदा हुई, लेकिन सपने बड़े देखे. घर की माली हालत ऐसी थी कि बमुश्किल खर्च चल पाता था. पढ़ना चाहती थी, लेकिन फीस के पैसे नहीं थे. अपने सपनों को साकार करने के लिए उसने घर छोड़ा. ठोकरे खाईं. मेहनत की. लेकिन हार नहीं मानी. संघर्षों के बीच अपनी पढ़ाई पूरी की. अब 'मिस इंडिया' के मंच पर अपनी सफलता के झंडे गाड़ दिए.

बेटी अपने बाप पर बोझ नहीं होती है

अपने समाज में अक्सर ऐसा माना जाता है कि बेटियां बोझ होती हैं. बेटियों के पैदा होते ही कई लोग तो निराश हो जाते हैं. शादी का खर्च और दहेज की रकम उनकी आंखों के सामने आने लगता है. सबकुछ के बाद बेटी एक दिन बाप के घर से चली जाती है. बेटी पराया धन होती है. लेकिन अब बेटियों ने इसे झुठला दिया है. बेटियां अब बाप के लिए बोझ नहीं होती हैं. समाज में धीरे-धीरे मान्यताएं बदल रही हैं. तभी तो मान्या जैसी बेटियां अपने पिता और परिवार का नाम गर्व से ऊंचा कर रही हैं. संसाधनों के अभाव में भी बेटी खुश रहती है. मां-बाप का दुख बांटती है. यहां तक की उनके बुढ़ापे का सहारा भी बनती हैं.

ग्लोबल विलेज और डिजिटल इंडिया

इंटरनेट ने पूरी दुनिया को एक गांव बना दिया है. आप कहीं पर भी बैठकर दुनिया के किसी कोने में होने वाली घटनाओं के बारे में जान सकते हैं. सूचना हासिल कर सकते हैं. अपनी पढ़ाई कर सकते हैं. भारत में 'डिजिटल इंडिया' मुहिम के बाद इंटरनेट स्पीड पर तेजी से काम किया गया है. गांव तक फाइबर वॉयर के जरिए तेज इंटरनेट की पहुंच कराई जा रही है. ऐसे में गांव में पलने वाली प्रतिभाओं को अब ग्लोबल होने का मौका मिल रहा है. मान्या जैसी प्रतिभाएं अब छोटे शहर में रहते हुए बड़े शहर के सपने देख सकती हैं. उसे साकार करने के लिए कोशिश कर सकती हैं. यह भारत के सुनहरे भविष्य का सुखद संकेत है.

सपनों के लिए प्रतिबद्ध हैं तो सब संभव है

हम अक्सर सपने तो देखते हैं, लेकिन उसे पूरा करने के लिए जरूरी कोशिश नहीं कर पाते. सफलता की राह में चुनौतियां तो बहुत होती हैं, लेकिन इनसे लड़ने वाला ही आगे बढ़ पाता है. यदि आपने चुनौतियों और समस्याओं को बड़ा होने दिया, तो जीवन में कभी सफलता नहीं पा सकते. मान्या ने भी अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया. कई रात बिना खाए और सोए रही. भूखे पेट सपने देखती रही. उसे पूरा करने के लिए जो हो सकता है, वो कोशिश करती रही. जब इंसान ठान ले, तो भगवान भी साथ देता है. मान्या के साथ भी वही हुआ. कभी किताबों के लिए तरसने वाली लड़की ने पढ़ाई भी पूरी की और अपने सपने भी.

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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